विजय कुमार कार्णिक

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विजय कुमार कार्णिक (अंग्रेज़ी: Vijay Kumar Karnik, जन्म- 6 नवंबर, 1939, नागपुर, महाराष्ट्र) भारतीय वायु सेना में पायलट थे। उन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व के लिए जाना जाता है। भुज हवाई पट्टी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हवाई हमलों में नष्ट हो गई थी, जिसमें पाकिस्तानी हमलावरों ने नैपलम बम गिराए थे। भुज हवाई अड्डे के हमले की तुलना पर्ल हार्बर पर हमले से की जाती है। 14 दिनों में हवाई क्षेत्र पर 92 बमों और 22 रॉकेटों के हमलों के साथ 35 बार छापेमारी की गई। विजय कार्णिक ने स्थानीय क्षेत्रों की 300 महिलाओं की मदद से 3 दिनों के भीतर भुज हवाई अड्डे का पुनर्निर्माण किया था।

परिचय

विजय कार्णिक का जन्म 6 नवंबर, 1939 को पिता श्रीनिवास कार्णिक (एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी) एवं माता ताराबाई कार्णिक के यहां महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। विजय कार्णिक एक महाराष्ट्रियन चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु समुदाय से ताल्लुक रखते है। उनके अलावा उनके परिवार में तीन भाई विनोद, लक्ष्मण एवं अजय एवं एक बहन वसंती भी हैं। उनकी शादी 20 फ़रवरी, 1965 को उषा कार्णिक (शहनाज हुसैन फ्रेंचाइजी की मालिक) से हुई। इनके बेटे का नाम परेश कार्णिक है, जो 'द टाइम्स ग्रुप कंपनी' में काम करता है। इनकी बेटी का नाम शलाका कार्णिक है, जो वीकैनडूइट एक थिएटर ग्रुप में निदेशक है।[1]

शिक्षा

विजय कार्णिक ने अपनी शुरूआती शिक्षा नागपुर के एक स्थानीय स्कूल से प्राप्त की। उसके बाद इन्होने आगे की पढ़ाई के लिए वर्धा शहर में स्थित नागपुर विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिए, जहाँ से उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

कॅरियर

विजय कार्णिक 12 मई 1962 को भारतीय वायुसेना में शामिल किये गए थे। उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भुज में एक स्क्वाड्रन लीडर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विजय कार्णिक ने साल 1962 के दौरान भारत और चीन युद्ध की लड़ाई और 1965 में भारत और पाकिस्तान युद्ध की लड़ाई में हिस्सा लिया था। विजय कार्णिक को विशेष रूप से 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। साल 1967 में उन्हें पुणे में 6 स्क्वाड्रन में तैनात किया गया था, इसके बाद उन्हें 1 अक्टूबर 1985 को विंग कमांडर के रूप में प्रोमोशन दिया गया। 14 अक्टूबर 1986 को विजय कार्णिक भारतीय वायुसेना से रिटायर हो गए।

1971 की लड़ाई

साल 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच जो युद्ध छिड़ा था, जिसे 'बांग्लादेश मुक्ति युद्ध' के नाम से भी जाना जाता था। पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन चंगेज खान' नाम दिया था। यह युद्ध 3 दिसम्बर 1971 को शुरू हुआ और 16 दिसंबर 1971को समाप्त हो गया था। इस युद्द में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक एवं भुज की स्थानीय 300 महिलाओ ने निभाई थी। जब युद्ध समाप्त हो गया तो हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण को भारत का पर्ल हार्बर मोमेंट नाम दिया गया।[1]

हवाई हमले

3 दिसम्बर 1971 को सर्दियों के मौसम में भुज वायु सेना स्टेशन पर 14 दिनों में कुल 35 बार हमला किया गया। इसका मतलब है कि दिन में दो बार से भी ज्यादा हमला किया जा रहा था। अकेले भुज में 92 से भी ज्यादा भयंकर वायु हमले, बमबारी और इन हमलों में 22 रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया था। मुख्य रूप से भुज, भारतीय वायु सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तानी सीमा के निकट है। हालांकि, कई कारणों से उस समय भुज की भारतीय वायु सेना के पास बहुत कम स्टाफ था।

विनाशकारी हमला

सबसे विनाशकारी हमला 8 दिसंबर की शाम को हुआ। पाकिस्तान वायु सेना के सेबर जेट विमानों के एक स्क्वाड्रन ने हवाई पट्टी पर हमला किया, जिसमें 14 से अधिक नैपलम बम गिराए गए। उस समय किसी भी वायु सेना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अन्य दूसरी मिसाइलों और गोला-बारूद के तुलना में नैपलम बमों को इस तरह बनाया गया था कि जहाँ पर भी नैपलम बम से हमला किया जायेगा, वो इलाका पूरी तरह जलकर खाक हो जायेगी, क्योंकि नैपलम बम आग का सेलाभ पैदा करता था। भुज हमले से पहले नैपलम बम अमेरिका द्वारा वियतनाम युद्ध में उपयोग किए गए थे।

नैपलम बम से हमले करने का मतलब था कि जब भी बम जमीन से टकराएगा तो कोई बड़ा विस्फोट नहीं होगा। इसके बजाय जिस जगह वो बम गिरेगा उस जगह को जला देगा और बस सब कुछ भस्म कर देगा। परिणाम आग घंटों तक जलती रहेगी, भले ही आग को बुझाने के लिए कितने ही बढ़िया उपकरण इस्तेमाल किये जायें और बेशक, हमारे पास तब आग बुझाने के लिए बढ़िया उपकरण नहीं थे। कहने की जरूरत नहीं है, भुज की हवाई पट्टी पूरी तरह बर्बाद हो गई थी, जिसका मतलब था कि अब कोई भी विमान उड़ान नहीं भर सकता था।[1]

300 महिलाओ की भूमिका

भारतीय वायु सेना के लिए महत्वपूर्ण हवाई क्षेत्र होने के बावजूद, भुज में तैनात दस्ते में कम स्टाफ था। इसके अलावा, हमले के बाद वायु सेना के लिए हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण के लिए अपने इंजीनियरों और निर्माण दल को भेजना संभव नहीं था। इसलिए स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक को मदद के लिए माधवपुर नाम के एक स्थानीय गांव का रुख करना पड़ा। माधवपुर गांव की 300 महिलाएं आईं और हवाई पट्टी का पूरी तरह से पुनर्निर्माण किया, जिससे भारतीय वायु सेना को जवाबी हमला करने में मदद मिली।

चुनौतियाँ

हवाई पट्टी को दुबारा बनाना कोई आसान काम नहीं था। इसे 72 घंटों के भीतर ही बनाना था और इसे सही से बनाना था। वायु सेना के जहाजों को बिना किसी समस्या और दुर्घटना के उड़ान भरने और सुरक्षित रूप से उतरने के लिए एक बढ़िया रनवे की जरूरत होती है। रनवे के ऊपर, हवाई पट्टी भी लंबी होनी चाहिए जिससे हवाई जहाजों को उड़ान भरने में कोई दिक्कत ना हो। इसके अलावा, पाकिस्तान वायु सेना लगातार आस-पास के हवाई क्षेत्रों में भी छापेमारी कर रही थी। इसलिए, महिलाओं को हवाई क्षेत्र के हिस्से को गाय के गोबर से ढंकना पड़ा, जिससे पाकिस्तानी सेना को 300 महिलाओं द्वारा बनाई जा रही हवाई पट्टी ना दिखाई दे।

महिलाओं की समस्या को सर्दी के मौसम ने और बढ़ा दिया था। सर्दियों के दौरान भुज में तापमान अक्सर 5 डिग्री तक गिर जाता था। आखिरकार, महिलाओं ने मुश्किलों का सामना करते हुए हवाई पट्टी को वापस बना दिया जिसकी बदौलत स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक अपने 2 अधिकारियों और बाकी दल के साथ हमला करने के लिए तैयार थे। स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक और उनके चालक दल ने भी अपने कई विमानों को पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे छापेमारी और बमबारी से सफलतापूर्वक बचाया था।

देशप्रेम की मिशाल

टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ 2010 के एक साक्षात्कार के अनुसार, हवाई पट्टी पर काम करने वाली 300 महिलाओं में से एक ने कहा कि युद्ध समाप्त होने के बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने महिलाओं को 'झांसी की रानी' की उपाधि से सम्मानित किया था। 300 महिलाओं के समूह को 50,000 रुपये का इनाम देने की पेशकश की गयी थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत सारा पैसा था। हालाँकि, महिलाओं ने यह कहते हुए इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उन्होंने जो किया, वह पैसे के लिए नहीं बल्कि अपनी देशभक्ति के कारण किया और क्योंकि हवाई पट्टी का पुनर्निर्माण करना देश को बचाने जैसा था। 2001 के गुजरात भूकंप के कारण पूरे हवाई क्षेत्र और हवाई पट्टी को फिर से बनाना पड़ा।[1]

युद्द की समाप्ति

यह युद्द 3 दिसम्बर, 1971 को शुरू हुआ था और 16 दिसंबर, 1971 को समाप्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 विजय कार्णिक का जीवन परिचय,मूवी, कहानी (हिंदी) shubhamsirohi.com। अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2021।

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