रॉबर्ट ब्रूस फुट: Difference between revisions

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'''रॉबर्ट ब्रूस फुट''' (जन्म - 1834; मृत्यु - [[1912]]) ब्रिटिश भूगर्भशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता थे। उन्हें अक्सर [[भारत]] के प्रागैतिहासिक अध्ययन का संस्थापक माना जाता है।
'''रॉबर्ट ब्रूस फुट''' (जन्म - 1834; मृत्यु - [[1912]]) [[ब्रिटिश काल|ब्रिटिश]] भूगर्भशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता थे। उन्हें अक्सर [[भारत]] के प्रागैतिहासिक अध्ययन का संस्थापक माना जाता है।


24 वर्ष की आयु में फ्रुट भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग में शामिल हो गए। जिसमें वह 33 वर्ष रहे। [[1862]] में पुरातात्विक सर्वेक्षण की स्थापना के बाद उन्होंने भारत में प्रागैतिहासिक मानव [[अवशेष|अवशेषों]] का प्रथम सिलसिलेवार शोध कार्य शुरू किया और [[1863]] में यहां हाथ की कुल्हाड़ियों की पहली खोज की, [[उत्खनन]]- सुविधा के बिना ही सिर्फ़ सतह पर मौजूद अवशेषों और क्षेत्रों के अवलोकन से वह भारत के प्रागैतिहासिक काल की काफ़ी हद तक सटीक पुनरर्चना कर पाते थे। यूरोपीय समदर्शों के अनुरूप उन्होंने प्रमुख सांस्कृतिक कालखंडों को पुरापाषाण, नवपाषाण और लौह युग की संज्ञा दी। [[1903]] में [[भारत]] के मद्रास संग्रहालय ने प्रागैतिहासिक युग की वस्तुओं के उनके विशाल संग्रह को ख़रीद लिया। उनकी कृति कैटेलॉग रेसी (1914; वर्गीकृत सूची) और इंडियन प्रिहिस्टॉरिक ऐंड प्रोटोहिस्टॉरिक आर्टिफ़ैक्ट्क (1916) में भारतीय प्रागैतिहासिक काल के बारे में उनके वर्षों के शोध का सार और रूपरेखा है।  
24 [[वर्ष]] की आयु में फ्रुट भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग में शामिल हो गए। जिसमें वह 33 वर्ष रहे। [[1862]] में पुरातात्विक सर्वेक्षण की स्थापना के बाद उन्होंने भारत में प्रागैतिहासिक मानव [[अवशेष|अवशेषों]] का प्रथम सिलसिलेवार शोध कार्य शुरू किया और [[1863]] में यहां हाथ की कुल्हाड़ियों की पहली खोज की। [[उत्खनन]]- सुविधा के बिना ही सिर्फ़ सतह पर मौजूद अवशेषों और क्षेत्रों के अवलोकन से वह भारत के प्रागैतिहासिक काल की काफ़ी हद तक सटीक पुनरर्चना कर पाते थे।  
 
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उनकी कृति कैटेलॉग रेसी (1914; वर्गीकृत सूची) और इंडियन प्रिहिस्टॉरिक ऐंड प्रोटोहिस्टॉरिक आर्टिफ़ैक्ट्क (1916) में भारतीय प्रागैतिहासिक काल के बारे में उनके वर्षों के शोध का सार और रूपरेखा है।  


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रॉबर्ट ब्रूस फुट (जन्म - 1834; मृत्यु - 1912) ब्रिटिश भूगर्भशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता थे। उन्हें अक्सर भारत के प्रागैतिहासिक अध्ययन का संस्थापक माना जाता है।

24 वर्ष की आयु में फ्रुट भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग में शामिल हो गए। जिसमें वह 33 वर्ष रहे। 1862 में पुरातात्विक सर्वेक्षण की स्थापना के बाद उन्होंने भारत में प्रागैतिहासिक मानव अवशेषों का प्रथम सिलसिलेवार शोध कार्य शुरू किया और 1863 में यहां हाथ की कुल्हाड़ियों की पहली खोज की। उत्खनन- सुविधा के बिना ही सिर्फ़ सतह पर मौजूद अवशेषों और क्षेत्रों के अवलोकन से वह भारत के प्रागैतिहासिक काल की काफ़ी हद तक सटीक पुनरर्चना कर पाते थे।

यूरोपीय समदर्शों के अनुरूप उन्होंने प्रमुख सांस्कृतिक कालखंडों को पुरापाषाण, नवपाषाण और लौह युग की संज्ञा दी। 1903 में भारत के मद्रास संग्रहालय ने प्रागैतिहासिक युग की वस्तुओं के उनके विशाल संग्रह को ख़रीद लिया।

उनकी कृति कैटेलॉग रेसी (1914; वर्गीकृत सूची) और इंडियन प्रिहिस्टॉरिक ऐंड प्रोटोहिस्टॉरिक आर्टिफ़ैक्ट्क (1916) में भारतीय प्रागैतिहासिक काल के बारे में उनके वर्षों के शोध का सार और रूपरेखा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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