ज्योति खरे: Difference between revisions

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'''ज्योति खरे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jyoti Khare'', जन्म: [[5 जुलाई]], [[1956]], [[जबलपुर]]) [[भारत]] के प्रतिष्ठित कवियों में माने जाते हैं। वे विगत तीस वर्षों से [[हिन्दी]] भाषा की साहित्यिक साधना में रत हैं और भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्र-[[पत्रिका|पत्रिकाओं]], [[आकाशवाणी]], [[दूरदर्शन]] और सोशल मीडिया आदि संचार माध्यमों में समान रूप से सक्रिय हैं। ज्योति खरे की प्रतिष्ठा सोशल मीडिया आदि माध्यमों से देश के कोने-कोने में फैले उनके हज़ारों प्रशंसकों के प्रेम-प्रदर्शनों द्वारा स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
ज्योति खरे का जन्म 5 जुलाई, 1956 को श्री गुलाब राय खरे और श्रीमती प्रमिला देवी खरे के घर [[जबलपुर]] में हुआ। ये पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बाद में श्री गुलाब राय खरे का स्थानान्तरण कटनी हो गया जिसकी वजह से परिवार कटनी में ही बस गया। गुलाब राय खरे रेलवे में कार्यरत थे। वे एक विशुद्ध कामरेड थे और यूनियन में खासा प्रभाव रखते थे। ऐसे में ज्योति खरे को सादगी, परिश्रम, ईमानदारी, अध्ययन-वृत्ति और नेतृत्व आदि गुण बचपन में नैसर्गिक रूप से घर में ही मिले। चूँकि, श्री गुलाब राय खरे में ना तो संचय वृत्ति ही थी, ना ही अनुचित तरीके से धनोपार्जन को वे उचित समझते थे, इसीलिए इनकी माता को गृहस्थी चलाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. अपने बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा है – “...अम्मा ने सिखाया कि भोग रहे यथार्थ को सहना पड़ता है। सम्मान और अपमान होते क्षणों में मौन रहकर समय को परखना पड़ता है।”  
ज्योति खरे का जन्म 5 जुलाई, 1956 को श्री गुलाब राय खरे और श्रीमती प्रमिला देवी खरे के घर [[जबलपुर]], [[मध्य प्रदेश]] में हुआ था। ये पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बाद में श्री गुलाब राय खरे का स्थानान्तरण कटनी हो गया, जिसकी वजह से [[परिवार]] कटनी में ही बस गया। गुलाब राय खरे रेलवे में कार्यरत थे। वे एक विशुद्ध कामरेड थे और यूनियन में खासा प्रभाव रखते थे। ऐसे में ज्योति खरे को सादगी, परिश्रम, ईमानदारी, अध्ययन-वृत्ति और नेतृत्व आदि गुण बचपन में नैसर्गिक रूप से घर में ही मिले। चूँकि, श्री गुलाब राय खरे में ना तो संचय वृत्ति ही थी, ना ही अनुचित तरीके से धनोपार्जन को वे उचित समझते थे, इसीलिए इनकी माता को गृहस्थी चलाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. अपने बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा है – “...अम्मा ने सिखाया कि भोग रहे यथार्थ को सहना पड़ता है। सम्मान और अपमान होते क्षणों में मौन रहकर समय को परखना पड़ता है।”
[[1985]] में स्नातकोत्तर करने के साल भर बाद ही [[13 फ़रवरी]] [[1986]] को सुश्री सुनीता वर्मा से उनका विवाह हो गया। जिनसे उन्हें शुभांश खरे पुत्र एवं अवनि खरे पुत्री हैं। आज लगभग साठ वर्षों के अपने संघर्षों से भरे किन्तु गरिमामय जीवन को बताते हुए वो जैसे पलट कर देखते हैं, और अपने तमाम कष्टों पर हँस रही अपनी आँखों में कहीं दूर डूबकर बताते हैं “...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है। और आदमी होने का सुख भी यही है।”
 
[[1985]] में स्नातकोत्तर करने के साल भर बाद ही [[13 फ़रवरी]], [[1986]] को सुश्री सुनीता वर्मा से उनका [[विवाह]] हो गया, जिनसे उन्हें शुभांश खरे पुत्र एवं अवनि खरे पुत्री हैं। आज लगभग साठ वर्षों के अपने संघर्षों से भरे किन्तु गरिमामय जीवन को बताते हुए वो जैसे पलट कर देखते हैं, और अपने तमाम कष्टों पर हँस रही अपनी आँखों में कहीं दूर डूबकर बताते हैं “...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है। और आदमी होने का सुख भी यही है।”
==शिक्षा==  
==शिक्षा==  
ज्योति खरे की प्रारंभिक शिक्षा कटनी में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने की वजह से उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया, जिससे गृहस्थी में कुछ योगदान दे सकें। जब सन 1980 में उन्होंने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में स्नातक के पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया तो 2 साल बाद ही उनका चयन रेलवे में हो गया। ऐसे में उनके सामने नौकरी और शिक्षा में से किसी एक को चुनने की समस्या आ खड़ी हुई। उन्होंने यहाँ भी जीवट का परिचय दिया तथा नौकरी और अध्ययन दोनों के बीच सन्तुलन बनाते हुए 1983 में स्नातक एवं 1985 में [[हिन्दी साहित्य]] से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज जब वो रेलवे से सेवा-मुक्ति के बिलकुल सामने खड़े हैं, तो उनका जीवन सरलता और सादगी की एक उत्कृष्ट मिसाल है।
ज्योति खरे की प्रारंभिक शिक्षा कटनी में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने की वजह से उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया, जिससे गृहस्थी में कुछ योगदान दे सकें। जब सन [[1980]] में उन्होंने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में स्नातक के पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया तो 2 साल बाद ही उनका चयन रेलवे में हो गया। ऐसे में उनके सामने नौकरी और शिक्षा में से किसी एक को चुनने की समस्या आ खड़ी हुई। उन्होंने यहाँ भी जीवट का परिचय दिया तथा नौकरी और अध्ययन दोनों के बीच सन्तुलन बनाते हुए [[1983]] में स्नातक एवं [[1985]] में [[हिन्दी साहित्य]] से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज जब वो रेलवे से सेवा-मुक्ति के बिलकुल सामने खड़े हैं, तो उनका जीवन सरलता और सादगी की एक उत्कृष्ट मिसाल है।
==सृजनशीलता==  
==सृजनशीलता==  
अभावों में भी घर में पर्याप्त सर्जनात्मक माहौल था। एक ओर जहाँ वो अपने पिता से कल्पना को दृश्य प्रभाव में व्यक्त करना सीख रहे थे, वहीं उन्होंने अपनी माता से अभिव्यक्ति को कलम के द्वारा आकार देना सीखा। कहते हैं जब पुत्र में माँ के गुण ज़्यादा आते हैं तो ये अत्यन्त ही शुभकारक होता है। ऐसा ही कुछ ज्योति खरे के साथ भी हुआ। उनमें चित्र के प्रति आकर्षण तो बना रहा, पर अभिव्यक्ति का माध्यम उन्होंने कलम को बनाया। उनके साहित्यिक विकास में उनकी छोटी बहन श्रीमती स्मृति ज्योति (घरेलू नाम मंजू) का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। घर के किन्हीं कोनों में दोनों भाई-बहन चुपचाप अपनी-अपनी किताबों में डूबे हुए अलग ही संसार रचते थे। इन सबका परिणाम आशानुरूप ही निकला। आज इतने वर्षों बाद वो सोशल मीडिया के सबसे ज़्यादा फ़ॉलो किए जाने वाले शीर्ष कवियों में से एक हैं, और विगत तीस-एक वर्षों से भारत के लगभग सभी प्रिन्ट मीडिया में छप चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी वो पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारित हो रहे हैं।  
अभावों में भी घर में पर्याप्त सर्जनात्मक माहौल था। एक ओर जहाँ वो अपने पिता से कल्पना को दृश्य प्रभाव में व्यक्त करना सीख रहे थे, वहीं उन्होंने अपनी माता से अभिव्यक्ति को कलम के द्वारा आकार देना सीखा। कहते हैं जब पुत्र में माँ के गुण ज़्यादा आते हैं तो ये अत्यन्त ही शुभकारक होता है। ऐसा ही कुछ ज्योति खरे के साथ भी हुआ। उनमें चित्र के प्रति आकर्षण तो बना रहा, पर अभिव्यक्ति का माध्यम उन्होंने कलम को बनाया। उनके साहित्यिक विकास में उनकी छोटी बहन श्रीमती स्मृति ज्योति (घरेलू नाम मंजू) का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। घर के किन्हीं कोनों में दोनों भाई-बहन चुपचाप अपनी-अपनी किताबों में डूबे हुए अलग ही संसार रचते थे। इन सबका परिणाम आशानुरूप ही निकला। आज इतने वर्षों बाद वो सोशल मीडिया के सबसे ज़्यादा फ़ॉलो किए जाने वाले शीर्ष कवियों में से एक हैं, और विगत तीस-एक वर्षों से भारत के लगभग सभी प्रिन्ट मीडिया में छप चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी वो पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारित हो रहे हैं।  
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*  दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारण।
*  दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारण।
==सम्मान एवं पुरस्कार==
==सम्मान एवं पुरस्कार==
* मध्य प्रदेश गौरव - 1995
* मध्य प्रदेश गौरव - [[1995]]
* प्रखर व्यंग्यकार सम्मान - 1998
* प्रखर व्यंग्यकार सम्मान - [[1998]]
* रेल राजभाषा सम्मान - 1999
* रेल राजभाषा सम्मान - [[1999]]
* सरस्विता पुरस्कार - 2014
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Revision as of 05:50, 5 July 2017

ज्योति खरे
पूरा नाम ज्योति खरे
जन्म 5 जुलाई, 1956
अभिभावक श्री गुलाब राय खरे और श्रीमती प्रमिला देवी खरे
कर्म-क्षेत्र लेखक, कवि
मुख्य रचनाएँ 'होना तो कुछ चाहिए'
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
शिक्षा स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ज्योति खरे भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन और सोशल मीडिया आदि संचार माध्यमों में समान रूप से सक्रिय हैं।
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

ज्योति खरे (अंग्रेज़ी: Jyoti Khare, जन्म: 5 जुलाई, 1956, जबलपुर) भारत के प्रतिष्ठित कवियों में माने जाते हैं। वे विगत तीस वर्षों से हिन्दी भाषा की साहित्यिक साधना में रत हैं और भारत की लगभग सभी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन और सोशल मीडिया आदि संचार माध्यमों में समान रूप से सक्रिय हैं। ज्योति खरे की प्रतिष्ठा सोशल मीडिया आदि माध्यमों से देश के कोने-कोने में फैले उनके हज़ारों प्रशंसकों के प्रेम-प्रदर्शनों द्वारा स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है।

जीवन परिचय

ज्योति खरे का जन्म 5 जुलाई, 1956 को श्री गुलाब राय खरे और श्रीमती प्रमिला देवी खरे के घर जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। ये पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बाद में श्री गुलाब राय खरे का स्थानान्तरण कटनी हो गया, जिसकी वजह से परिवार कटनी में ही बस गया। गुलाब राय खरे रेलवे में कार्यरत थे। वे एक विशुद्ध कामरेड थे और यूनियन में खासा प्रभाव रखते थे। ऐसे में ज्योति खरे को सादगी, परिश्रम, ईमानदारी, अध्ययन-वृत्ति और नेतृत्व आदि गुण बचपन में नैसर्गिक रूप से घर में ही मिले। चूँकि, श्री गुलाब राय खरे में ना तो संचय वृत्ति ही थी, ना ही अनुचित तरीके से धनोपार्जन को वे उचित समझते थे, इसीलिए इनकी माता को गृहस्थी चलाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. अपने बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा है – “...अम्मा ने सिखाया कि भोग रहे यथार्थ को सहना पड़ता है। सम्मान और अपमान होते क्षणों में मौन रहकर समय को परखना पड़ता है।”

1985 में स्नातकोत्तर करने के साल भर बाद ही 13 फ़रवरी, 1986 को सुश्री सुनीता वर्मा से उनका विवाह हो गया, जिनसे उन्हें शुभांश खरे पुत्र एवं अवनि खरे पुत्री हैं। आज लगभग साठ वर्षों के अपने संघर्षों से भरे किन्तु गरिमामय जीवन को बताते हुए वो जैसे पलट कर देखते हैं, और अपने तमाम कष्टों पर हँस रही अपनी आँखों में कहीं दूर डूबकर बताते हैं “...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है। और आदमी होने का सुख भी यही है।”

शिक्षा

ज्योति खरे की प्रारंभिक शिक्षा कटनी में गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने की वजह से उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया, जिससे गृहस्थी में कुछ योगदान दे सकें। जब सन 1980 में उन्होंने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में स्नातक के पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया तो 2 साल बाद ही उनका चयन रेलवे में हो गया। ऐसे में उनके सामने नौकरी और शिक्षा में से किसी एक को चुनने की समस्या आ खड़ी हुई। उन्होंने यहाँ भी जीवट का परिचय दिया तथा नौकरी और अध्ययन दोनों के बीच सन्तुलन बनाते हुए 1983 में स्नातक एवं 1985 में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज जब वो रेलवे से सेवा-मुक्ति के बिलकुल सामने खड़े हैं, तो उनका जीवन सरलता और सादगी की एक उत्कृष्ट मिसाल है।

सृजनशीलता

अभावों में भी घर में पर्याप्त सर्जनात्मक माहौल था। एक ओर जहाँ वो अपने पिता से कल्पना को दृश्य प्रभाव में व्यक्त करना सीख रहे थे, वहीं उन्होंने अपनी माता से अभिव्यक्ति को कलम के द्वारा आकार देना सीखा। कहते हैं जब पुत्र में माँ के गुण ज़्यादा आते हैं तो ये अत्यन्त ही शुभकारक होता है। ऐसा ही कुछ ज्योति खरे के साथ भी हुआ। उनमें चित्र के प्रति आकर्षण तो बना रहा, पर अभिव्यक्ति का माध्यम उन्होंने कलम को बनाया। उनके साहित्यिक विकास में उनकी छोटी बहन श्रीमती स्मृति ज्योति (घरेलू नाम मंजू) का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। घर के किन्हीं कोनों में दोनों भाई-बहन चुपचाप अपनी-अपनी किताबों में डूबे हुए अलग ही संसार रचते थे। इन सबका परिणाम आशानुरूप ही निकला। आज इतने वर्षों बाद वो सोशल मीडिया के सबसे ज़्यादा फ़ॉलो किए जाने वाले शीर्ष कवियों में से एक हैं, और विगत तीस-एक वर्षों से भारत के लगभग सभी प्रिन्ट मीडिया में छप चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी वो पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारित हो रहे हैं।

शिविर-

1984 में मध्य प्रदेश साहित्य परिसद द्वारा पंचमढ़ी में आयोजित रचना शिविर में ज्ञानरंजन, राजेश जोशी, कमला पांडे, भगवत रावत, उदय प्रकाश, रमाकांत श्रीवास्तव के सानिध्य में रचना कर्म पर सहभागिता

कार्यक्षेत्र

  • 1997 में प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा और ज्ञानरंजन के संयोजन में कटनी में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित "स्मृति परसाई" का आयोजन (महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह)।
  • अखिल भारतीय किरण संगीत समारोह जिसमें देश के युवा कलाकारों को "कत्थक में नृत्य श्री "गायन में स्वरश्री” से सम्मानित किया जाता है और यह संस्था मध्य प्रदेश कला परिषद से मान्यता प्राप्त है, में 1994 से 2001 तक सचिव। इस दौरान रवींद्र जैन, ग़ुलाम मुस्तफ़ा, तीजनबाई, गुलाबो, उमा शर्मा का सम्मान और कार्यक्रम का आयोजन।
  • प्रगतिशील लेखक संघ कटनी इकाई के 2002 से 2005 तक अध्यक्ष पद पर कार्य। इस दौरान "मुंशी प्रेमचंद" पर महत्वपूर्ण आयोजन, कविता विमर्श, नुक्कड़ नाटकों का आयोजन
  • मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा भारत भवन में 2003 को आयोजित "पाठक मंच" कार्यशाला में सम्मलित।
  • पाठक मंच कटनी के संयोजक।
  • 28 पुस्तकों की समीक्षा गोष्ठी का आयोजन और संचालन।
  • "लगातार" कविता फोल्डर का प्रकाशन।
  • लगभग एक दर्जन पुस्तकों की समीक्षा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

प्रकाशन

  • बालार्क (कविता संग्रह)
  • होना तो कुछ चाहिए (कविता संग्रह, प्रकाशक : ब्लू बक पब्लिकेशन्स)
  • भारत के लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में पिछले तीस वर्षों से कविताएँ एवं लेखों का प्रकाशन।
  • दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारण।

सम्मान एवं पुरस्कार

  • मध्य प्रदेश गौरव - 1995
  • प्रखर व्यंग्यकार सम्मान - 1998
  • रेल राजभाषा सम्मान - 1999
  • सरस्विता पुरस्कार - 2014


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