प्रेमाश्रयी शाखा

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प्रेमाश्रयी शाखा के मुस्लिम सूफी कवियों की काव्य-धारा को 'प्रेममार्गी' माना गया, क्योंकि प्रेम से ही प्रभु मिलते हैं, ऐसी उनकी मान्यता थी। ईश्वर की तरह प्रेम भी सर्वव्यापी है, और ईश्वर का जीव के साथ प्रेम का ही संबंध हो सकता है, यही उनकी रचनाओं का मूल तत्त्व है। उन्होंने प्रेमगाथाएँ लिखी हैं। ये प्रेमगाथाएँ फ़ारसी की मसनवियों की शैली पर रची गई हैं। इन गाथाओं की भाषा अवधी है, और इनमें दोहा-चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।

इस शाखा के भक्त कवियों की भक्ति-भावना पर विदेशी प्रभाव अधिक है। इस प्रसंग में यह बात ध्यान आकर्षित किए बिना नहीं रहती कि इस शाखा के मलिक मुहम्मद जायसी आदि कवि मुसलमान थे। इसलिए उन्होंने अपने संस्कारों के अनुसार भक्ति का निरूपण किया। वे भारतीय थे, इसलिए उन्होंने अपने प्रेमाख्यानों के लिए भारतीय विषय चुने, भारतीय विचारधारा को भी अपनाया, परंतु उस पर विदेशी रंग भी चढ़ा दिया। रसखान भी मुसलमान थे। अतएव उन पर इस्लाम का प्रभाव बहुत था। साथ ही सूफी प्रेम-पद्धति का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से मिलता है। वे किसी मतवाद में बंधे नहीं। उनका प्रेम स्वच्छंद था, जो उन्हें अच्छा लगा, उन्होंने बिना किसी संकोच के उसे आधार बनाया। अतएव उनकी कविता में भारतीय भक्ति-पद्धति और सूफी इश्क-हकीकी का सम्मिश्रण मिलता है। उनकी भक्ति का ढांचा या शरीर भारतीय है किंतु आत्मा इस्लामी एवं तसव्वुफ से रंजित है।

सगुण भक्तिधारा की विशेषता यह है कि उसमें भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला और धाम की महिमा का वर्णन होता है। इस वर्णन के लिए भक्तों ने भगवान के अवतारों में राम और कृष्ण को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। भक्तिकाल की रचनाओं में इनकी ही महिमा मुख्य रूप से गाई गई है। प्रेमाश्रयी शाखा के कवियों में मलिक मुहम्मद जायसी प्रमुख हैं। इनका ‘पद्मावत’ महाकाव्य इस शैली की सर्वश्रेष्ठ रचना है। अन्य प्रमुख कवियों में मंझन, कुतुबन और उसमान हैं।


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