राजकमल कला मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
'''राजकमल कला मंदिर''' एक फ़िल्म स्टूडियो है जिसका निर्माण निर्देशक, फ़िल्मकार और बेहतरीन अभिनेता [[वी. शांताराम]] ने किया था। शांताराम ने प्रभात फ़िल्म कंपनी को छोड़कर राजकमल कला मंदिर का निर्माण किया था। इसके लिए उन्होंने 'शकुंतला' फ़िल्म बनाई। इसका 1947 में कनाडा की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शन किया गया।  
'''राजकमल कला मंदिर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajkamal Kala Mandir'') अपने समय के प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक, फ़िल्मकार और बेहतरीन अभिनेता [[वी. शांताराम]] द्वारा स्थापित किया गया था। वी. शांताराम ने [[प्रभात फ़िल्म कम्पनी]] को छोड़कर राजकमल कला मंदिर का निर्माण किया था। इसके लिए उन्होंने 'शकुंतला' फ़िल्म बनाई। इसका [[1947]] में कनाडा की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शन किया गया था।
 
वी. शांताराम के 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' से दूर हो जाने से इस कंपनी की फ़िल्म निर्माण की गति काफ़ी धीमी पड़ गई थी। फिर भी विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर फ़िल्मों का निर्माण करते रहे। सन [[1944]] में राजा नेने के निर्देशन में बनी [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्म "दहा बजे" [[हिंदी]] में "दस बजे" जो एक प्रेमकथा पर आधारित थी, बहुत चर्चित हुई। सन [[1946]] में पीआईआई एल संतोषी ने इस कंपनी के लिए "हम एक हैं" नामक फ़िल्म बनाई, जो [[देवानंद]] की पहली फ़िल्म थी। सन [[1953]] में प्रभात फ़िल्म कंपनी अंतत: बंद हो गई।<ref name="a">{{cite web |url=https://www.sahityakunj.net/LEKHAK/M/MVenkateshwar/hindi_cinema_ke_vikaas_mein_film_companyion_Alekh.htm |title=हिंदी सिनेमा के विकास में फ़िल्म निर्माण संस्थाओं की भूमिका |accessmonthday= 29 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=sahityakunj.net |language=हिंदी }}</ref>
==फ़िल्म निर्माण==
राजकमल कला मंदिर के अंतर्गत [[वी. शांताराम]] ने अपनी कलात्मक प्रतिभा का पूर्ण परिचय दिया। शांताराम एक सुलझे निर्माता के साथ-साथ सशक्त निर्देशक और अभिनेता भी थे। उनकी फ़िल्में अपनी कलात्मक सौन्दर्य के लिए विशेष रूप से पहचानी जाती थीं और पसंद की जातीं थीं। उनके फ़िल्मों का [[संगीत]] और कला पक्ष बहुत सशक्त होता था। प्राकृतिक दृश्यों का फिल्मांकन अद्भुत रंगों से भारी सुंदरता के साथ एक सम्मोहन पैदा करता था। उनकी फ़िल्में सुधारवादी, संदेशात्मक और देशभक्ति प्रधान होती थीं। भारतीयता का भाव उसमें पूरी तरह से समाया हुआ होता था। भारतीय सांस्कृतिक वैभव से समृद्ध उनकी फ़िल्में देश–विदेश में सराही जाती थीं।
====डॉ. कोटनिस की अमर कहानी====
[[वी. शांताराम]]] की फ़िल्मों में सबसे अधिक प्रतिष्ठित और चर्चित फ़िल्म "डॉ. कोटनिस की अमर कहानी" ([[1945]]) थी। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका वी. शांताराम ने स्वयं निभाई थी। यह फ़िल्म द्वितीय विश्वयुद्ध के परिदृश्य में एक कर्तव्यपरायण भारतीय डॉक्टर की [[चीन]] की युद्ध भूमि में अपनी सेवा प्रदान कर वहीं बस जाने की मर्मस्पर्शी [[कथा]] पर आधारित है। [[भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन|भारतीय स्वाधीनता आंदोलन]] में भाग लेने वाले भारतीयों के लिए यह फ़िल्म बहुत ही प्रेरणादायक सिद्ध हुई। इस फ़िल्म को [[अमेरिका]] और वेनिस ([[1947]]) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया।<ref name="a"/>
==सफलता==
सन [[1946]] में "मास्टर विनायक" के निर्देशन में राजकमल कला मंदिर के लिए "जीवन यात्रा" नामक फ़िल्म बनी, जिसमें गायिका [[लता मंगेशकर]] ने एक ग्रामीण लड़की का अभिनय किया था। इस फ़िल्म का एक गीत "आओ आज़ादी के गीत गाते चलें", उन दिनों बहुत प्रसिद्ध हुआ। सन [[1947]] में बाबूराव पेंटर के साथ मिलकर वी. शांताराम ने [[मराठी भाषा|मराठी]] में "लोक शाहीर राम जोशी" और [[हिंदी]] में "मतवाला शायर राम जोशी" का निर्माण किया। इसके बाद वी. शांताराम ने अपनी कलात्मकता सामाजिक समस्याओं और [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] और [[नृत्य कला]] पर आधारित कथा वस्तुओं पर फ़िल्म निर्माण शुरू कर दिया। ये सारी फ़िल्में एक से बढ़कर एक सफल और लोकप्रिय हुईं। इन फ़िल्मों के गीत आज भी सुनाई देते हैं। 'तूफान और दिया', 'दो आँखें बारह हाथ', 'झनक झनक पायल बाजे', 'स्त्री', 'नवरंग', 'जल बिन बिजली नृत्य बिन बिजली', 'गीत गाया पत्थरों ने', 'पिंजरा' आदि फ़िल्में वी. शांताराम की चिरस्मरणीय फ़िल्में हैं।




Line 5: Line 13:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{फ़िल्म स्टूडियो}}
{{फ़िल्म स्टूडियो}}
[[Category:फ़िल्म स्टूडियो]][[Category:सिनेमा]][[Category:सिनेमा_कोश]]
[[Category:फ़िल्म स्टूडियो]][[Category:सिनेमा]][[Category:सिनेमा_कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 10:42, 29 June 2017

राजकमल कला मंदिर (अंग्रेज़ी: Rajkamal Kala Mandir) अपने समय के प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक, फ़िल्मकार और बेहतरीन अभिनेता वी. शांताराम द्वारा स्थापित किया गया था। वी. शांताराम ने प्रभात फ़िल्म कम्पनी को छोड़कर राजकमल कला मंदिर का निर्माण किया था। इसके लिए उन्होंने 'शकुंतला' फ़िल्म बनाई। इसका 1947 में कनाडा की राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शन किया गया था।

वी. शांताराम के 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' से दूर हो जाने से इस कंपनी की फ़िल्म निर्माण की गति काफ़ी धीमी पड़ गई थी। फिर भी विष्णुकांत दामले और फत्तेलाल अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर फ़िल्मों का निर्माण करते रहे। सन 1944 में राजा नेने के निर्देशन में बनी मराठी फ़िल्म "दहा बजे" हिंदी में "दस बजे" जो एक प्रेमकथा पर आधारित थी, बहुत चर्चित हुई। सन 1946 में पीआईआई एल संतोषी ने इस कंपनी के लिए "हम एक हैं" नामक फ़िल्म बनाई, जो देवानंद की पहली फ़िल्म थी। सन 1953 में प्रभात फ़िल्म कंपनी अंतत: बंद हो गई।[1]

फ़िल्म निर्माण

राजकमल कला मंदिर के अंतर्गत वी. शांताराम ने अपनी कलात्मक प्रतिभा का पूर्ण परिचय दिया। शांताराम एक सुलझे निर्माता के साथ-साथ सशक्त निर्देशक और अभिनेता भी थे। उनकी फ़िल्में अपनी कलात्मक सौन्दर्य के लिए विशेष रूप से पहचानी जाती थीं और पसंद की जातीं थीं। उनके फ़िल्मों का संगीत और कला पक्ष बहुत सशक्त होता था। प्राकृतिक दृश्यों का फिल्मांकन अद्भुत रंगों से भारी सुंदरता के साथ एक सम्मोहन पैदा करता था। उनकी फ़िल्में सुधारवादी, संदेशात्मक और देशभक्ति प्रधान होती थीं। भारतीयता का भाव उसमें पूरी तरह से समाया हुआ होता था। भारतीय सांस्कृतिक वैभव से समृद्ध उनकी फ़िल्में देश–विदेश में सराही जाती थीं।

डॉ. कोटनिस की अमर कहानी

वी. शांताराम] की फ़िल्मों में सबसे अधिक प्रतिष्ठित और चर्चित फ़िल्म "डॉ. कोटनिस की अमर कहानी" (1945) थी। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका वी. शांताराम ने स्वयं निभाई थी। यह फ़िल्म द्वितीय विश्वयुद्ध के परिदृश्य में एक कर्तव्यपरायण भारतीय डॉक्टर की चीन की युद्ध भूमि में अपनी सेवा प्रदान कर वहीं बस जाने की मर्मस्पर्शी कथा पर आधारित है। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाले भारतीयों के लिए यह फ़िल्म बहुत ही प्रेरणादायक सिद्ध हुई। इस फ़िल्म को अमेरिका और वेनिस (1947) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया।[1]

सफलता

सन 1946 में "मास्टर विनायक" के निर्देशन में राजकमल कला मंदिर के लिए "जीवन यात्रा" नामक फ़िल्म बनी, जिसमें गायिका लता मंगेशकर ने एक ग्रामीण लड़की का अभिनय किया था। इस फ़िल्म का एक गीत "आओ आज़ादी के गीत गाते चलें", उन दिनों बहुत प्रसिद्ध हुआ। सन 1947 में बाबूराव पेंटर के साथ मिलकर वी. शांताराम ने मराठी में "लोक शाहीर राम जोशी" और हिंदी में "मतवाला शायर राम जोशी" का निर्माण किया। इसके बाद वी. शांताराम ने अपनी कलात्मकता सामाजिक समस्याओं और भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य कला पर आधारित कथा वस्तुओं पर फ़िल्म निर्माण शुरू कर दिया। ये सारी फ़िल्में एक से बढ़कर एक सफल और लोकप्रिय हुईं। इन फ़िल्मों के गीत आज भी सुनाई देते हैं। 'तूफान और दिया', 'दो आँखें बारह हाथ', 'झनक झनक पायल बाजे', 'स्त्री', 'नवरंग', 'जल बिन बिजली नृत्य बिन बिजली', 'गीत गाया पत्थरों ने', 'पिंजरा' आदि फ़िल्में वी. शांताराम की चिरस्मरणीय फ़िल्में हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख