वासुकीनाथ देवघर: Difference between revisions

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यहाँ कई धर्मशालायें हैं। मंदिर के पास ही चंद्रकूप सरोवर है।  
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===पौराणिक कथा===
===पौराणिक कथा===
प्रसिद्ध शिवभक्त सुप्रिय को मारने दारुक राक्षस आया तब [[शंकर|शंकर जी]] ने प्रकट होकर उसे मार दिया। कालांतर में वासु नामक भील ने यहाँ स्थित लिंग विग्रह ढूंढ़ा, अतः इसका नाम वासुकीनाथ पड़ा। यहाँ से ईशान कोण में वासुकी पर्वत है। [[समुद्र मंथन|अमृत-मंथन]] के पश्चात [[देवता|देवताओं]] को छोड़ने पर [[वासुकी नाग]] ने वहाँ विश्राम किया था। फिर उन्होंने यहाँ लिंगार्चन किया<ref> {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=73|url=}}</ref>।
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Latest revision as of 07:34, 7 November 2017

वासुकीनाथ वैद्यनाथ से 28 मील पूर्व दुमका जाने वाले मार्ग पर स्थित है। देवघर या भागलपुर से यहाँ के लिए बसें मिल जाती हैं। इस अंचल के लोगों की मान्यता के अनुसार यही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

  • झारखंड के शहर देवघर में कई पर्यटन स्थल हैं जिनमें से ये एक है।
  • वासुकीनाथ अपने शिव मंदिर के लिए जाना जाता है।
  • बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकीनाथ में दर्शन नहीं किए जाते।
  • यह मंदिर देवघर से 45.20 किलोमीटर दूर स्थित हिन्दुओं का यह तीर्थ स्थल दुमका ज़िले में स्थित है।
  • सावन मास में देवघर की तरह यहाँ भी हिन्दू श्रद्धालुओं की काफ़ी भीड़ रहती है।
  • यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है।
  • इसके इतिहास का संबंध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है।
  • देवघर तथा वासुकीनाथ में नेपाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल से काफ़ी तादाद में पर्यटक आते हैं।
  • वासुकीनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं।

दर्शनीय स्थल

यहाँ का मुख्य मंदिर श्रीवासुकीनाथ का है। इसके अतिरिक्त पार्वती, काली, अन्नपूर्णा, राधा कृष्ण, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भैरवी, धूमावती, मातंगी, कार्तिकेय, गणेश, सूर्य, छिन्नमस्ता, बगला, त्रिपुर भैरवी, कमला, वटुक भैरव, काल भैरव, सुदर्शन चक्र तथा हनुमान के मंदिर यहाँ पास-पास हैं। कभी यह शाक्तमत का मुख्य स्थान था। यहाँ कई धर्मशालायें हैं। मंदिर के पास ही चंद्रकूप सरोवर है।

पौराणिक कथा

प्रसिद्ध शिवभक्त सुप्रिय को मारने दारुक राक्षस आया तब शंकर जी ने प्रकट होकर उसे मार दिया। कालांतर में वासु नामक भील ने यहाँ स्थित लिंग विग्रह ढूंढ़ा, अतः इसका नाम वासुकीनाथ पड़ा। यहाँ से ईशान कोण में वासुकी पर्वत है। अमृत-मंथन के पश्चात् देवताओं को छोड़ने पर वासुकी नाग ने वहाँ विश्राम किया था। फिर उन्होंने यहाँ लिंगार्चन किया[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 73 |

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