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'''प्राकृत प्रलय''' [[ब्रह्माण्ड|ब्राह्मांड]] के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना को कहते है।  
*[[वेदांत]] के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात [[प्रलय]] का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न [[जल]] होता है, न [[वायु]], न [[अग्नि]] होती है और न [[आकाश]] और ना अन्य कुछ। सिर्फ अंधकार रह जाता है।
*[[वेदांत]] के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात् [[प्रलय]] का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात् प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न [[जल]] होता है, न [[वायु]], न [[अग्नि]] होती है और न [[आकाश]] और ना अन्य कुछ। सिर्फ अंधकार रह जाता है।
*[[पुराण|पुराणों]] अनुसार प्राकृतिक प्रलय [[ब्रह्मा]] के सौ [[वर्ष]] बीतने पर अर्थात ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है।  
*[[पुराण|पुराणों]] अनुसार प्राकृतिक प्रलय [[ब्रह्मा]] के सौ [[वर्ष]] बीतने पर अर्थात् ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है।  
*महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है। उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।
*महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है। उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।



Latest revision as of 07:57, 7 November 2017

प्राकृत प्रलय ब्राह्मांड के सभी भूखण्ड या ब्रह्माण्ड का मिट जाना, नष्ट हो जाना या भस्मरूप हो जाना को कहते है।

  • वेदांत के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात् प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात् प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात् संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है। न जल होता है, न वायु, न अग्नि होती है और न आकाश और ना अन्य कुछ। सिर्फ अंधकार रह जाता है।
  • पुराणों अनुसार प्राकृतिक प्रलय ब्रह्मा के सौ वर्ष बीतने पर अर्थात् ब्रह्मा की आयु पूर्ण होते ही सब जल में लय हो जाता है। कुछ भी शेष नहीं रहता। जीवों को आधार देने वाली ये धरती भी उस अगाध जलराशि में डूबकर जलरूप हो जाती है। उस समय जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में और आकाश महतत्व में प्रविष्ट हो जाता है।
  • महतत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष में लीन हो जाती है। उक्त चार प्रलयों में से नैमित्तिक एवं प्राकृतिक महाप्रलय ब्रह्माण्डों से सम्बन्धित होते हैं तथा शेष दो प्रलय देहधारियों से सम्बन्धित हैं।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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