कपिष्ठल

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'कपिस्थलं वृकस्थलं माकन्दीं वारणावतम्, अवसानं भवत्यत्र किंचिदेकं च पंचमम्'।

  • अन्य पाठ में कपिलस्थल के स्थान पर अविस्थल है जिसका अभिज्ञान अनिश्चित है।
  • अलबेरूनी ने कपिस्थल को कवितल लिखा है।[3]
  • एरियन ने इसे कंबिस्थलोई कहा है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनि 8,2,91
  2. उद्योग पर्व महाभारत 31, 19
  3. देखें अलबेरूनी 1,206

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