सनातन गोस्वामी की वंश परम्परा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "डा." to "डॉ.")
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
{{सनातन गोस्वामी विषय सूची}}
[[चित्र:madan-mohan-temple-1.jpg|मदन मोहन जी का मंदिर, [[वृन्दावन]]<br /> Madan Mohan temple, Vrindavan|thumb|200px]]


{| style="background:transparent; float:right"
[[सनातन गोस्वामी]] [[चैतन्य महाप्रभु]] के प्रमुख शिष्य थे। रूप और [[सनातन गोस्वामी|सनातन]] के असाधारण व्यक्तित्व की गरिमा का सही मूल्यांकन करने के लिए उनकी वंश परम्परा पर दृष्टि डालना आवशृयक है। उनके पूर्वपुरुष दक्षिण [[भारत]] में रहते थे। वे राजवंश के थे और जैसे राजकार्य में [[दक्ष]] थे वैसे ही शास्त्र-विद्या में प्रवीण। उनके भतीजे [[जीव गोस्वामी|श्रीजीव गोस्वामी]] ने लघुवैष्णवतोषणी के अन्त में अपनी वंश परम्परा का वर्णन इस प्रकार किया है—
|-valign="top"
|
[[चित्र:madan-mohan-temple-1.jpg|मदन मोहन जी का मंदिर, [[वृन्दावन]]<br /> Madan Mohan temple, Vrindavan|thumb|200px]]
|
{{सनातन गोस्वामी विषय सूची}}
|}


रूप और [[सनातन गोस्वामी|सनातन]] के असाधारण व्यक्तित्व की गरिमा का सही मूल्यांकन करने के लिए उनकी वंश परम्परा पर दृष्टि डालना आवशृयक है। उनके पूर्वपुरुष दक्षिण [[भारत]] में रहते थे। वे राजवंश के थे और जैसे राजकार्य में [[दक्ष]] थे वैसे ही शास्त्र-विद्या में प्रवीण। उनके भतीजे [[जीव गोस्वामी|श्रीजीव गोस्वामी]] ने लघुवैष्णवतोषणी के अन्त में अपनी वंश परम्परा का वर्णन इस प्रकार किया है—
[[कर्नाटक]] देश के एक बड़े पराक्रमी राजा थे श्रीसर्वज्ञ जगद्गुरु।<ref>डॉ. दीनेशचन्द्रसेन और श्री नगेन्द्रनाथ बसु ने जगद्गुरु का आविर्भाव-काल चतुर्दश शताब्दी के शेष भाग में निर्दिष्ट किया है।</ref> वे भरद्वाज गोत्र के थे। बड़े धर्मनिष्ठ और वेदवित होने के कारण वे राजमण्डली के पूज्य पात्र थे। उनके पुत्र राजा अनिरुद्ध [[यजुर्वेद]] के अद्वितीय उपदेष्टा थे। अनिरुद्ध के दो पुत्र हुए-रूपेश्वर और हरिहर। रूपेश्वर शास्त्रविद्या में और हरिहर शस्त्र-विद्या में प्रवीण थे। वैकुण्ठ प्राप्ति के दिन अनिरुद्ध ने अपने [[राज्य]] का दोनों पुत्र में बँटवारा कर दिया था। पर हरिहर ने रूपेश्वर का राज्य छीन लिया। रूपेश्वर राज्यच्युत हो पौरस्त देश चले गये। वहाँ अपने सखा शिखरेश्वर के राज्य में मुख से वास करने लगे। उनके पद्मनाभ नाम के एक गुणवान पुत्र हुए। वे [[यजुर्वेद]] और समस्त [[उपनिषद|उपनिषदों]] के श्रेष्ठ ज्ञाता थे। <br />
[[गंगा नदी|गंगा]] के तीर पर वास करने की इच्छा से वे शिखर देश परित्याग कर राजा दनुजमर्दन के आह्नान पर नवहट्ट (नैहाटी)<ref> कुछ लोगों का मत है कि यहाँ तात्पर्य वर्धमान ज़िला के अन्तर्गत वर्तमान नैहाटी से है। पर डॉ. सुकुमारसेन द्वारा आविष्कृत सनातन, रूप और जीव के परिचय पत्र में उल्लेख है कि पद्मनाभ शिखर देश से कुमारहट्ट चले गये (डॉ. सुकुमारसेन, बांला साहित्येर [[इतिहास]], प्रथम खण्ड, पूर्वार्ध, 3 य सं0 पृ0 302-303)। इससे सिद्ध है कि तात्पर्य कुमार हट्ट के सन्निकट नैहाटी से है।</ref> चले आये। उनके अठारह कन्या और पाँच पुत्र हुए। पुत्रों के नाम थे- पुरुषोत्तम, जगन्नाथ, नारायण, मुरारी और मुकुन्द। यशस्वी मुकुन्द के पुत्र हुए कुमार। कुमार किसी द्रोह के कारण नवहट्ट छोड़कर बंगदेश (पूर्व बंग) चले गये।<ref>भक्तिरत्नाकर के अनुसार वे बंगदेश के दक्षिण प्रान्त में बाकला चन्द्रद्वीप में जाकर रहने लगे (भक्ति रत्नाकर 1/561-565)।</ref> कुमार के भी कई पुत्र हुए, जिनके वैष्णव समाज में विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए तीन- सनातन, रूप और वल्लभ (अनुपम)। इनमें सनातन सबसे बड़े और रूप उनसे छोटे और वल्लभ उनसे छोटे।


[[कर्नाटक]] देश के एक बड़े पराक्रमी राजा थे श्रीसर्वज्ञ जगद्गुरु।<ref>डा. दीनेशचन्द्रसेन और श्री नगेन्द्रनाथ बसु ने जगद्गुरु का आविर्भाव-काल चतुर्दश शताब्दी के शेष भाग में निर्दिष्ट किया है।</ref> वे भरद्वाज गोत्र के थे। बड़े धर्मनिष्ठ और वेदवित होने के कारण वे राजमण्डली के पूज्य पात्र थे। उनके पुत्र राजा अनिरुद्ध [[यजुर्वेद]] के अद्वितीय उपदेष्टा थे। अनिरुद्ध के दो पुत्र हुए-रूपेश्वर और हरिहर। रूपेश्वर शास्त्रविद्या में और हरिहर शस्त्र-विद्या में प्रवीण थे। वैकुण्ठ प्राप्ति के दिन अनिरुद्ध ने अपने [[राज्य]] का दोनों पुत्र में बँटवारा कर दिया था। पर हरिहर ने रूपेश्वर का राज्य छीन लिया। रूपेश्वर राज्यच्युत हो पौरस्त देश चले गये। वहाँ अपने सखा शिखरेश्वर के राज्य में मुख से वास करने लगे। उनके पद्मनाभ नाम के एक गुणवान पुत्र हुए। वे [[यजुर्वेद]] और समस्त [[उपनिषद|उपनिषदों]] के श्रेष्ठ ज्ञाता थे। <br />
{{लेख क्रम2 |पिछला=सनातन गोस्वामी और हुसैनशाह|पिछला शीर्षक=सनातन गोस्वामी और हुसैनशाह|अगला शीर्षक=सनातन गोस्वामी नीलाचल में|अगला=सनातन गोस्वामी नीलाचल में}}
[[गंगा नदी|गंगा]] के तीर पर वास करने की इच्छा से वे शिखर देश परित्याग कर राजा दनुजमर्दन के आह्नान पर नवहट्ट (नैहाटी)<ref> कुछ लोगों का मत है कि यहाँ तात्पर्य वर्धमान ज़िला के अन्तर्गत वर्तमान नैहाटी से है। पर डा. सुकुमारसेन द्वारा आविष्कृत सनातन, रूप और जीव के परिचय पत्र में उल्लेख है कि पद्मनाभ शिखर देश से कुमारहट्ट चले गये (डा. सुकुमारसेन, बांला साहित्येर [[इतिहास]], प्रथम खण्ड, पूर्वार्ध, 3 य सं0 पृ0 302-303)। इससे सिद्ध है कि तात्पर्य कुमार हट्ट के सन्निकट नैहाटी से है।</ref> चले आये। उनके अठारह कन्या और पाँच पुत्र हुए। पुत्रों के नाम थे- पुरुषोत्तम, जगन्नाथ, नारायण, मुरारी और मुकुन्द। यशस्वी मुकुन्द के पुत्र हुए कुमार। कुमार किसी द्रोह के कारण नवहट्ट छोड़कर बंगदेश (पूर्व बंग) चले गये।<ref>भक्तिरत्नाकर के अनुसार वे बंगदेश के दक्षिण प्रान्त में बाकला चन्द्रद्वीप में जाकर रहने लगे (भक्ति रत्नाकर 1/561-565)।</ref> कुमार के भी कई पुत्र हुए, जिनके वैष्णव समाज में विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए तीन- सनातन, रूप और वल्लभ (अनुपम)। इनमें सनातन सबसे बड़े और रूप उनसे छोटे और वल्लभ उनसे छोटे।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}

Latest revision as of 09:58, 4 February 2021

सनातन गोस्वामी विषय सूची

[[चित्र:madan-mohan-temple-1.jpg|मदन मोहन जी का मंदिर, वृन्दावन
Madan Mohan temple, Vrindavan|thumb|200px]]

सनातन गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य थे। रूप और सनातन के असाधारण व्यक्तित्व की गरिमा का सही मूल्यांकन करने के लिए उनकी वंश परम्परा पर दृष्टि डालना आवशृयक है। उनके पूर्वपुरुष दक्षिण भारत में रहते थे। वे राजवंश के थे और जैसे राजकार्य में दक्ष थे वैसे ही शास्त्र-विद्या में प्रवीण। उनके भतीजे श्रीजीव गोस्वामी ने लघुवैष्णवतोषणी के अन्त में अपनी वंश परम्परा का वर्णन इस प्रकार किया है—

कर्नाटक देश के एक बड़े पराक्रमी राजा थे श्रीसर्वज्ञ जगद्गुरु।[1] वे भरद्वाज गोत्र के थे। बड़े धर्मनिष्ठ और वेदवित होने के कारण वे राजमण्डली के पूज्य पात्र थे। उनके पुत्र राजा अनिरुद्ध यजुर्वेद के अद्वितीय उपदेष्टा थे। अनिरुद्ध के दो पुत्र हुए-रूपेश्वर और हरिहर। रूपेश्वर शास्त्रविद्या में और हरिहर शस्त्र-विद्या में प्रवीण थे। वैकुण्ठ प्राप्ति के दिन अनिरुद्ध ने अपने राज्य का दोनों पुत्र में बँटवारा कर दिया था। पर हरिहर ने रूपेश्वर का राज्य छीन लिया। रूपेश्वर राज्यच्युत हो पौरस्त देश चले गये। वहाँ अपने सखा शिखरेश्वर के राज्य में मुख से वास करने लगे। उनके पद्मनाभ नाम के एक गुणवान पुत्र हुए। वे यजुर्वेद और समस्त उपनिषदों के श्रेष्ठ ज्ञाता थे।
गंगा के तीर पर वास करने की इच्छा से वे शिखर देश परित्याग कर राजा दनुजमर्दन के आह्नान पर नवहट्ट (नैहाटी)[2] चले आये। उनके अठारह कन्या और पाँच पुत्र हुए। पुत्रों के नाम थे- पुरुषोत्तम, जगन्नाथ, नारायण, मुरारी और मुकुन्द। यशस्वी मुकुन्द के पुत्र हुए कुमार। कुमार किसी द्रोह के कारण नवहट्ट छोड़कर बंगदेश (पूर्व बंग) चले गये।[3] कुमार के भी कई पुत्र हुए, जिनके वैष्णव समाज में विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए तीन- सनातन, रूप और वल्लभ (अनुपम)। इनमें सनातन सबसे बड़े और रूप उनसे छोटे और वल्लभ उनसे छोटे।


left|30px|link=सनातन गोस्वामी और हुसैनशाह|पीछे जाएँ सनातन गोस्वामी की वंश परम्परा right|30px|link=सनातन गोस्वामी नीलाचल में|आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. डॉ. दीनेशचन्द्रसेन और श्री नगेन्द्रनाथ बसु ने जगद्गुरु का आविर्भाव-काल चतुर्दश शताब्दी के शेष भाग में निर्दिष्ट किया है।
  2. कुछ लोगों का मत है कि यहाँ तात्पर्य वर्धमान ज़िला के अन्तर्गत वर्तमान नैहाटी से है। पर डॉ. सुकुमारसेन द्वारा आविष्कृत सनातन, रूप और जीव के परिचय पत्र में उल्लेख है कि पद्मनाभ शिखर देश से कुमारहट्ट चले गये (डॉ. सुकुमारसेन, बांला साहित्येर इतिहास, प्रथम खण्ड, पूर्वार्ध, 3 य सं0 पृ0 302-303)। इससे सिद्ध है कि तात्पर्य कुमार हट्ट के सन्निकट नैहाटी से है।
  3. भक्तिरत्नाकर के अनुसार वे बंगदेश के दक्षिण प्रान्त में बाकला चन्द्रद्वीप में जाकर रहने लगे (भक्ति रत्नाकर 1/561-565)।

संबंधित लेख