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शिवकुमार 'बिलगरामी' की रचनाओं में अनूठे बिम्ब और उपमाएं देखने को मिलती हैं। इनकी छंद पर गहरी पकड़ है जिसके कारण इनके गीतों और ग़ज़लों में ग़ज़ब की रवानी देखने को मिलती है।
मैं तुम्हारी ही कृपा से...
मैं तुम्हारी ही कृपा से नित्य निर्मल हो रहा हूँ
मैं तुम्हारा नेह पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ
भाव सुंदर और कोमल
जग रहे हैं इस हृदय में
सद्विचारों के पखेरू
उड़ रहे हैं मन-निलय में
मैं तुम्हारी इस दया से भाव विह्वल हो रहा हूँ
मैं तुम्हारा नेह पाकर....
प्रेम की इक दृष्टि से मैं
तृप्त होता जा रहा हूँ
एक पल के साथ से मैं
सुख युगों का पा रहा हूँ
मैं तुम्हारी पाद-रज से नित्य निश्छल हो रहा हूँ
मैं तुम्हारा नेह पाकर....
भेद के जो बंध थे वो
टूटते ही जा रहे हैं
और भी अवरोध थे जो
वो किनारा पा रहे हैं
मैं नदी सा बह रहा हूँ नित्य कल-कल हो रहा हूँ
मैं तुम्हारा नेह पाकर....
शक्तियाँ कितनी अलौकिक
जग रही तन में निरंतर
पुष्प कितने खिल रहे हैं
दिव्य चेतन मन-पटल पर
मैं निरंतर 'ऊँ' का स्वर मंत्र का बल हो रहा हूँ
मैं तुम्हारा नेह पाकर....