संविधान संशोधन- 57वाँ: Difference between revisions
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*यद्यपि ये क्षेत्र जनजाति-बहुल हैं, तथापि इस संशोधन का उद्देश्य यह था कि इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियाँ अपना न्यूनतम प्रतिनिधित्व तो कर ही सकें, क्योंकि वे विकसित वर्ग के लोगों के साथ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं। | *यद्यपि ये क्षेत्र जनजाति-बहुल हैं, तथापि इस संशोधन का उद्देश्य यह था कि इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियाँ अपना न्यूनतम प्रतिनिधित्व तो कर ही सकें, क्योंकि वे विकसित वर्ग के लोगों के साथ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं। | ||
*यद्यपि संविधान (51 संशोधन) अधिनियम औपचारिक रूप से प्रभावी था, फिर भी यह पूरी तरह से तब तक लागू नहीं हो सकता था, जब तक यह निर्धारित न हो जाए कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के लिए किन-किन स्थानों का आरक्षण करना है। | *यद्यपि संविधान (51 संशोधन) अधिनियम औपचारिक रूप से प्रभावी था, फिर भी यह पूरी तरह से तब तक लागू नहीं हो सकता था, जब तक यह निर्धारित न हो जाए कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के लिए किन-किन स्थानों का आरक्षण करना है। | ||
*किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 332 के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 332(3) के प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है, किंतु उत्तर-पूर्वी राज्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, इन राज्यों की अनुसूचित जनजातियों के विकास व अन्य संबंधित बातों पर विचार करके यह | *किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 332 के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 332(3) के प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है, किंतु उत्तर-पूर्वी राज्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, इन राज्यों की अनुसूचित जनजातियों के विकास व अन्य संबंधित बातों पर विचार करके यह ज़रूरी समझा गया कि इन क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए जाएँ, ताकि ये लोग भी, जैसा कि संविधान में संकल्पना की गई है, सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें। | ||
*संविधान के अनुच्छेद 332 को अस्थाई प्रावधान बनाने के लिए फिर से संशोधित किया गया, जिससे अनुच्छेद 170 के अंतर्गत वर्ष 2000 के बाद पहली जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण का पून: निर्धारण किया जा सके। | *संविधान के अनुच्छेद 332 को अस्थाई प्रावधान बनाने के लिए फिर से संशोधित किया गया, जिससे अनुच्छेद 170 के अंतर्गत वर्ष 2000 के बाद पहली जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण का पून: निर्धारण किया जा सके। | ||
*इस संशोधन में यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि ऐसे राज्यों की विधानसभाओं (जो संशोधित अधिनियम के लागू होने की तिथि पर अस्तित्व में थीं) में सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अधिग्रहीत किए गए हों, तो एक को छोड़कर सभी स्थान अनुसूचित जनजातीयों के लिए आरक्षित किए जाएँ तथा अन्य किसी मामले में जहाँ पर स्थानों की संख्या कुल संख्या के बराबर हो, एक ऐसा अनुपात हो जिसमें मौजूदा विधानसभा के सदस्यों की संख्या मौजूदा विधानसभा के कूल सदस्यों की संख्या के बराबर हो। | *इस संशोधन में यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि ऐसे राज्यों की विधानसभाओं (जो संशोधित अधिनियम के लागू होने की तिथि पर अस्तित्व में थीं) में सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अधिग्रहीत किए गए हों, तो एक को छोड़कर सभी स्थान अनुसूचित जनजातीयों के लिए आरक्षित किए जाएँ तथा अन्य किसी मामले में जहाँ पर स्थानों की संख्या कुल संख्या के बराबर हो, एक ऐसा अनुपात हो जिसमें मौजूदा विधानसभा के सदस्यों की संख्या मौजूदा विधानसभा के कूल सदस्यों की संख्या के बराबर हो। |
Latest revision as of 10:50, 2 January 2018
संविधान संशोधन- 57वाँ
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विवरण | 'भारतीय संविधान' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है। |
संविधान लागू होने की तिथि | 26 जनवरी, 1950 |
57वाँ संशोधन | 1987 |
संबंधित लेख | संविधान सभा |
अन्य जानकारी | 'भारत का संविधान' ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारत में संसद नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है। |
भारत का संविधान (57वाँ संशोधन) अधिनियम, 1987
- भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
- संविधान (51 संशोधन) अधिनियम, 1984 लोकसभा में नागालैंड, मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने तथा संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 को समुचित प्रकार से संशोधित करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
- यद्यपि ये क्षेत्र जनजाति-बहुल हैं, तथापि इस संशोधन का उद्देश्य यह था कि इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियाँ अपना न्यूनतम प्रतिनिधित्व तो कर ही सकें, क्योंकि वे विकसित वर्ग के लोगों के साथ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं।
- यद्यपि संविधान (51 संशोधन) अधिनियम औपचारिक रूप से प्रभावी था, फिर भी यह पूरी तरह से तब तक लागू नहीं हो सकता था, जब तक यह निर्धारित न हो जाए कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के लिए किन-किन स्थानों का आरक्षण करना है।
- किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 332 के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 332(3) के प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है, किंतु उत्तर-पूर्वी राज्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, इन राज्यों की अनुसूचित जनजातियों के विकास व अन्य संबंधित बातों पर विचार करके यह ज़रूरी समझा गया कि इन क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए जाएँ, ताकि ये लोग भी, जैसा कि संविधान में संकल्पना की गई है, सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 332 को अस्थाई प्रावधान बनाने के लिए फिर से संशोधित किया गया, जिससे अनुच्छेद 170 के अंतर्गत वर्ष 2000 के बाद पहली जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण का पून: निर्धारण किया जा सके।
- इस संशोधन में यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि ऐसे राज्यों की विधानसभाओं (जो संशोधित अधिनियम के लागू होने की तिथि पर अस्तित्व में थीं) में सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अधिग्रहीत किए गए हों, तो एक को छोड़कर सभी स्थान अनुसूचित जनजातीयों के लिए आरक्षित किए जाएँ तथा अन्य किसी मामले में जहाँ पर स्थानों की संख्या कुल संख्या के बराबर हो, एक ऐसा अनुपात हो जिसमें मौजूदा विधानसभा के सदस्यों की संख्या मौजूदा विधानसभा के कूल सदस्यों की संख्या के बराबर हो।
- यह अधिनियम इन उद्देश्यों को प्राप्त करता है।
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