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शिवकुमार 'बिलगरामी' की रचनाओं में अनूठे बिम्ब और उपमाएं देखने को मिलती हैं। इनकी छंद पर गहरी पकड़ है जिसके कारण इनके गीतों और ग़ज़लों में ग़ज़ब की रवानी देखने को मिलती है।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा...
खिड़की से मत कूद के आना, बंद किंवाड़े तोड़ के आना ।।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा, सारे वैभव छोड़ के आना ।।
प्रेम-डगर है राह कँटीली, मित्र तुम्हारा साथ न देंगे ।
हाथ बढ़ाते लोग मिलेंगे, हाथों में पर हाथ न देंगे ।
अपने पैरों से कहना तुम, काँटो पर वो चलना सीखें ।
जलने वाले सड़कों पर हैं, ये तुमको फुटपाथ न देंगे ।
प्रेम समर्थक खुद को कहते, इनका भंडा फोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....
प्रेम नहीं है सुख की बारिश, ये दु:ख का अभ्यास कराये ।
ये न दिखाये कल का सपना, ये कल का इतिहास बताये ।
प्रेम किया है जिसने जग में, उसके अनुभव पूछ के आना ।
प्रेम नहीं है अमृत जैसा, अक्सर जगको रास न आये ।
प्रेम पढ़ा है जिन ग्रंथों में, उनके पन्ने मोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....
मेरी सूनी पर्णकुटी में, खिड़की की तुम आस न रखना ।
गर्म हवा से तपते तन में, ठन्डे जल की प्यास न रखना ।
अपना मन भी छल सकता है, अपने ही दृढ़ विश्वासों को ।
मन की बात समझ खुद लेना, मुझमें तुम विश्वास न रखना ।
घाटा, लाभ तुम्हें क्या होगा, गुणा-भाग सब जोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....