तिलवाड़ा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "हजार" to "हज़ार")
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Tilwara-Cattle-Fair.jpg|thumb|250px|तिलवाड़ा पशु मेला]]
तिलवाड़ा ऐतिहासिक स्थल यह स्थल [[राजस्थान]] के बाड़मेर ज़िले के बालोतरा तहसील मुख्यालय से सोलह किमी. दक्षिण-पश्चिम में [[लूनी नदी]] के बायें किनारे पर स्थित है।  
'''तिलवाड़ा''' ऐतिहासिक स्थल यह स्थल [[राजस्थान]] के बाड़मेर ज़िले के बालोतरा तहसील मुख्यालय से 16 किमी दक्षिण-पश्चिम में [[लूनी नदी]] के बायें किनारे पर स्थित है।  
==उत्खनन==  
==उत्खनन==  
तिलवाड़ा का उत्खनन कार्य 1967-68 ई. में एन. मिश्रा पूना विजय कुमार राजस्थान राज्य पुरातत्त्व एवं संग्रहालय था एल.सी. लैसनिक (हिडलबर्ग विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में किया गया। इस स्थल से प्राप्त सांस्कृतिक जमाव 60 सेमी. का है। इसकी सतह पर लघुपाषाण उपकरण तथा मृद्पात्रों के ठीकरे मिलते हैं। उत्खनन में यहाँ से फर्श के चारों ओर गोल पत्थर जमाये हुए मिले हैं। तिलवाड़ा से गोल झोंपड़ियों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से एक 70 सेमी. गहरा एवं 20 सेमी. मुखवाला गड्डा मिला है जो उत्तरोत्तर नीचे की ओर संकरा होता गया है। इस गड्डे में कुछ मृद्पात्रों के टुकड़े व हड्डियाँ तथा राख मिली है। इस स्थल से क्वार्टस क्वार्ट् जाइट, चर्ट एवं कार्नेलियन से बनी हुई क्रोड, ब्लैड ट्रैपीज, प्वाइंट तथा ट्रायंगल इत्यादि उपकरण उपलब्ध हैं। यहाँ से प्राप्त मृद्पात्रों के टुकड़े निःसन्देह चाक निर्मित हैं। यहाँ से कुचली हुई हड्डियाँ मिली हैं। वे निश्चित रूप से बड़े जानवरों की हैं। जिसमें वनमहिष, वृषभ, सूअर आदि मुख्य हैं। पक्षियों का मांस इस काल का मानव बहुत अधिक चाव से खाता था। छोटे-छोटे तीरनुमा उपकरणों की उपस्थिति इसका स्पष्ट संकेत देती है।  
तिलवाड़ा का उत्खनन कार्य 1967-68 ई. में एन. मिश्रा पूना विजय कुमार राजस्थान राज्य पुरातत्त्व एवं संग्रहालय था एल.सी. लैसनिक (हिडलबर्ग विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में किया गया। इस स्थल से प्राप्त सांस्कृतिक जमाव 60 सेमी का है। इसकी सतह पर लघुपाषाण उपकरण तथा मृद्पात्रों के ठीकरे मिलते हैं। उत्खनन में यहाँ से फर्श के चारों ओर गोल पत्थर जमाये हुए मिले हैं। तिलवाड़ा से गोल झोंपड़ियों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से एक 70 सेमी गहरा एवं 20 सेमी मुखवाला गड्डा मिला है जो उत्तरोत्तर नीचे की ओर संकरा होता गया है। इस गड्डे में कुछ मृद्पात्रों के टुकड़े व हड्डियाँ तथा राख मिली है। इस स्थल से क्वार्टस क्वार्ट् जाइट, चर्ट एवं कार्नेलियन से बनी हुई क्रोड, ब्लैड ट्रैपीज, प्वाइंट तथा ट्रायंगल इत्यादि उपकरण उपलब्ध हैं। यहाँ से प्राप्त मृद्पात्रों के टुकड़े निःसन्देह चाक निर्मित हैं। यहाँ से कुचली हुई हड्डियाँ मिली हैं। वे निश्चित रूप से बड़े जानवरों की हैं। जिसमें वनमहिष, वृषभ, सूअर आदि मुख्य हैं। पक्षियों का मांस इस काल का मानव बहुत अधिक चाव से खाता था। छोटे-छोटे तीरनुमा उपकरणों की उपस्थिति इसका स्पष्ट संकेत देती है। उत्तरपाषाण काल राजस्थान में लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है। तिलवाड़ा से उत्तरपाषाणयुगीन उपकरण मिले हैं। इस युग में उपकरणों का आकार छोटा और कौशल से भरपूर हो गया था। लकड़ी तथा हड्डी की लम्बी नली में गोंद से चिपकाकर इन उपकरणों का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। राजस्थान के बागोर के अतिरिक्त तिलवाड़ा ही ऐसा क्षेत्र है, जहाँ से इतने वृहद स्तर पर उत्तरपाषाणकालीन पुरासामग्री प्राप्त हुई है। 


उत्तरपाषाण काल राजस्थान में लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है। तिलवाड़ा से उत्तरपाषाणयुगीन उपकरण मिले हैं। इस युग में उपकरणों का आकार छोटा और कौशल से भरपूर हो गया था। लकड़ी तथा हड्डी की लम्बी नली में गोंद से चिपकाकर इन उपकरणों का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। राजस्थान के बागोर के अतिरिक्त तिलवाड़ा ही ऐसा क्षेत्र है, जहाँ से इतने वृहद स्तर पर उत्तरपाषाणकालीन पुरासामग्री प्राप्त हुई है। 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
Line 18: Line 15:
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 12:45, 11 March 2013

thumb|250px|तिलवाड़ा पशु मेला तिलवाड़ा ऐतिहासिक स्थल यह स्थल राजस्थान के बाड़मेर ज़िले के बालोतरा तहसील मुख्यालय से 16 किमी दक्षिण-पश्चिम में लूनी नदी के बायें किनारे पर स्थित है।

उत्खनन

तिलवाड़ा का उत्खनन कार्य 1967-68 ई. में एन. मिश्रा पूना विजय कुमार राजस्थान राज्य पुरातत्त्व एवं संग्रहालय था एल.सी. लैसनिक (हिडलबर्ग विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में किया गया। इस स्थल से प्राप्त सांस्कृतिक जमाव 60 सेमी का है। इसकी सतह पर लघुपाषाण उपकरण तथा मृद्पात्रों के ठीकरे मिलते हैं। उत्खनन में यहाँ से फर्श के चारों ओर गोल पत्थर जमाये हुए मिले हैं। तिलवाड़ा से गोल झोंपड़ियों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यहाँ से एक 70 सेमी गहरा एवं 20 सेमी मुखवाला गड्डा मिला है जो उत्तरोत्तर नीचे की ओर संकरा होता गया है। इस गड्डे में कुछ मृद्पात्रों के टुकड़े व हड्डियाँ तथा राख मिली है। इस स्थल से क्वार्टस क्वार्ट् जाइट, चर्ट एवं कार्नेलियन से बनी हुई क्रोड, ब्लैड ट्रैपीज, प्वाइंट तथा ट्रायंगल इत्यादि उपकरण उपलब्ध हैं। यहाँ से प्राप्त मृद्पात्रों के टुकड़े निःसन्देह चाक निर्मित हैं। यहाँ से कुचली हुई हड्डियाँ मिली हैं। वे निश्चित रूप से बड़े जानवरों की हैं। जिसमें वनमहिष, वृषभ, सूअर आदि मुख्य हैं। पक्षियों का मांस इस काल का मानव बहुत अधिक चाव से खाता था। छोटे-छोटे तीरनुमा उपकरणों की उपस्थिति इसका स्पष्ट संकेत देती है। उत्तरपाषाण काल राजस्थान में लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है। तिलवाड़ा से उत्तरपाषाणयुगीन उपकरण मिले हैं। इस युग में उपकरणों का आकार छोटा और कौशल से भरपूर हो गया था। लकड़ी तथा हड्डी की लम्बी नली में गोंद से चिपकाकर इन उपकरणों का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। राजस्थान के बागोर के अतिरिक्त तिलवाड़ा ही ऐसा क्षेत्र है, जहाँ से इतने वृहद स्तर पर उत्तरपाषाणकालीन पुरासामग्री प्राप्त हुई है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख