त्वचा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Skin.jpg|thumb|300px|त्वचा<br />Skin]]
[[चित्र:Skin.jpg|thumb|300px|त्वचा<br />Skin]]
([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Skin) इस लेख में [[मानव शरीर]] से संबंधित उल्लेख है। त्वक संवेदांग हमारी त्वचा में स्थित अनेक कायिक संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के स्वतंत्र और शाखान्वित सिरों के रूप में होते हैं तन्त्रिका तन्तुओं के सिरे पूर्णतः नग्न अर्थात् '''पुटिका विहीन'''  या '''पुटिका युक्त''' अर्थात '''सेवंदी देहाणुओं''' के रूप में हो सकते हैं। कार्यों के आधार पर त्वक् संवेदांगों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है।
([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Skin) इस लेख में [[मानव शरीर]] से संबंधित उल्लेख है। त्वक संवेदांग हमारी त्वचा में स्थित अनेक कायिक संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के स्वतंत्र और शाखान्वित सिरों के रूप में होते हैं तन्त्रिका तन्तुओं के सिरे पूर्णतः नग्न अर्थात् '''पुटिका विहीन'''  या '''पुटिका युक्त''' अर्थात् '''सेवंदी देहाणुओं''' के रूप में हो सकते हैं। कार्यों के आधार पर त्वक् संवेदांगों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है।
====<u>पीड़ा ग्राही संवेदांग</u>====
====<u>पीड़ा ग्राही संवेदांग</u>====
त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में जगह–जगह शाखान्वित संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के जाल फैले रहते हैं। जाल के अनेक तन्तुओं के सिरे स्वतंत्र एवं नग्न होते हैं। ऐसे सिरे पीड़ा ग्राही संवेदांगों का कार्य करते हैं। सम्भवतः शरीर में खुजली एवं जलन का ज्ञान इन्हीं के माध्यम से होता है।  
त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में जगह–जगह शाखान्वित संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के जाल फैले रहते हैं। जाल के अनेक तन्तुओं के सिरे स्वतंत्र एवं नग्न होते हैं। ऐसे सिरे पीड़ा ग्राही संवेदांगों का कार्य करते हैं। सम्भवतः शरीर में खुजली एवं जलन का ज्ञान इन्हीं के माध्यम से होता है।  
====<u>स्पर्श ग्राही संवेदांग</u>====  
====<u>स्पर्श ग्राही संवेदांग</u>====  
ये भी त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में स्थित होते हैं। इनमें संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के अन्तिम सिरे बहुत–सी शाखाओं में विभाजित होते हैं। प्रत्येक शाखान्वित सिरे के चारों ओर संयोजी ऊतक की पुटिका बनी रहती है। इस प्रकार के सिरे सूक्ष्म संवेदी देहाणुओं के रूप में होते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं।  
ये भी त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में स्थित होते हैं। इनमें संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के अन्तिम सिरे बहुत–सी शाखाओं में विभाजित होते हैं। प्रत्येक शाखान्वित सिरे के चारों ओर [[संयोजी ऊतक]] की पुटिका बनी रहती है। इस प्रकार के सिरे सूक्ष्म संवेदी देहाणुओं के रूप में होते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं।  
*'''बालों की पुटिकाएँ:''' स्पर्श उद्दीपन ग्रहण करते हैं।  
*'''बालों की पुटिकाएँ:''' स्पर्श उद्दीपन ग्रहण करते हैं।  
*'''मीसनर के देहाणु:''' स्पर्श ग्राही होते हैं।  
*'''मीसनर के देहाणु:''' स्पर्श ग्राही होते हैं।  
Line 11: Line 11:
*'''रूफिनी के छोर अंग:''' [[ताप]] के संवेदांग होते हैं।  
*'''रूफिनी के छोर अंग:''' [[ताप]] के संवेदांग होते हैं।  


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 20: Line 19:
}}
}}


{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Latest revision as of 07:51, 7 November 2017

thumb|300px|त्वचा
Skin
(अंग्रेज़ी:Skin) इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। त्वक संवेदांग हमारी त्वचा में स्थित अनेक कायिक संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के स्वतंत्र और शाखान्वित सिरों के रूप में होते हैं तन्त्रिका तन्तुओं के सिरे पूर्णतः नग्न अर्थात् पुटिका विहीन या पुटिका युक्त अर्थात् सेवंदी देहाणुओं के रूप में हो सकते हैं। कार्यों के आधार पर त्वक् संवेदांगों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है।

पीड़ा ग्राही संवेदांग

त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में जगह–जगह शाखान्वित संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के जाल फैले रहते हैं। जाल के अनेक तन्तुओं के सिरे स्वतंत्र एवं नग्न होते हैं। ऐसे सिरे पीड़ा ग्राही संवेदांगों का कार्य करते हैं। सम्भवतः शरीर में खुजली एवं जलन का ज्ञान इन्हीं के माध्यम से होता है।

स्पर्श ग्राही संवेदांग

ये भी त्वचा की अधिचर्म तथा चर्म में स्थित होते हैं। इनमें संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के अन्तिम सिरे बहुत–सी शाखाओं में विभाजित होते हैं। प्रत्येक शाखान्वित सिरे के चारों ओर संयोजी ऊतक की पुटिका बनी रहती है। इस प्रकार के सिरे सूक्ष्म संवेदी देहाणुओं के रूप में होते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं।

  • बालों की पुटिकाएँ: स्पर्श उद्दीपन ग्रहण करते हैं।
  • मीसनर के देहाणु: स्पर्श ग्राही होते हैं।
  • मरकेल की तश्तरियाँ: दबाव ग्राही होते हैं।
  • क्राउस के देहाणु: शीत संवेदांग होते हैं।
  • रूफिनी के छोर अंग: ताप के संवेदांग होते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख