दिव्या रावत

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दिव्या रावत को आज के समय में उत्तराखंड की मशरुरम लेडी के नाम से जाना जाता है। जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर अपनी कंपनी सौम्य फूड प्राइवेट लिमिटेड को कामयाब बनाने के साथ-साथ अपने मिनी मशरूम फ़र्म बिसनेस आईडिया को सब तक पहुँचाया है।

परिचय

दिव्या रावत उत्तराखंड के चमोली की रहने वाली हैं। उनके पिता तेज सिंह आर्मी से रिटायर हैं। दिव्या रावत ने अपनी पढ़ाई दिल्ली एनसीआर के नोएडा स्थित एमटी यूनिवर्सिटी और इग्नू से की है। इसके बाद वह दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रही थीं। दिव्या के पास एक अच्छी पोस्ट भी थी और सैलरी भी अच्छी थी। लेकिन दिव्या इन सब से खुश नहीं थी। दिव्या अपने घर वापस जाना चाहती थीं। लेकिन चमोली जैसे छोटे से गांव में रोजगार के अवसर न के बराबर हैं। दिव्या की जगह कोई ओर होता तो शायद अपनी जॉब से खुश रहता। लेकिन दिव्या के सपने और चाहत कुछ ओर ही थी।

अच्छी गुणवत्ता के कारण सौम्या फूड प्राइवेट लिमिटेड के मशरुम उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश भर में सप्लाई किए जाते है। दिव्या रावत की माने तो ये सिर्फ शुरुआत है। उनका सपना तो उत्तराखंड को एक दिन मशरुम स्टेट बनाने का है। जिसके लिए वो दिन रात मेहनत कर रही हैं। दिव्या ने उन सभी युवाओं के लिए एक उदाहरण है जो अपने दम पर कुछ करने का साहस रखते हैं और अपने साथ-साथ दूसरे के लिए भी सोचते हैं।[1]

मशरुम खेती की शुरुआत

दिव्या रावत ने अपनी जॉब छोड़ने का फैसला किया और उत्तराखंड लौट गई। दिव्या ने साल 2014 में देहरादून से मशरुम प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी फॉर आंत्रेप्रेन्योर द डायरेक्टर ऑफ मशरुम रिसर्च सेंटर से परीक्षण हासिल किया और चमोली लौट गई। उन्होंने अपने घर वालों को बताया कि वो मशरुम की खेती करना चाहती हैं। दिव्या के फैसले नाखुश उनके परिवार वालों ने उन्हें समझाने की कोशिश की। वो वापस दिल्ली लौट जाए लेकिन दिव्या अपना मन बना चुकी थीं। दिव्या ने मात्र 30 हजार से अपना मशरुम की खेती का बिजनेस शुरु किया और धीरे-धीरे दिव्या की मेहनत रंग लाने लगी।

सफलता

दिव्या ने 35 से 40 डिग्री तापमान में मशरुम उगाने से अपना बिजनेस शुरु किया। 35 डिग्री में मशरुम उगाना एक कारनामा ही है, क्योंकि आमतौर पर मशरुम केवल 22 से 23 डिग्री के तापमान पर ही उगाए जाते हैं। दिव्या की कंपनी आज बटन, ओस्टर, मिल्की मशरुम जैसे उच्च कोटि के मशरुम का बिजनेस करती है। दिव्या के इस बिजनेस के कारण चमोली और आसपास के गांव की महिलाओं को रोजगार मिला और उनकी जिंदगी में भी सुधार आने लगा। उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है और पलायन की मुख्य वजह रोजगार है। दिव्या के अपने गांव में ही रोजगार उत्पन्न करने से उनके गांव के लोगों को अब काम की तलाश में कहीं बाहर जाने की जरुरत नहीं थी।[1]

सम्मान

दिव्या रावत की इस कामयाबी के लिए पहले उत्तराखंड सरकार द्वारा और उसके बाद विश्व महिला दिवस पर राष्ट्रपति द्वारा मशरुम क्रांति के लिए सम्मानित किया जा चुका है। यही नही उत्तराखंड सरकार ने दिव्या के कार्यक्षेत्र को 'मशरुम घाटी' घोषित कर दिया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कैसे बनी दिव्या रावत मशरुम लेडी जानिए पूरी कहानी (हिंदी) gyanipandit.com। अभिगमन तिथि: 01 नवंबर, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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