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व्युत्पत्ति के अनुसार 'अंग' शब्द का अर्थ 'उपकारक' होता है। अत: जिसके द्वारा किसी वस्तु का स्वरूप जानने में सहायता प्राप्त होती है, उसे भी अंग कहते हैं। इसीलिए [[वेद]] के उच्चारण, अर्थ तथा प्रतिपाद्य कर्मकांड के ज्ञान में सहायक तथा उपयोगी शास्त्रों को 'वेदांग' कहते हैं। इनकी संख्या छह है<ref name="a">{{cite web |url=http://www.bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97 |title=अंग |accessmonthday=18 मई |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bharatkhoj.org |language=हिंदी }}</ref>-
#शब्दमय मंत्रों के यथावत्‌ उच्चारण की शिक्षा देने वाला अंग 'शिक्षा' कहलाता है।
#यज्ञों के कर्मकांड का प्रयोजक शास्त्र 'कल्प' माना जाता है जो श्रोतसूत्र, गुहासूत्र तथा धर्मसूत्र के भेद से तीन प्रकार का होता है।
#पद के स्वरूप का निर्देशक व्याकरण।
#पदों की व्युत्पत्ति बतलाकर उनका अर्थ निर्णायक 'निरुक्त'।
#छंदों का परिचायक छंद।
#[[यज्ञ]] के उचित काल का समर्थक ज्योतिष।
 
 
[[साहित्य]], [[दर्शन]] एवं साधन में क्रमश: प्रकरणों, तत्वों और विभागों अथवा अवस्थाओं का विभाजन अंग रूप में मिलता है। [[बौद्ध]] धार्मिक साहित्य में धर्म के नौ अंग बतलाए गए हैं- सुत्त, गेय्य, वैय्याकरण, गाथा, उदान, इतिवुत्तक, अच्युतधम्म तथा वेदल्ल। वेदांग की तरह बौद्ध प्रवचनों के ये अंग स्वीकृत हैं।
 
इसी प्रकार जैनागमों के अंगों की संख्या 11 है- आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्म कथा, उपसकदया, अंतकृद्दसा, अनुत्तरोपयादिकदशा, प्रश्नव्याकरणानि, विपाकश्रुत।
 
अंगों का एक अर्थ प्रकरण भी है। विभिन्न साधनात्मक क्रियाओं एवं अवस्थाओं अथवा तत्वों का अंग रूप में विभाजन मिलता है, जैसे [[बुद्ध]] का अष्टांगिक मार्ग, [[पतंजलि]] का अष्टांगयोग। इस प्रकार का विभाजन परवर्ती साधनात्मक साहित्य में भी देखने को मिलता है, जैसे संत रज्जव के 'अंगवधु' और 'सर्वगी' नामक संग्रह ग्रंथ। वीरशैव सिद्धांत मत के अनुसार परम शिव के दो रूपों की उत्पत्ति लिंग (शिव) और अंग (जीव) के रूप में बताई गई है। प्रथम तो उपास्य है और दूसरा उपासक। यह उत्पत्ति शक्ति के शोभमात्र से होती है। इस अंग की शक्ति निवृत्ति उत्पन्न करने वाली भक्ति है। इस अंग के तीन प्रकार बताए गए हैं- योगांग, भोगांग, और त्यागांग। अंग के मलों का निराकरण भक्ति से ही संभव है, जिसकी प्राप्ति परम [[शिव]] के अनुग्रह से ही होती है।<ref name="a"/>
 
 
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Latest revision as of 07:41, 18 May 2018

चित्र:Disamb2.jpg अंग एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अंग (बहुविकल्पी)

व्युत्पत्ति के अनुसार 'अंग' शब्द का अर्थ 'उपकारक' होता है। अत: जिसके द्वारा किसी वस्तु का स्वरूप जानने में सहायता प्राप्त होती है, उसे भी अंग कहते हैं। इसीलिए वेद के उच्चारण, अर्थ तथा प्रतिपाद्य कर्मकांड के ज्ञान में सहायक तथा उपयोगी शास्त्रों को 'वेदांग' कहते हैं। इनकी संख्या छह है[1]-

  1. शब्दमय मंत्रों के यथावत्‌ उच्चारण की शिक्षा देने वाला अंग 'शिक्षा' कहलाता है।
  2. यज्ञों के कर्मकांड का प्रयोजक शास्त्र 'कल्प' माना जाता है जो श्रोतसूत्र, गुहासूत्र तथा धर्मसूत्र के भेद से तीन प्रकार का होता है।
  3. पद के स्वरूप का निर्देशक व्याकरण।
  4. पदों की व्युत्पत्ति बतलाकर उनका अर्थ निर्णायक 'निरुक्त'।
  5. छंदों का परिचायक छंद।
  6. यज्ञ के उचित काल का समर्थक ज्योतिष।


साहित्य, दर्शन एवं साधन में क्रमश: प्रकरणों, तत्वों और विभागों अथवा अवस्थाओं का विभाजन अंग रूप में मिलता है। बौद्ध धार्मिक साहित्य में धर्म के नौ अंग बतलाए गए हैं- सुत्त, गेय्य, वैय्याकरण, गाथा, उदान, इतिवुत्तक, अच्युतधम्म तथा वेदल्ल। वेदांग की तरह बौद्ध प्रवचनों के ये अंग स्वीकृत हैं।

इसी प्रकार जैनागमों के अंगों की संख्या 11 है- आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्म कथा, उपसकदया, अंतकृद्दसा, अनुत्तरोपयादिकदशा, प्रश्नव्याकरणानि, विपाकश्रुत।

अंगों का एक अर्थ प्रकरण भी है। विभिन्न साधनात्मक क्रियाओं एवं अवस्थाओं अथवा तत्वों का अंग रूप में विभाजन मिलता है, जैसे बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग, पतंजलि का अष्टांगयोग। इस प्रकार का विभाजन परवर्ती साधनात्मक साहित्य में भी देखने को मिलता है, जैसे संत रज्जव के 'अंगवधु' और 'सर्वगी' नामक संग्रह ग्रंथ। वीरशैव सिद्धांत मत के अनुसार परम शिव के दो रूपों की उत्पत्ति लिंग (शिव) और अंग (जीव) के रूप में बताई गई है। प्रथम तो उपास्य है और दूसरा उपासक। यह उत्पत्ति शक्ति के शोभमात्र से होती है। इस अंग की शक्ति निवृत्ति उत्पन्न करने वाली भक्ति है। इस अंग के तीन प्रकार बताए गए हैं- योगांग, भोगांग, और त्यागांग। अंग के मलों का निराकरण भक्ति से ही संभव है, जिसकी प्राप्ति परम शिव के अनुग्रह से ही होती है।[1]


शब्द संदर्भ
हिन्दी अङ्ग अथवा अंग, शरीर के विभिन्न अवयव जैसे-आँख, कान, हाथ आदि, प्राचीनकाल में सेना के चार प्रकार-हाथी, घोड़े, रथ और पैदल, वेद के अध्ययन के लिए आवश्यक 6 विषय-शिक्षा,कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द,ज्योतिष, एक प्रेम-सूचक या आत्मीयता प्रकट करने वाला सम्बोधन, ओर, पार्श्व, तरफ़, पक्ष।
-व्याकरण    पुल्लिंग
-उदाहरण   हर ज्यों अनंग पर, गरुड़ भुजंग पर, कौरव के अंग पर, पारथ ज्यों देखिए।[2]
-विशेष    उक्त शिक्षा आदि 6 अंग 'वेदांग' कहे जाते हैं।
-विलोम   
-पर्यायवाची    अवयव, गात, गात्र, पक्ष, व्यंजन, साधन,
संस्कृत अङ्ग्+अच्
अन्य ग्रंथ
संबंधित शब्द
संबंधित लेख

अन्य शब्दों के अर्थ के लिए देखें शब्द संदर्भ कोश


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टीका टिप्पणीऔर संदर्भ

  1. 1.0 1.1 अंग (हिंदी) bharatkhoj.org। अभिगमन तिथि: 18 मई, 2018।
  2. भूषण ग्रन्थ.(408)