Difference between revisions of "गीता 2:7"
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− | इस प्रकार शिक्षा देने के लिये भगवान् से प्रार्थना करके अब < | + | इस प्रकार शिक्षा देने के लिये भगवान् से प्रार्थना करके अब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> उस प्रार्थना का हेतु बतलाते हुए अपने विचारों को प्रकट करते हैं- |
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− | इसलिये कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याण कारक हो, वह मेरे लिये कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये ।।7।। | + | इसलिये कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा [[धर्म]] के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याण कारक हो, वह मेरे लिये कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, इसलिये आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिये ।।7।। |
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+ | ==संबंधित लेख== | ||
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Latest revision as of 05:50, 4 January 2013
gita adhyay-2 shlok-7 / Gita Chapter-2 Verse-7
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