प्रथम तमिल संगम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 13: Line 13:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{संगम साहित्य}}
[[Category:संगम साहित्य]]
[[Category:तमिल साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:तमिल साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:42, 29 April 2018

तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। 'संगम' शब्द का अर्थ है- संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। वास्तव में संगम, तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद थी। सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया। संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था, उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे।

अनुश्रुति

परिषद अथवा संगम की संस्तुति के उपरान्त ही किसी कवि या लेखक की रचना प्रकाशित हो पाती थी। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि तीन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया। तमिल अनुश्रुतियों के अनुसार भी तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था-

  1. प्रथम संगम
  2. द्वितीय संगम
  3. तृतीय संगम

प्रथम संगम

मदुरा मंडल अथवा सम्मेलन में तमिल कवियों के सम्मेलन की चर्चा है। इसका प्रथम उल्लेख इरैयनार अगप्पोरूल (8वीं सदी) के विवरण से प्राप्त होता है। प्रथम संगम मदुरै में आयोजित हुआ था। आचार्य अगस्त्य ने इसकी अध्यक्षता की थी। अगस्त्य ऋषि को ही दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति के प्रसार का श्रेय दिया गया है। तमिल भाषा में प्रथम ग्रन्थ का प्रणेता भी इन्हें ही माना गया है। माना जाता है कि प्रथम संगम में देवताओं और ऋषियों ने भाग लिया था, किन्तु प्रथम संगम की सभी रचनाएँ विनष्ट हो गईं।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संगम साहित्य (हिंदी) vivacepanorama.com। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2017।

संबंधित लेख