User:रविन्द्र प्रसाद/1: Difference between revisions
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{[[अशोक वाटिका]] का दूसरा नाम क्या था? | {'[[अशोक वाटिका]]' का दूसरा नाम क्या था? | ||
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+प्रमदावन | +प्रमदावन | ||
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||'अशोक वाटिका' प्राचीन राजाओं के भवन के समीप की विशेष वाटिका कहलाती थी। [[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार [[अशोक वाटिका]] [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था, जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था। इसका एक दूसरा नाम 'प्रमदावन' भी था। '[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]]' से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था, किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कार भाव देखकर उसने सीता को धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोक वाटिका में कैद कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक वाटिका]] | ||'अशोक वाटिका' प्राचीन राजाओं के भवन के समीप की विशेष वाटिका कहलाती थी। [[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार [[अशोक वाटिका]] [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था, जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था। इसका एक दूसरा नाम 'प्रमदावन' भी था। '[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]]' से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था, किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कार भाव देखकर उसने सीता को धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोक वाटिका में कैद कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक वाटिका]] | ||
{[[महर्षि वाल्मीकि]] | {[[महर्षि वाल्मीकि]] बचपन में किस नाम से जाने जाते थे? | ||
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-रत्नेश | -रत्नेश | ||
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||[[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|right|80px|वाल्मीकि]]जिस [[वाल्मीकि]] के डाकू का जीवन बिताने का उल्लेख मिलता है, उसे [[रामायण]] के रचयिता से भिन्न माना जाता है। पौराणिक विवरण के अनुसार यह 'रत्नाकर' नाम का [[दस्यु]] था और यात्रियों को मार कर उनके धन से अपना परिवार पालता था। एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम 'अग्निशर्मा' था और इन्हें हर बात उलटकर कहने में रस आता था। इसलिए [[ऋषि|ऋषियों]] ने डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-रटते यही 'राम' हो गया। [[बिहार]] के चंपारन ज़िले का 'भैंसा लोटन' गाँव [[वाल्मीकि]] का [[आश्रम]] था, जो अब वाल्मीकि नगर कहलाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाल्मीकि]] | ||[[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|right|80px|वाल्मीकि]]जिस [[वाल्मीकि]] के डाकू का जीवन बिताने का उल्लेख मिलता है, उसे [[रामायण]] के रचयिता से भिन्न माना जाता है। पौराणिक विवरण के अनुसार यह 'रत्नाकर' नाम का [[दस्यु]] था और यात्रियों को मार कर उनके धन से अपना परिवार पालता था। एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम 'अग्निशर्मा' था और इन्हें हर बात उलटकर कहने में रस आता था। इसलिए [[ऋषि|ऋषियों]] ने डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-रटते यही 'राम' हो गया। [[बिहार]] के चंपारन ज़िले का 'भैंसा लोटन' गाँव [[वाल्मीकि]] का [[आश्रम]] था, जो अब वाल्मीकि नगर कहलाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाल्मीकि]] | ||
{[[लंका]] के दहन के पश्चात [[ | {[[लंका]] के दहन के पश्चात किस [[पर्वत]] पर चढ़कर [[हनुमान]] ने [[समुद्र]] को लाँघा और वापस लौटकर आये? | ||
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+[[अरिष्ट]] | +[[अरिष्ट]] | ||
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||[[चित्र:Cows-mathura2.jpg|right|100px|कामधेनु]]'कामधेनु' का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी [[गाय]] के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह [[कामधेनु]] जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का [[दूध]] अमृत के समान माना जाता था। [[महर्षि वसिष्ठ]] क्षमा की प्रतिमूर्ति थे। एक बार [[विश्वामित्र]] उनके अतिथि हुए। वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उन्होंने इस गाय को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कामधेनु]], [[वसिष्ठ]], [[विश्वामित्र]] | ||[[चित्र:Cows-mathura2.jpg|right|100px|कामधेनु]]'कामधेनु' का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी [[गाय]] के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह [[कामधेनु]] जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का [[दूध]] अमृत के समान माना जाता था। [[महर्षि वसिष्ठ]] क्षमा की प्रतिमूर्ति थे। एक बार [[विश्वामित्र]] उनके अतिथि हुए। वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उन्होंने इस गाय को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कामधेनु]], [[वसिष्ठ]], [[विश्वामित्र]] | ||
{[[लंका]] में [[राक्षस|राक्षसों]] के कुल देवता का | {[[लंका]] में [[राक्षस|राक्षसों]] के कुल देवता का स्थान निम्न में से कौन-सा था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अशोक वन | -अशोक वन | ||
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-कदंब वर्त | -कदंब वर्त | ||
{निम्नलिखित में से कौन [[कुबेर]] के सेनापति | {निम्नलिखित में से कौन [[कुबेर]] के सेनापति थे? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मणिमान | -मणिमान | ||
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||[[चित्र:Kubera-Delhi-National-Museum.jpg|100px|right|कुबेर प्रतिमा, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली]][[पुलस्त्य|महर्षि पुलस्त्य]] के पुत्र महामुनि [[विश्रवा]] ने [[भारद्वाज]] की कन्या इलविला का [[पाणिग्रहण संस्कार|पाणिग्रहण]] किया था। उसी से [[कुबेर]] की उत्पत्ति हुई। कुबेर मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। इनके पुत्र [[नलकूबर]] और मणिग्रीव भगवान [[श्रीकृष्ण|श्रीकृष्णचन्द्र]] द्वारा [[नारद]] के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने [[हिमालय पर्वत]] पर तप किया था। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा [[पार्वती]] दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर [[पीला रंग|पीला]] पड़ गया। कुबेर वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुबेर]] | ||[[चित्र:Kubera-Delhi-National-Museum.jpg|100px|right|कुबेर प्रतिमा, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली]][[पुलस्त्य|महर्षि पुलस्त्य]] के पुत्र महामुनि [[विश्रवा]] ने [[भारद्वाज]] की कन्या इलविला का [[पाणिग्रहण संस्कार|पाणिग्रहण]] किया था। उसी से [[कुबेर]] की उत्पत्ति हुई। कुबेर मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। इनके पुत्र [[नलकूबर]] और मणिग्रीव भगवान [[श्रीकृष्ण|श्रीकृष्णचन्द्र]] द्वारा [[नारद]] के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने [[हिमालय पर्वत]] पर तप किया था। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा [[पार्वती]] दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर [[पीला रंग|पीला]] पड़ गया। कुबेर वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुबेर]] | ||
{[[विभीषण]] | {[[विभीषण]] का वह कौन-सा अनुचर था, जिसने पक्षी का रूप धारण कर [[लंका]] जाकर [[रावण]] की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आशुवंत | -आशुवंत | ||
Line 68: | Line 68: | ||
-मानसर | -मानसर | ||
{[[रावण]] ने [[सुग्रीव]] के पास | {[[रावण]] ने वानरों के राजा [[सुग्रीव]] के पास किसे अपना दूत बनाकर भेजा था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्रघस | -प्रघस | ||
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||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|100px|रावण]][[सीता]] का पता लग जाने के बाद जब [[श्रीराम]] [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर वानर सेना सहित [[लंका]] पहुँच गये, तब [[रावण]] ने 'शुक' और 'सारण' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा- "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।" रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी [[राक्षस]] वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे [[विभीषण]] की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके और पकड़े गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]] | ||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|100px|रावण]][[सीता]] का पता लग जाने के बाद जब [[श्रीराम]] [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर वानर सेना सहित [[लंका]] पहुँच गये, तब [[रावण]] ने 'शुक' और 'सारण' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा- "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।" रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी [[राक्षस]] वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे [[विभीषण]] की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके और पकड़े गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]] | ||
{[[हनुमान|हनुमानजी]] की माता पूर्वजन्म में एक [[अप्सरा]] थीं। अप्सरा रूप में | {[[हनुमान|हनुमानजी]] की माता पूर्वजन्म में एक [[अप्सरा]] थीं। अप्सरा रूप में वह किस नाम से जानी जाती थीं? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-घृताची | -घृताची |
Revision as of 06:57, 19 October 2013
रामायण सामान्य ज्ञान
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