केरल की संस्कृति
केरल की संस्कृति वास्तव में भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। भारतीय उपमहाद्वीप की तरह केरल की संस्कृति का भी एक पुरातन इतिहास है जो अपने आप में महत्वपूर्ण होने का दावा करता है। केरल की संस्कृति भी एक समग्र और महानगरीय संस्कृति है जिसमें कई लोगों और जातियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। केरल के लोगों के बीच समग्र और विविधतावादी सहिष्णुता और दृष्टिकोण की उदारता की भावना का उद्वव अभी है जिससे नेतृत्व संस्कृति का विकास लगातार जारी है। केरल का इतिहास सांस्कृतिक और सामाजिक संष्लेषण की एक अनोखी प्रक्रिया की रोमांटिक और आकर्षण कहानी कहता है। केरल ने हर चुनौती का माकूल जवाब देते हुए प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन किया है और साथ ही पुरानी परंपराओं और नए मूल्यों का मानवीय तथ्यों से संलयन किया है। भारतीय उपमहाद्वीप की तरह केरल की संस्कृति का भी एक पुरातन इतिहास है जो अपने आप में महत्वपूर्ण होने का दावा करता है।
केरल की संस्कृति अपनी पुरातनता, एकता, निरंतरता और सार्वभौमिकता की प्रकृति के कारण उम्र के हिसाब से माध्यम बनाए हुए है। इसके व्यापक अर्थ में यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य की आत्मा की सर्वोच्च उपलब्धियों को गले लगाती है। कुल मिलाकर यह धर्म और दर्शन, भाषा और साहित्य, कला और स्थापत्य कला, शिक्षा और सीखना और आर्थिक और सामाजिक संगठन के क्षेत्र में लोगों की समग्र उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती है।
केरल के त्योहार
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Onam]]
- केरल में अनेक रंगारंग त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से अधिकतर त्योहार धार्मिक हैं जो हिन्दू पुराणों से प्रेरित हैं।
- ओणम केरल का विशिष्ट त्योहार है, जो फ़सल कटाई के मौसम में मनाया जाता है। यह त्योहार खगोलशास्त्रीय नववर्ष के अवसर पर आयोजित किया जाता है।
- केरल में नवरात्रि पर्व सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है।
- महाशिवरात्रि का त्योहार पेरियार नदी के तट पर भव्य तरीके से मनाया जाता है और इसकी तुलना कुम्भ मेला से की जाती है।
- सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में इसी दौरान मकरविलक्कु भी आयोजित होता है। 41 दिन के इस उत्सव में देश-विदेश के लाखों लोग सम्मिलित होते हैं। वलमकली या नौका दौड़ केरल का अपने ढंग का अनोखा आयोजन है। पुन्नमदा झील में आयोजित होने वाली नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़ को छोड़कर शेष सभी नौका दौड़ उत्सवों का कोई न कोई धार्मिक महत्व है। *त्रिचूर के बडक्कुमनाथ मंदिर में हर वर्ष अप्रैल में पूरम त्योहार मनाया जाता है, जिसमें सजे-धजे हाथियों की भव्य शोभायात्रा निकलती है और आतिशबाजी का प्रदर्शन किया जाता हैं।
- क्रिसमस और ईस्टर ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार हैं। पुम्बा नदी के तट पर हर वर्ष मरामोन सम्मेलन होता है, जहां एशिया में ईसाइयों का सबसे बड़ा जमावड़ा लगता है।
- मुसलमान मिलादे शरीफ, रमज़ान रोज़े, बकरीद और ईद-उल-फितर का त्योहार मनाते हैं।
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