पुंछी आयोग: Difference between revisions
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[[चित्र:Madan-Mohan-Punchhi.jpg|thumb|250px|न्यायमूर्ति मदन मोहन पुंछी]] पुंछी आयोग (अंग्रेज़ी: Punchhi Commission) का गठन वर्ष 2007 में किया गया था। भारत सरकार ने सरकारिया आयोग द्वारा अंतिम बार केन्द्र-राज्य संबंधों से संबंधित मुद्दे पर विचार के बाद भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र-राज्य संबंधों से संबंधित नए मुद्दों पर विचार करने के लिए 27 अप्रैल, 2007 को भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन किया था।
दायित्व व समीक्षा
सरकार के कार्य शक्तियां एवं उत्तरदायित्व, सभी क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना, आपातकालीन परिस्थितियों में संसाधनों का विभाजन आदि मुद्दों की देखरेख की जिम्मेदारी इस समिति को दी गई थी। आयोग विचार आर्ट्स विषय के अंतर्गत उठाए गए मुद्दों की गहराई से जांच करने तथा संबंधित सभी पक्षों की सांगोपांग समीक्षा के उपरांत इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सहकारी संघवाद, भारत की एकता, अखंडता तथा भविष्य में इसके सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए अपरिहार्य है। इस प्रकार सहकारी संघवाद का सिद्धांत भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था के लिए एक व्यवहारिक मार्गदर्शक का कार्य करता है।
सिफारिशें
कुल मिलाकर इस आयोग ने 310 सिफारिशें प्रस्तुत कीं, जिनमें से कुछ केंद्र राज्य संबंधों का भी स्पर्श करती हैं। कुछ प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं–
- सूची 3 में वर्णित विषयों पर बने कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर संसद में विधान प्रस्तुत करने से पहले केंद्र और राज्यों के बीच व्यापक सहमति बने।[1]
- राज्यों को सुपुर्द किए गए मामलों पर केंद्र को संसदीय सर्वोच्चता स्थापित करने में अधिकतम संयम बरतना चाहिए। राज्य सूची तथा समवर्ती सूची को हस्तांतरित विषयों के मामलों में राज्यों के प्रति लचीला रुख रखना बेहतर केंद्र राज्य संबंधों की पूंजी है।
- समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने के समय राज्यों से विचार-विमर्श जरूर किया जाना चाहिए।
- संघीय सरकार को समवर्ती सूची के उन्हीं विषयों को अपने पास रखा जाना चाहिए जो राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के लिए अति आवश्यक हो।
- अंतर्राज्यीय परिषद को और भी अधिक शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए ताकि वह केंद्र एवं राज्यों के विवादों को सहजता से सुलझा सके।
- जब भी राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के अनुमति के लिए विधेयकों को आरक्षित किया जाता है तो इसका समय निश्चित किया जाना चाहिए। एक आदर्श समय छह माह होता है, इस समय के अंदर राष्ट्रपति को निर्णय ले लेना चाहिए।
- राज्यपाल के पद को लेकर सरकारिया आयोग के सुझाव को लागू किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 में महाभियोग द्वारा राष्ट्रपति को पदस्थ करने की प्रक्रिया है। उसी के समान प्रक्रिया राज्यपाल के पद मुक्ति के संबंध में भी होना चाहिए।
- राष्ट्रपति की प्रसाद पर्यंत शब्द अनुच्छेद 156 में दिया गया है। इसको समुचित प्रक्रिया शब्द के साथ बदला जाना चाहिए। राज्यपाल राष्ट्रपति की प्रसाद पर्यंत आधार पर कार्य करता है। राष्ट्रपति जब चाहे तब राज्यपाल को हटा सकता है।
- पश्चिम बंगाल 1996 के केस में सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश दिया है, उसे लागू किया जाना चाहिए।
- राज्यसभा में राज्यों का समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
- उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में केंद्र सरकार की स्पेशल आर्म फोर्स भेजने की शक्ति को वापस लिया जाना चाहिए।
- इस आयोग ने माना कि केंद्र सरकार को सांप्रदायिक झगड़ों के संबंध में राज्यों में सशस्त्र सैनिक भेजने का अधिकार है लेकिन इसकी समय सीमा केवल एक हफ्ते होनी चाहिए।
- एक निदेशक सिद्धांत के रूप में सुशासन अर्थात् केंद्र राज शासन को लागू किया जाना चाहिए।
- भूमि अधिग्रहण एवं विस्थापन के लिए केंद्र सरकार को एक राष्ट्रीय नीति बनाया जाना चाहिए ताकि विस्थापित लोगों के साथ अन्याय न हो। आयोग ने सुझाव दिया कि ऐसे लोगों को नौकरी दी जानी चाहिए तथा हो सके तो जमीन के बदले जमीन दिया जाना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एम.-एम-पुंछी-आयोग (हिंदी) politicalweb.in। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2021।
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