पुलस्त्य: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (1 अवतरण) |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
==पुलस्त्य / Pulastya== | ==पुलस्त्य / Pulastya== | ||
[[ब्रह्मा]] के छह मानस पुत्रों में से एक जिनकी गणना शक्तिशाली महर्षियों में की जाती है। कर्दम प्रजापति की कन्या हविर्भुवा से इनका विवाह हुआ था। इन्हें [[दक्ष]] का दामाद और [[शंकर]] का साढू भी बताया गया है। दक्ष के यज्ञ-ध्वंस के समय ये जलकर मर गए थे। वैवस्वत मन्वंतर में ब्रह्मा के सभी मानस-पुत्रों के साथ पुलस्त्य का भी पुनर्जन्म हुआ। एक बार ये मेरु पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो बार-बार परेशान करने वाली अप्सराओं को इन्होंने शाप दे दिया कि जो इनके सामने आएगी, वह गर्भवती हो जाएगी। [[वैशाली]] के राजा की कन्या इडविला असावधानी से इनके सामने आकर गर्भवती हो गई। बाद में उसका पुलस्त्य से विवाह हुआ और उसने विश्वश्रवा नामक पुत्र को जन्म दिया। [[रावण]] इन्हीं विश्वश्रवा का पुत्र और पुलस्त्य का पौत्र था। विश्वश्रवा पश्चिम भारत में [[नर्मदा]] के किनारे रहता था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि पुलस्त्य का निवास भी वहीं रहा होगा। | [[ब्रह्मा]] के छह मानस पुत्रों में से एक जिनकी गणना शक्तिशाली महर्षियों में की जाती है। कर्दम प्रजापति की कन्या हविर्भुवा से इनका विवाह हुआ था। इन्हें [[दक्ष]] का दामाद और [[शंकर]] का साढू भी बताया गया है। दक्ष के यज्ञ-ध्वंस के समय ये जलकर मर गए थे। वैवस्वत मन्वंतर में ब्रह्मा के सभी मानस-पुत्रों के साथ पुलस्त्य का भी पुनर्जन्म हुआ। एक बार ये मेरु पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो बार-बार परेशान करने वाली अप्सराओं को इन्होंने शाप दे दिया कि जो इनके सामने आएगी, वह गर्भवती हो जाएगी। [[वैशाली]] के राजा की कन्या इडविला असावधानी से इनके सामने आकर गर्भवती हो गई। बाद में उसका पुलस्त्य से विवाह हुआ और उसने विश्वश्रवा नामक पुत्र को जन्म दिया। [[रावण]] इन्हीं विश्वश्रवा का पुत्र और पुलस्त्य का पौत्र था। विश्वश्रवा पश्चिम भारत में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के किनारे रहता था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि पुलस्त्य का निवास भी वहीं रहा होगा। | ||
वृद्ध-याज्ञवल्क्य के अनुसार पुलस्त्य एक धर्मवक्ता हैं। विश्वरूप ने शरीर-शौच के सिलसिले में उनका एक श्लोक उद्धृत किया है। मिताक्षरा ने एक उद्धरण में कहा है कि [[श्राद्ध]] में ब्राह्मण को मुनि का भोजन, क्षत्रिय एंव वैश्य को माँस तथा शूद्र को मधु खाना चाहिए। सन्ध्या, श्राद्ध, अशौच, यति-धर्म, प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में अपरार्क ने पुलस्त्य से बहुत उद्धरण लिये हैं। आह्निक एंव श्राद्ध पर स्मृतिचन्द्रिका ने पुलस्त्य का उल्लेख किया है। दानरत्नाकर ने मृगचर्म-दान के बारे में पुलस्त्य का उद्धरण दिया है। पुलस्त्यस्मृति की तिथि 400 एंव 700 ई॰ के मध्य में अवश्य होनी चाहिए। | वृद्ध-याज्ञवल्क्य के अनुसार पुलस्त्य एक धर्मवक्ता हैं। विश्वरूप ने शरीर-शौच के सिलसिले में उनका एक श्लोक उद्धृत किया है। मिताक्षरा ने एक उद्धरण में कहा है कि [[श्राद्ध]] में ब्राह्मण को मुनि का भोजन, क्षत्रिय एंव वैश्य को माँस तथा शूद्र को मधु खाना चाहिए। सन्ध्या, श्राद्ध, अशौच, यति-धर्म, प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में अपरार्क ने पुलस्त्य से बहुत उद्धरण लिये हैं। आह्निक एंव श्राद्ध पर स्मृतिचन्द्रिका ने पुलस्त्य का उल्लेख किया है। दानरत्नाकर ने मृगचर्म-दान के बारे में पुलस्त्य का उद्धरण दिया है। पुलस्त्यस्मृति की तिथि 400 एंव 700 ई॰ के मध्य में अवश्य होनी चाहिए। |
Revision as of 07:10, 1 April 2010
पुलस्त्य / Pulastya
ब्रह्मा के छह मानस पुत्रों में से एक जिनकी गणना शक्तिशाली महर्षियों में की जाती है। कर्दम प्रजापति की कन्या हविर्भुवा से इनका विवाह हुआ था। इन्हें दक्ष का दामाद और शंकर का साढू भी बताया गया है। दक्ष के यज्ञ-ध्वंस के समय ये जलकर मर गए थे। वैवस्वत मन्वंतर में ब्रह्मा के सभी मानस-पुत्रों के साथ पुलस्त्य का भी पुनर्जन्म हुआ। एक बार ये मेरु पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो बार-बार परेशान करने वाली अप्सराओं को इन्होंने शाप दे दिया कि जो इनके सामने आएगी, वह गर्भवती हो जाएगी। वैशाली के राजा की कन्या इडविला असावधानी से इनके सामने आकर गर्भवती हो गई। बाद में उसका पुलस्त्य से विवाह हुआ और उसने विश्वश्रवा नामक पुत्र को जन्म दिया। रावण इन्हीं विश्वश्रवा का पुत्र और पुलस्त्य का पौत्र था। विश्वश्रवा पश्चिम भारत में नर्मदा के किनारे रहता था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि पुलस्त्य का निवास भी वहीं रहा होगा।
वृद्ध-याज्ञवल्क्य के अनुसार पुलस्त्य एक धर्मवक्ता हैं। विश्वरूप ने शरीर-शौच के सिलसिले में उनका एक श्लोक उद्धृत किया है। मिताक्षरा ने एक उद्धरण में कहा है कि श्राद्ध में ब्राह्मण को मुनि का भोजन, क्षत्रिय एंव वैश्य को माँस तथा शूद्र को मधु खाना चाहिए। सन्ध्या, श्राद्ध, अशौच, यति-धर्म, प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में अपरार्क ने पुलस्त्य से बहुत उद्धरण लिये हैं। आह्निक एंव श्राद्ध पर स्मृतिचन्द्रिका ने पुलस्त्य का उल्लेख किया है। दानरत्नाकर ने मृगचर्म-दान के बारे में पुलस्त्य का उद्धरण दिया है। पुलस्त्यस्मृति की तिथि 400 एंव 700 ई॰ के मध्य में अवश्य होनी चाहिए।