रूमा पाल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "सेवानिवृत " to "सेवानिवृत्त ")
m (Text replacement - "विलंब" to "विलम्ब")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 35: Line 35:
|शीर्षक 5=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=[[उच्चतम न्यायालय]] में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने [[भारत सरकार]] द्वारा मोबाइल फोन की खरीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था।
|अन्य जानकारी=[[उच्चतम न्यायालय]] में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने [[भारत सरकार]] द्वारा मोबाइल फोन की ख़रीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|14:09, 7 मई 2017 (IST)}}
|अद्यतन={{अद्यतन|14:09, 7 मई 2017 (IST)}}
Line 43: Line 43:
रूमा पाल का जन्म 3 जून, 1941 को हुआ था। उन्होंने विश्व-भारती विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण की थी। फिर नागपुर विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. तथा ऑक्सफ़ोर्ड से बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने वर्ष [[1948]] में [[कोलकाता उच्च न्यायालय]] में वकालत आरंभ की।
रूमा पाल का जन्म 3 जून, 1941 को हुआ था। उन्होंने विश्व-भारती विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण की थी। फिर नागपुर विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. तथा ऑक्सफ़ोर्ड से बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने वर्ष [[1948]] में [[कोलकाता उच्च न्यायालय]] में वकालत आरंभ की।
==कॅरियर==
==कॅरियर==
न्यायमूर्ति रूमा पाल [[अगस्त]], [[1990]] में कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं और [[जनवरी]], [[2000]] में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ([[उच्चतम न्यायालय]]) में पदोन्नत किया गया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट में नये न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और तत्कालीन [[राष्ट्रपति]] [[के. आर. नारायणन]] के बीच विवाद हो गया। राष्ट्रपति नारायणन इस सूची के साथ न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन का नाम भी जोड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसके लिए तैयार नहीं था। इस गतिरोध के चलते न्यायमूर्ति रूमा पाल, दोराई स्वामी राजू और योगेश कुमार सभरवाल की नियुक्ति को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में एक-दो माह का विलंब हुआ। सुप्रीम कोर्ट की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में [[28 जनवरी]], 2000 को उन्हें नियुक्त किया गया। [[3 जून]], [[2006]] को रूमा पाल सेवानिवृत्त हो गयीं।
न्यायमूर्ति रूमा पाल [[अगस्त]], [[1990]] में कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं और [[जनवरी]], [[2000]] में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ([[उच्चतम न्यायालय]]) में पदोन्नत किया गया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट में नये न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और तत्कालीन [[राष्ट्रपति]] [[के. आर. नारायणन]] के बीच विवाद हो गया। राष्ट्रपति नारायणन इस सूची के साथ न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन का नाम भी जोड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसके लिए तैयार नहीं था। इस गतिरोध के चलते न्यायमूर्ति रूमा पाल, दोराई स्वामी राजू और योगेश कुमार सभरवाल की नियुक्ति को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में एक-दो माह का विलम्ब हुआ। सुप्रीम कोर्ट की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में [[28 जनवरी]], 2000 को उन्हें नियुक्त किया गया। [[3 जून]], [[2006]] को रूमा पाल सेवानिवृत्त हो गयीं।


[[उच्चतम न्यायालय]] में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता का निर्धारण न्यायाधीश के कार्यकाल की अवधि से होता है। यदि न्यायमूर्ति सभरवाल और रूमा पाल ने एक साथ शपथ ग्रहण किया होता तो वर्ष [[2005]] में दोनों ही मुख्य न्यायाधीश पद के लिए बराबर वरिष्ठता प्राप्त होते। इस स्थिति में उच्चतम न्यायालय को ‘टाइ-ब्रेकर’ के लिए नाम के अक्षरों का क्रम या [[उच्च न्यायालय]] में उनके कार्यावधि के आधार पर यह निर्णय करना पड़ता कि मुख्य न्यायाधीश कौन बनेगा। वैसे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सभरवाल की कार्यावधि रूमा पाल से अधिक थी, लेकिन अक्षरों के क्रम से न्यायमूर्ति रूमा पाल पहले आती थीं। इन न्यायाधीशों का शपथ ग्रहण समारोह उच्चतम न्यायालय की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में [[28 जनवरी]], 2000 को रखा गया। न्यायमूर्ति सभरवाल और दोराई स्वामी राजू के शपथ ग्रहण के कुछ घंटे बाद रूमा पाल ने शपथ ग्रहण किया, लेकिन वरिष्ठता क्रम में वह इन्हीं कुछ घंटों से पिछड़ गयीं और देश अपनी पहली महिला मुख्य न्यायाधीश पाने से वंचित रह गया। योगेश कुमार सभरवाल और [[के. आर. नारायणन|राष्ट्रपति के. आर. नारायणन]] की पसंद के. जी. बालाकृष्णन नियत समय पर [[भारत के मुख्य न्यायाधीश]] बने।<ref>{{cite web |url= http://www.prabhatkhabar.com/news/47137-story.html|title=रूमा पाल, न्यायप्रियता का संकल्प |accessmonthday= 05 मई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=prabhatkhabar.com |language= हिन्दी}}</ref>
[[उच्चतम न्यायालय]] में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता का निर्धारण न्यायाधीश के कार्यकाल की अवधि से होता है। यदि न्यायमूर्ति सभरवाल और रूमा पाल ने एक साथ शपथ ग्रहण किया होता तो वर्ष [[2005]] में दोनों ही मुख्य न्यायाधीश पद के लिए बराबर वरिष्ठता प्राप्त होते। इस स्थिति में उच्चतम न्यायालय को ‘टाइ-ब्रेकर’ के लिए नाम के अक्षरों का क्रम या [[उच्च न्यायालय]] में उनके कार्यावधि के आधार पर यह निर्णय करना पड़ता कि मुख्य न्यायाधीश कौन बनेगा। वैसे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सभरवाल की कार्यावधि रूमा पाल से अधिक थी, लेकिन अक्षरों के क्रम से न्यायमूर्ति रूमा पाल पहले आती थीं। इन न्यायाधीशों का शपथ ग्रहण समारोह उच्चतम न्यायालय की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में [[28 जनवरी]], 2000 को रखा गया। न्यायमूर्ति सभरवाल और दोराई स्वामी राजू के शपथ ग्रहण के कुछ घंटे बाद रूमा पाल ने शपथ ग्रहण किया, लेकिन वरिष्ठता क्रम में वह इन्हीं कुछ घंटों से पिछड़ गयीं और देश अपनी पहली महिला मुख्य न्यायाधीश पाने से वंचित रह गया। योगेश कुमार सभरवाल और [[के. आर. नारायणन|राष्ट्रपति के. आर. नारायणन]] की पसंद के. जी. बालाकृष्णन नियत समय पर [[भारत के मुख्य न्यायाधीश]] बने।<ref>{{cite web |url= http://www.prabhatkhabar.com/news/47137-story.html|title=रूमा पाल, न्यायप्रियता का संकल्प |accessmonthday= 05 मई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=prabhatkhabar.com |language= हिन्दी}}</ref>
Line 53: Line 53:




[[उच्चतम न्यायालय]] में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने [[भारत सरकार]] द्वारा मोबाइल फोन की खरीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था। उन्होंने अपने एक निर्णय में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के न रहने की स्थिति में पत्नी द्वारा तलाक मांगने को उचित ठहराया था, जो एक बहुत ही प्रगतिशील निर्णय था।
[[उच्चतम न्यायालय]] में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने [[भारत सरकार]] द्वारा मोबाइल फोन की ख़रीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था। उन्होंने अपने एक निर्णय में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के न रहने की स्थिति में पत्नी द्वारा तलाक मांगने को उचित ठहराया था, जो एक बहुत ही प्रगतिशील निर्णय था।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}

Latest revision as of 09:05, 10 February 2021

रूमा पाल
पूरा नाम रूमा पाल
जन्म 3 जून, 1941
पति/पत्नी समरादित्य पाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र सर्वोच्च न्यायपालिका
शिक्षा एल.एल.बी., बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ
विद्यालय विश्व-भारती विश्वविद्यालय, नागपुर विश्वविद्यालय, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी
प्रसिद्धि उच्चतम न्यायालय की तीसरी महिला न्यायाधीश
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायपालिका
कार्य काल जनवरी, 2000 से 3 जून, 2006 (उच्चतम न्यायालय)
अन्य जानकारी उच्चतम न्यायालय में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने भारत सरकार द्वारा मोबाइल फोन की ख़रीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था।
अद्यतन‎

रूमा पाल (अंग्रेज़ी: Ruma Pal, जन्म- 3 जून, 1941) भारत की प्रसिद्ध महिला न्यायधीश रही हैं। उच्चतम न्यायालय के पूरे इतिहास में न्यायाधीश बनने वाली वे तीसरी महिला हैं, जो 3 जून, 2006 को सेवानिवृत्त हुईं। न्यायमूर्ति रूमा पाल उच्च न्यायपालिका में बहुत ईमानदार, विनम्र व विवेकशील मानी गयी हैं। अपने कार्यकाल के दौरान वे किसी भी सामाजिक या व्यक्तिगत समारोह आदि में शामिल होने से बचती रहीं। यहाँ तक की अमेरिकी विश्वविद्यालय के बुलावे पर एक सम्मेलन में भाग लेने से भी इंकार कर दिया। एक न्यायाधीश के रूप में उन्हें किसी अन्य संस्था से अपनी यात्रा का टिकट लेना स्वीकार्य नहीं था। आज के दौर में सर्वोच्च न्यायपालिका में न सिर्फ़ न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया, बल्कि चयनित व्यक्तियों की ईमानदारी, सच्चाई और योग्यता भी बहस के घेरे में है, वहीं रूमा पाल न्यायपालिका में इसके उलट एक दुर्लभ व्यक्तित्व रहीं। केवल इसलिए नहीं कि वे एक महिला जज थीं, बल्कि इसलिए भी कि उनकी न्यायप्रियता और सत्यनिष्ठा ने इस संस्था को बहुत समृद्ध किया।

परिचय

रूमा पाल का जन्म 3 जून, 1941 को हुआ था। उन्होंने विश्व-भारती विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण की थी। फिर नागपुर विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. तथा ऑक्सफ़ोर्ड से बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1948 में कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत आरंभ की।

कॅरियर

न्यायमूर्ति रूमा पाल अगस्त, 1990 में कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं और जनवरी, 2000 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) में पदोन्नत किया गया। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट में नये न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के बीच विवाद हो गया। राष्ट्रपति नारायणन इस सूची के साथ न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन का नाम भी जोड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसके लिए तैयार नहीं था। इस गतिरोध के चलते न्यायमूर्ति रूमा पाल, दोराई स्वामी राजू और योगेश कुमार सभरवाल की नियुक्ति को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में एक-दो माह का विलम्ब हुआ। सुप्रीम कोर्ट की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में 28 जनवरी, 2000 को उन्हें नियुक्त किया गया। 3 जून, 2006 को रूमा पाल सेवानिवृत्त हो गयीं।

उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता का निर्धारण न्यायाधीश के कार्यकाल की अवधि से होता है। यदि न्यायमूर्ति सभरवाल और रूमा पाल ने एक साथ शपथ ग्रहण किया होता तो वर्ष 2005 में दोनों ही मुख्य न्यायाधीश पद के लिए बराबर वरिष्ठता प्राप्त होते। इस स्थिति में उच्चतम न्यायालय को ‘टाइ-ब्रेकर’ के लिए नाम के अक्षरों का क्रम या उच्च न्यायालय में उनके कार्यावधि के आधार पर यह निर्णय करना पड़ता कि मुख्य न्यायाधीश कौन बनेगा। वैसे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सभरवाल की कार्यावधि रूमा पाल से अधिक थी, लेकिन अक्षरों के क्रम से न्यायमूर्ति रूमा पाल पहले आती थीं। इन न्यायाधीशों का शपथ ग्रहण समारोह उच्चतम न्यायालय की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में 28 जनवरी, 2000 को रखा गया। न्यायमूर्ति सभरवाल और दोराई स्वामी राजू के शपथ ग्रहण के कुछ घंटे बाद रूमा पाल ने शपथ ग्रहण किया, लेकिन वरिष्ठता क्रम में वह इन्हीं कुछ घंटों से पिछड़ गयीं और देश अपनी पहली महिला मुख्य न्यायाधीश पाने से वंचित रह गया। योगेश कुमार सभरवाल और राष्ट्रपति के. आर. नारायणन की पसंद के. जी. बालाकृष्णन नियत समय पर भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।[1]

ईमानदार छवि

  • वर्ष 2011 के वीएम तारकुंडे स्मृति व्याख्यान में रूमा पाल ने उच्च न्यायपालिका के चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाये और उच्च न्यायपालिका के सात गुनाहों की सूची प्रस्तुत की, जिनमें अपने साथी जजों के अनुचित कदमों पर परदा डालना, न्यायिक प्रक्रिया में अपारदर्शिता, दूसरों के लेखन की चोरी करना, पाखंड, अहंकारी व्यवहार, बेईमानी तथा सत्ताधारी वर्ग से अनुग्रह की आकांक्षा।
  • एक न्यायाधीश के रूप में रूमा पाल के व्यवहार को अनुकरणीय माना जाता है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक अमेरिकी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया, चूंकि एक न्यायाधीश के रूप में वे किसी भी संस्था से अपनी हवाई यात्रा का टिकट नहीं लेना चाहती थीं। रूमा पाल की ईमानदारी और न्यायप्रियता उन्हें भारतीय न्यायपालिका में बहुत अलग व सम्माननीय स्थान प्रदान करती है।
  • रूमा पाल न्यायपालिका की गरिमा के प्रति बेहद संजीदा थीं। कोलकता के एमरी अस्पताल के चिकित्सकों की लापरवाही के मुकदमे की सुनवाई हेतु गठित पीठ में वह भी शामिल थीं। जब रूमा पाल को मालूम हुआ कि कोलकाता उच्च न्यायालय में इनमें से कुछ चिकित्सकों के बचाव पक्ष के वकील उनके पति समरादित्य पाल थे, तो उन्होंने खुद को इस मुकदमे से अलग कर लिया।
  • सिगरेट निर्माता आइटीसी पर भारत सरकार ने 803 करोड़ रुपये आबकारी शुल्क जमा करने का आदेश दिया, तो इस आदेश के विरु द्ध आइटीसी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति रूमा पाल और पी. वेंकटरामा रेड्डी ने आइटीसी को राहत देने का निर्णय लिया। न्यायमूर्ति पाल ने आइटीसी के वकील को इस निर्णय का अंतिम प्रारूप इस शर्त पर पढ़ने दिया कि वे इसे अदालत कक्ष से बाहर लेकर नहीं जायेंगे। न्यायमूर्ति पाल की हिदायत के बावजूद आइटीसी के वकील इसे लेकर अदालत से बाहर चले आये और केवल कुछ ही मिनटों में मुंबई के शेयर बाज़ार में आइटीसी के शेयर मूल्य में अचानक उछाल आ गया। रूमा पाल ने आइटीसी के वकील की इस हरकत पर सख्त एतराज करते हुए अपना निर्णय वापस ले लिया और अंतिम निर्णय सुनाने की तारीख भी आगे बढ़ा दी।


उच्चतम न्यायालय में अपने कार्यकाल में रूमा पाल ने भारत सरकार द्वारा मोबाइल फोन की ख़रीद और सुविधा पर बिक्री कर लगाने के आदेश को निरस्त किया था। उन्होंने अपने एक निर्णय में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों के न रहने की स्थिति में पत्नी द्वारा तलाक मांगने को उचित ठहराया था, जो एक बहुत ही प्रगतिशील निर्णय था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रूमा पाल, न्यायप्रियता का संकल्प (हिन्दी) prabhatkhabar.com। अभिगमन तिथि: 05 मई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख