सतगुर साँचा, सूरिवाँ -कबीर: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:18, 11 January 2014
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सतगुर साँचा, सूरिवाँ, तातैं लोहि लुहार। |
अर्थ सहित व्याख्या
इस साखी में कबीरदास ने सद्गुरु के लिए सोनार और लोहार का दृष्टान्त दिया है। सोनार की भाँति गुरु शिष्य को साधना की कसौटी पर परखता है फिर लोहार की भाँति तपाकर शिष्य के मन को सही आकार देता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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