हिमाचल प्रदेश की संस्कृति: Difference between revisions
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[[पहाड़ी जाति|पहाड़ी लोगों]] के मेले और त्योहार उल्लासपूर्ण गीतों और नृत्य के अवसर होते हैं। उत्कृष्ट शैली में बनी किन्नौर शॉलें, [[कुल्लू]] की विशिष्ट ऊनी टोपियाँ और [[चंबा]] के क़सीदाकारी किये हुए रूमाल त्योहार के रंगीन परिधानों को और भी विशिष्टता प्रदान करते हैं। [[हिमाचल प्रदेश]] अपनी कांगड़ा घाटी चित्रकला शैली के लिए भी जाना जाता है। [[शिमला]] की पहाड़ियाँ, कुल्लू घाटी (मनाली शहर सहित) और डलहौज़ी पर्यटकों के बड़े आकर्षण हैं। स्कीइंग, [[गॉल्फ़]], मछली पकड़ना, लम्बी यात्रा और पर्वतारोहण ऐसी गतिविधियाँ हैं, जिनके लिए [[हिमाचल प्रदेश]] एक आदर्श स्थान है। कुछ पौराणिक धर्मस्थलों पर पूजा-अर्चना के लिए हिमाचल और उसके पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं। | |||
कुल्लू घाटी देवताओं की घाटी के रूप में जानी जाती है; इसके [[चीड़]] और [[देवदार]] के जंगल, [[फूल|फूलों]] से लदे हरे-भरे मैदान और [[फल|फलों]] के बगीचे प्रत्येक शरद ऋतु में होने वाले दशहरा महोत्सव के लिए माहौल तैयार कर देते हैं। इस मौक़े पर मन्दिरों के [[देवता|देवताओं]] को सजी हुई पालकियों में गाजे-बाजे के साथ और नाचते हुए निकाला जाता है। 1959 में ल्हासा पर चीन के क़ब्ज़े के परिणामस्वरूप दलाई लामा [[तिब्बत]] से पलायन कर [[धर्मशाला]] आ गए थे और यहीं रहने लगे। इसके बाद से ही बौद्धों के लिए (ख़ासकर तिब्बतियों के लिए) धर्मशाला पवित्र स्थान हो गया है। वर्ष 2000 की शुरुआत में 14 वर्षीय 17वें करमापा भी [[तिब्बत]] से भागकर धर्मशाला आ गए और शरण माँगी। | |||
हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से [[हिन्दी]], काँगड़ी, [[पहाड़ी भाषा|पहाड़ी]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], तथा [[डोगरी भाषा|डोगरी]] आदि भाषाऐं बोली जाती हैं। [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]], [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] और [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]] आदि यहाँ के प्रमुख [[धर्म]] हैं। हिमाचल प्रदेश के [[कुल्लू]], [[सिरमौर]], [[मण्डी हिमाचल प्रदेश|मण्डी]] ऊपरी क्षेत्र किन्नौर, [[शिमला]] इत्यादि जनपदों में [[नाटी नृत्य]] मुख्य रूप से किया जाता है। मध्यकाल में जब उत्तर-पश्चिम से आक्रमण हुए तो राजपूताना और आसपास के क्षेत्रों के राजवंश यहां आकर बस गए। और अन्होनें अपनी रियासतें स्थापित कीं इन राजवंशों ने यहाँ के स्थानीय लोगों को सभ्य-संस्कृत बनाया और [[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] की अद्धितीय धरोहर पहाड़ी कला और स्थापत्य कला को प्रश्रय दिया। | |||
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पहाड़ी लोगों के मेले और त्योहार उल्लासपूर्ण गीतों और नृत्य के अवसर होते हैं। उत्कृष्ट शैली में बनी किन्नौर शॉलें, कुल्लू की विशिष्ट ऊनी टोपियाँ और चंबा के क़सीदाकारी किये हुए रूमाल त्योहार के रंगीन परिधानों को और भी विशिष्टता प्रदान करते हैं। हिमाचल प्रदेश अपनी कांगड़ा घाटी चित्रकला शैली के लिए भी जाना जाता है। शिमला की पहाड़ियाँ, कुल्लू घाटी (मनाली शहर सहित) और डलहौज़ी पर्यटकों के बड़े आकर्षण हैं। स्कीइंग, गॉल्फ़, मछली पकड़ना, लम्बी यात्रा और पर्वतारोहण ऐसी गतिविधियाँ हैं, जिनके लिए हिमाचल प्रदेश एक आदर्श स्थान है। कुछ पौराणिक धर्मस्थलों पर पूजा-अर्चना के लिए हिमाचल और उसके पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं।
कुल्लू घाटी देवताओं की घाटी के रूप में जानी जाती है; इसके चीड़ और देवदार के जंगल, फूलों से लदे हरे-भरे मैदान और फलों के बगीचे प्रत्येक शरद ऋतु में होने वाले दशहरा महोत्सव के लिए माहौल तैयार कर देते हैं। इस मौक़े पर मन्दिरों के देवताओं को सजी हुई पालकियों में गाजे-बाजे के साथ और नाचते हुए निकाला जाता है। 1959 में ल्हासा पर चीन के क़ब्ज़े के परिणामस्वरूप दलाई लामा तिब्बत से पलायन कर धर्मशाला आ गए थे और यहीं रहने लगे। इसके बाद से ही बौद्धों के लिए (ख़ासकर तिब्बतियों के लिए) धर्मशाला पवित्र स्थान हो गया है। वर्ष 2000 की शुरुआत में 14 वर्षीय 17वें करमापा भी तिब्बत से भागकर धर्मशाला आ गए और शरण माँगी।
हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से हिन्दी, काँगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी, तथा डोगरी आदि भाषाऐं बोली जाती हैं। हिन्दू, बौद्ध और सिक्ख आदि यहाँ के प्रमुख धर्म हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, सिरमौर, मण्डी ऊपरी क्षेत्र किन्नौर, शिमला इत्यादि जनपदों में नाटी नृत्य मुख्य रूप से किया जाता है। मध्यकाल में जब उत्तर-पश्चिम से आक्रमण हुए तो राजपूताना और आसपास के क्षेत्रों के राजवंश यहां आकर बस गए। और अन्होनें अपनी रियासतें स्थापित कीं इन राजवंशों ने यहाँ के स्थानीय लोगों को सभ्य-संस्कृत बनाया और भारतीय चित्रकला की अद्धितीय धरोहर पहाड़ी कला और स्थापत्य कला को प्रश्रय दिया।
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