रानी राजेश्वरी देवी: Difference between revisions
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Revision as of 05:04, 29 May 2015
रानी राजेश्वरी देवी
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पूरा नाम | रानी राजेश्वरी देवी |
प्रसिद्धि | वीरांगनाएँ |
विशेष योगदान | बेगम हज़रत महल के बाद अवध के मुक्ति संग्राम में दूसरी वीरांगना के रूप में प्रमुखता से भाग लिया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रानी राजेश्वरी देवी गोण्डा से 40 किलोमीटर दूर तुलसीपुर रियासत की थीं। |
रानी राजेश्वरी देवी बेगम हज़रत महल के बाद अवध के मुक्ति संग्राम में दूसरी वीरांगना के रूप में प्रमुखता से भाग लिया। वे गोण्डा से 40 किलोमीटर दूर तुलसीपुर रियासत की थीं।
- राजेश्वरी देवी ने होपग्राण्ट के सैनिक दस्तों से जमकर मुक़ाबला लिया।
- अवध की बेगम आलिया ने भी अपने अद्भुत कारनामों से अंग्रेज़ी हुकूमत को चुनौती दी।
- बेगम आलिया 1857 के एक वर्ष पूर्व से ही अपनी सेना में शामिल महिलाओं को शस्त्रकला में प्रशिक्षण देकर सम्भावित क्रांति की योजनाओं को मूर्त रूप देने में संलग्न हो गयी थीं।
- अपने महिला गुप्तचर के गुप्त भेदों के माध्यम से बेगम आलिया ने समय-समय पर ब्रिटिश सैनिकों से युद्ध किया और कई बार अवध से उन्हें भगाया।
- इसी प्रकार अवध के सलोन ज़िले में सिमरपहा के तालुकदार वसंत सिंह बैस की पत्नी और बाराबंकी के मिर्जापुर रियासत की रानी तलमुंद कोइर भी इस संग्राम में सक्रिय रहीं।
- अवध के सलोन ज़िले में भदरी की तालुकदार ठकुराइन सन्नाथ कोइर ने विद्रोही नाज़िम फ़ज़ल अजीम को अपने कुछ सैनिक और तोपें, तो मनियारपुर की सोगरा बीबी ने अपने 400 सैनिक और दो तोपें सुल्तानपुर के नाजिम और प्रमुख विद्रोही नेता मेंहदी हसन को दी।
- इन सभी ने बिना इस बात की परवाह किये हुये कि उनके इस सहयोग का अंजाम क्या होगा, क्रांतिकारियों को पूरी सहायता दी।
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