जैन लिपिसंख्यान संस्कार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:20, 4 December 2011 by स्नेहा (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search
  • लिपि संख्यान संस्कार अर्थात बालक को अक्षराभ्यास कराना।
  • शास्त्रारम्भ यज्ञोपवीत के बाद होता है।
  • लिपिसंख्यान संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।
  • ग्रन्थकारों का मत है- 'प्राप्ते तु पंचमे वर्षें, विद्यारम्भं समाचरेत्।' अर्थात पाँचवें वर्ष में विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिए।

ततोऽस्य पंचमे वर्षे, प्रथमाक्षरदर्शने।
ज्ञेय: क्रियाविधिर्नाम्ना, लिपिसंख्यानसंग्रह:॥
यथाविभवमत्रापि, ज्ञेय: पूजापरिच्छद:।
उपाध्याय पदे चास्य, मतोऽधीती गृहव्रती॥

अर्थात लिपिसंख्यान (विद्यारम्भ) संस्कार पाँचवें वर्ष में करना चाहिए।

  • इस संस्कार में शुभ मुहूर्त अत्यावश्यक है।
  • योग, वार, नक्षत्र-ये सब ही शुभ अर्थात विद्यावृद्धिकर होने चाहिए।
  • उपाध्याय (गुरु) को इस विषय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः