Difference between revisions of "युद्ध काण्ड वा. रा."

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युद्धकाण्ड में वानरसेना का पराक्रम, रावणकुम्भकर्णादि राक्षसों का अपना पराक्रम-वर्णन, [[विभीषण]]-तिरस्कार, विभीषण का [[राम]] के पास गमन, विभीषण-शरणागति, समुद्र के प्रति क्रोध, नलादि की सहायता से सेतुबन्धन, शुक-सारण-प्रसंग, सरमावृत्तान्त, [[रावण]]-[[अंगद]]-संवाद, [[मेघनाद]]-पराजय, [[कुम्भकर्ण]] आदि राक्षसों का राम के साथ युद्ध-वर्णन, कुम्भकर्णादि राक्षसों का वध, मेघनाद वध, राम-रावण युद्ध, रावण वध, [[मंदोदरी]] विलाप, विभीषण का शोक, राम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक, [[लंका]] से सीता का आनयन, सीता की शुद्धि हेतु [[अग्निदेव|अग्नि]]-प्रवेश, [[हनुमान]], [[सुग्रीव]], अंगद आदि के साथ राम, [[लक्ष्मण]] तथा सीता का [[अयोध्या]] प्रत्यावर्तन, राम का राज्याभिषेक तथा [[भरत]] का युवराज पद पर आसीन होना, सुग्रीवादि वानरों का किष्किन्धा तथा विभीषण का लंका को लौटना, रामराज्य वर्णन और [[रामायण]] पाठ श्रवणफल कथन आदि का निरूपण किया गया है। इस काण्ड में 128 सर्ग तथा सबसे अधिक 5,692 श्लोक प्राप्त होते हैं। शत्रु के जय, उत्साह और लोकापवाद के दोष से मुक्त होने के लिए युद्ध काण्ड का पाठ करना चाहिए। इसे बृहद्धर्मपुराण में लंका काण्ड भी कहा गया है।<ref>शत्रोर्जये समुत्साहे जनवादे विगर्हिते।<br />
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युद्धकाण्ड में वानरसेना का पराक्रम, रावणकुम्भकर्णादि राक्षसों का अपना पराक्रम-वर्णन, [[विभीषण]]-तिरस्कार, विभीषण का [[राम]] के पास गमन, विभीषण-शरणागति, समुद्र के प्रति क्रोध, नलादि की सहायता से सेतुबन्धन, शुक-सारण-प्रसंग, सरमावृत्तान्त, [[रावण]]-[[अंगद]]-संवाद, [[मेघनाद]]-पराजय, [[कुम्भकर्ण]] आदि राक्षसों का राम के साथ युद्ध-वर्णन, कुम्भकर्णादि राक्षसों का वध, मेघनाद वध, राम-रावण युद्ध, रावण वध, [[मंदोदरी]] विलाप, विभीषण का शोक, राम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक, [[लंका]] से सीता का आनयन, सीता की शुद्धि हेतु [[अग्निदेव|अग्नि]]-प्रवेश, [[हनुमान]], [[सुग्रीव]], अंगद आदि के साथ राम, [[लक्ष्मण]] तथा सीता का [[अयोध्या]] प्रत्यावर्तन, राम का राज्याभिषेक तथा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] का युवराज पद पर आसीन होना, सुग्रीवादि वानरों का किष्किन्धा तथा विभीषण का लंका को लौटना, रामराज्य वर्णन और [[रामायण]] पाठ श्रवणफल कथन आदि का निरूपण किया गया है। इस काण्ड में 128 सर्ग तथा सबसे अधिक 5,692 श्लोक प्राप्त होते हैं। शत्रु के जय, उत्साह और लोकापवाद के दोष से मुक्त होने के लिए युद्ध काण्ड का पाठ करना चाहिए। इसे बृहद्धर्मपुराण में लंका काण्ड भी कहा गया है।<ref>शत्रोर्जये समुत्साहे जनवादे विगर्हिते।<br />
 
लंकाकाण्डं पठेत् किं वा श्रृणुयात् स सुखी भवेत्॥(बृहद्धर्मपुराण 26…13)</ref>
 
लंकाकाण्डं पठेत् किं वा श्रृणुयात् स सुखी भवेत्॥(बृहद्धर्मपुराण 26…13)</ref>
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

Revision as of 07:37, 3 September 2010

yuddh kand / lanka kand

yuddhakand mean vanarasena ka parakram, ravanakumbhakarnadi rakshasoan ka apana parakram-varnan, vibhishan-tiraskar, vibhishan ka ram ke pas gaman, vibhishan-sharanagati, samudr ke prati krodh, naladi ki sahayata se setubandhan, shuk-saran-prasang, saramavrittant, ravan-aangad-sanvad, meghanad-parajay, kumbhakarn adi rakshasoan ka ram ke sath yuddh-varnan, kumbhakarnadi rakshasoan ka vadh, meghanad vadh, ram-ravan yuddh, ravan vadh, mandodari vilap, vibhishan ka shok, ram ke dvara vibhishan ka rajyabhishek, lanka se sita ka anayan, sita ki shuddhi hetu agni-pravesh, hanuman, sugriv, aangad adi ke sath ram, lakshman tatha sita ka ayodhya pratyavartan, ram ka rajyabhishek tatha bharat ka yuvaraj pad par asin hona, sugrivadi vanaroan ka kishkindha tatha vibhishan ka lanka ko lautana, ramarajy varnan aur ramayan path shravanaphal kathan adi ka niroopan kiya gaya hai. is kand mean 128 sarg tatha sabase adhik 5,692 shlok prapt hote haian. shatru ke jay, utsah aur lokapavad ke dosh se mukt hone ke lie yuddh kand ka path karana chahie. ise brihaddharmapuran mean lanka kand bhi kaha gaya hai.[1]

tika tippani aur sandarbh

  1. shatrorjaye samutsahe janavade vigarhite.
    lankakandan patheth kian va shrrinuyath s sukhi bhaveth॥(brihaddharmapuran 26…13)