कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 426: Difference between revisions
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-[[भास]] | -[[भास]] | ||
-[[भारवि]] | -[[भारवि]] | ||
||'भवभूति' [[संस्कृत]] के महान [[कवि]] एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके [[नाटक]] [[कालिदास]] के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में '[[महावीरचरित]]' की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी भट्टगोपाल के पोते थे। इनके [[पिता]] का नाम नीलकंठ और [[माता]] का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भवभूति]], [[महावीरचरित]] | |||
{वह कौन-सा पक्षी है, जिसकी तुलना ध्यानस्थ योगी से की जाती है? | {वह कौन-सा पक्षी है, जिसकी तुलना ध्यानस्थ योगी से की जाती है? | ||
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-[[सारस]] | -[[सारस]] | ||
-[[हंस]] | -[[हंस]] | ||
||[[चित्र:Herons.jpg|right|border|80px|बगुला]]'बगुला' पक्षियों की एक प्रजाति है। यह नदियों, [[झील|झीलों]] और [[समुद्र|समुद्रों]] के किनारे मिलने वाले लम्बी टांगों व गर्दनों वाले चिड़िया का एक कुल है। इस पक्षी की 64 प्रजातियां हैं। बगुला संसार भर में पाया जाता है। [[एशिया]], [[अफ़्रीका]], [[अमेरिका]], [[यूरोप]] महाद्वीप पर यह पक्षी मिल जाता है। [[भारत]] में भी इस पक्षी की मौजूदगी है। बगुला बहुत ही चालाक पक्षी है। यह बड़ी ही चालाकी से पानी में मछलियों का शिकार करता है। यह पानी में काफ़ी देर तक बिना हिले-डुले सीधा खड़ा रहता है। यही कारण है कि इसे 'ध्यानस्थ योगी' कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बगुला]] | |||
{[[ | {[[विक्रम संवत]] का आरम्भ किस [[मास]] की किस [[तिथि]] को होता है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[चैत्र]] [[अमावस्या]] | -[[चैत्र]] [[अमावस्या]] | ||
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-[[वैशाख पूर्णिमा]] | -[[वैशाख पूर्णिमा]] | ||
+[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] | +[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] | ||
||[[चित्र:Hindu-Months.jpg|right|border|80px|हिंदू माह]]'विक्रम संवत' अत्यन्त प्राचीन [[संवत]] है। साथ ही ये गणित की दृष्टि से अत्यन्त सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किये गये है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[चैत्र|चैत्र मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को [[ब्रह्मा]] ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन [[तिथि]] को 'नव संवत्सर पर्व' के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार [[सूर्य]] इस [[ऋतुएँ|ऋतु]] में अपने राशि-चक्र की प्रथम [[मेष राशि|राशि मेष]] में प्रवेश करता है। [[भारत]] में [[वसंत ऋतु]] के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है, क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विक्रम संवत]] | |||
{किस [[संत]] [[कवि]] के पदों का संग्रह '[[बीजक]]' कहलाता है? | {किस [[संत]] [[कवि]] के पदों का संग्रह '[[बीजक]]' कहलाता है? | ||
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-[[रहीम|रहीमदास]] | -[[रहीम|रहीमदास]] | ||
+[[कबीर|कबीरदास]] | +[[कबीर|कबीरदास]] | ||
||[[चित्र:Sant-Kabirdas.jpg|right|border|80px|कबीर]]'कबीर' का नाम 'कबीरदास', 'कबीर साहब' एवं 'संत कबीर' जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। ये [[मध्यकालीन भारत]] के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर [[कबीरपंथ]] नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। [[कबीर]] सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी [[कविता]] का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और [[धर्म]] के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उड़ाता चला गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कबीर]] | |||
{[[आदि शंकराचार्य]] किस मत/वाद के प्रवर्तक थे? | {[[आदि शंकराचार्य]] किस मत/वाद के प्रवर्तक थे? | ||
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+[[अद्वैतवाद]] | +[[अद्वैतवाद]] | ||
-[[शुद्धाद्वैतवाद]] | -[[शुद्धाद्वैतवाद]] | ||
||[[चित्र:Gaudapadacharya.jpg|right|border|80px|गौड़पादाचार्य]]'अद्वैतवाद' [[भारत]] के सनातन दर्शन [[वेदांत]] के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है। इसके अनुयायी मानते हैं कि [[उपनिषद|उपनिषदों]] में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है और यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यस्थित है। जहाँ तक इसके उपलब्ध पाठ का प्रश्न है, इसका ऐतिहासिक आरंभ [[मांडूक्योपनिषद|मांडूक उपनिषद]] पर [[छंद]] रूप में लिखित [[टीका]] 'मांडूक्य कारिका' के लेखक [[गौड़पाद]] से जुड़ा हुआ है। '[[अद्वैतवाद]]' विचारधारा की नीव [[गौड़पादाचार्य]] ने 215 कारीकायों ([[श्लोक|श्लोकों]]) से की थी। इनके शिष्य गोविन्दाचार्य हुए और उनके शिष्य [[दक्षिण भारत]] में जन्मे [[आदि शंकराचार्य|स्वामी शंकराचार्य]] हुए, जिन्होंने इन कारीकायों का भाष्य रचा था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अद्वैतवाद]] | |||
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