के. वी. राबिया: Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
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Latest revision as of 09:06, 2 February 2022

के. वी. राबिया
पूरा नाम के. वी. राबिया
जन्म 25 फ़रवरी, 1966
जन्म भूमि वेल्लिलक्कड़ गांव, ज़िला मलप्पुरम, केरल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज सेवा
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2022

राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, 1994

प्रसिद्धि सामाजिक कार्यकर्ता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी साल 2009 में राबिया की आत्मकथा 'ड्रीम्स हैव विंग्स' प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा राबिया 3 और किताबें भी लिख चुकी हैं।
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के. वी. राबिया (अंग्रेज़ी: Kariveppil Rabiya, जन्म- 25 फ़रवरी, 1966) शारीरिक रूप से विकलांग सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो केरल से हैं। उनके प्रयासों को भारत सरकार द्वारा कई अवसरों पर राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई है। सन 1994 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उन्हें समाज में उनके योगदान के लिए 'राष्ट्रीय युवा पुरस्कार' से सम्मानित किया था। महिलाओं के उत्थान और सशक्तीकरण में के. वी. राबिया के योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1999 में पहला 'कन्नगी संतश्री पुरस्कार' दिया गया था। वहीं अब उन्हें 'पद्म श्री' (2022) से सम्मानित किया गया है।

परिचय

शारीरिक रूप से दिव्यांग होने की वजह से के. वी. राबिया का सफ़र काफ़ी मुश्किलों भरा रहा। राबिया के पैरों ने तो उनका साथ नहीं दिया, लेकिन उनके इरादे इतने मजबूत थे कि उन्होंने ख़ुद को कमज़ोर नहीं होने दिया। राबिया ने अपने इन्हीं मज़बूत इरादों से समाज के लिए वो कर दिखाया, जो आज एक मिसाल है। इसी वजह से उनका सफ़र पद्म श्री तक पहुंच गया। आज राबिया केरल के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं। साल 2009 में राबिया की आत्मकथा 'ड्रीम्स हैव विंग्स' प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा राबिया 3 और किताबें भी लिख चुकी हैं।

जन्म और पढ़ाई

के. वी. राबिया का जन्म 25 फ़रवरी, 1966 को केरल के मलप्पुरम ज़िले के वेल्लिलक्कड़ गांव में हुआ था। वह बचपन से ही पोलियो से ग्रसित हैं। इसलिए व्हीलचेयर ही उनके चलने का सहारा है। लेकिन व्हीलचेयर पर होने के बावजूद उन्होंने दुनिया के लिए एक मिसाल पेश की। के. वी. राबिया बचपन से ही कुछ ऐसा करना चाहती थीं जिससे समाज का उद्धार हो सके। व्हीलचेयर पर रहते हुए उन्होंने सबसे पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और शिक्षिका बनीं। शिक्षिका होने के साथ-साथ वो समाज सुधार के कार्यों में भी लगी रहीं। राबिया की कोशिशों के चलते ही उनके गांव में सड़क, बिजली, पीने का पानी, बैंक और टेलीफ़ोन कनेक्शन सब कुछ उपलब्ध है।

सामाजिक कार्य

के. वी. राबिया आज केरल में 'चलनम' नाम की एक संस्था चला रही हैं। इस संस्था के ज़रिए राज्य में दिव्यांग बच्चों के लिए कई स्कूल खोले गये हैं। के. वी. राबिया महिला सशक्तीकरण के लिए भी कई तरह के कार्य कर रही हैं। वो अपने प्रयासों से महिलाओं के लिए छोटी दुकानें और महिला पुस्तकालय भी स्थापित कर चुकी हैं। इसके अलावा राबिया दहेज, शराब, अंधविश्वास और नस्लवाद जैसे सामाजिक मुद्दों के ख़िलाफ़ भी लड़ रही हैं।

कैंसर और एक्सीडेंट को दी मात

राबिया पहले से ही पोलियो से ग्रसित थीं, लेकिन साल 2000 में उन्हें कैंसर ने भी जकड लिया। कई महीनों के इलाज और कीमोथेरेपी के बाद वो इस बीमारी से उबरीं, लेकिन कुछ साल बाद उनके साथ फिर से एक दुर्घटना हो गई। दरअसल, बाथरूम में गिरने से उनको गंभीर चोट आई और वो व्हीलचेयर से सीधे बिस्तर पर आ गईं। इन घटनाओं ने राबिया को भले ही घाव दिए, लेकिन उनके आंतरिक शक्ति को छू भी नहीं पाए। बिस्तर पर रहते हुए भी राबिया ने आंदोलन जारी रखा।

सम्मान व पुरस्कार

के. वी. राबिया को साल 1994 में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से 'राष्ट्रीय युवा पुरस्कार', जबकि साल 2000 में केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय से 'कन्नकी स्त्री शक्ति पुरस्कार' भी मिल चुका है। इनके अलावा राबिया को केंद्र और राज्य सरकार से कई अन्य पुरस्कार मिले हैं। पद्म श्री, 2022 से नवाजे जाने के बाद वह लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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