लघुचित्र

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लघुचित्र भारतीय शास्त्रीय परम्परा के अनुसार बनाई गई चित्रकारी शिल्प है। 'समरांगण सूत्रधार' नामक वास्तुशास्त्र में इसका विस्तृत रूप से उल्लेख मिलता है। इस शिल्प की कलाकृतियाँ सैंकड़ों वर्षों के बाद भी अब तक इतनी नवीन लगती हैं, मानो ये कुछ वर्ष पूर्व ही चित्रित की गई हों।

  • सबसे प्राचीन उपलब्ध लघुचित्रों मेवाड़पत्र पर बनाई गई व 10वीं शताब्दी की है व काग़ज़ पर बनाई गई 14वीं सदी की है। यह आकृतियाँ/चित्र धार्मिक या पौराणिक कथाओं की हस्तलिखित पुस्तकों के साथ मिलते हैं।
  • 16वीं सदी के मध्य मुग़लों के उदय के समय के विषयों में दरबारी दृश्य, पेड़-पौधे व जीव-जन्तु आदि शामिल थे।
  • राजपूत व पहाड़ी दरबारों में लघुचित्र, कविताओं को जीवन देने, पुरातन पौराणिक कथाओं, धार्मिक कथाओं, प्रेम के विभिन्न भावों व बदलती ऋतुओं का चित्रण करना जारी रखे हुए थे। इन चित्रों मे भावों व चित्रवृत्ति को भरपूर गीतात्मकता द्वारा सम्प्रेषित करने पर जोर दिया जाता था। इससे कलाकार, एक ही चित्र पर मिलकर कारखानो के संरक्षण में कार्य करते थे, जिनमें से कुछ अभिकल्पना में, चित्रण में व कुछ रंग भरने में दक्ष होते थे।
  • भारत की लघुचित्र परम्पराओं में मुग़ल, राजस्थानी, पहाड़ी व दक्षिणी दरबारी चित्र प्रमुख हैं।


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