पुष्पलता दास

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पुष्पलता दास
पूरा नाम पुष्पलता दास
जन्म 27 मार्च, 1915
जन्म भूमि उत्तर लखीमपुर, असम
मृत्यु 9 नवम्बर, 2003
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
अभिभावक माता- स्वर्णलता सैकिया

पिता- रामेश्वर सैकिया

पति/पत्नी ओमेयो कुमार दास
संतान एक पुत्री
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता
विद्यालय आंध्र विश्वविद्यालय
शिक्षा स्नातक (राजनीति विज्ञान)
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 1999
अन्य जानकारी पुष्पलता दास को 1942 में 'भारत रक्षा नियम' के तहत गिरफ्तार किया गया। देश के आज़ाद होने के बाद भी वह विभिन्न क्षमताओं और भूमिकाओं में सेवा करती रहीं। वह राज्य सभा की सदस्य और असम विधान सभा की सदस्य थीं।

पुष्पलता दास (अंग्रेज़ी: Pushpalata Das, जन्म- 27 मार्च, 1915; मृत्यु- 9 नवम्बर, 2003) एक सामाजिक कार्यकर्ता, उत्साही गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने बचपन से ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। मात्र 6 साल की उम्र में वह 'बानर सेना' (मंकी ब्रिगेड) में शामिल हो गईं, जो लड़कियों का एक स्थानीय रूप से संगठित स्वयंसेवी समूह था, जो स्वदेशी को बढ़ावा देने और लोगों के बीच खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए काम करता था। भारत सरकार ने सन 1999 में पुष्पालता दास को पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

परिचय

पुष्पलता दास का जन्म 27 मार्च, सन 1915 को उत्तर लखीमपुर, असम में हुआ था। ये एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता कार्यकर्ता और पूर्व सांसद भी थीं। इनका जन्म स्वर्गीय रामेश्वर सैकिया और स्वर्णलता सैकिया के घर हुआ। पुष्पालता दास ने गुवाहाटी के पान बाजार गर्ल्स हाई स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण की, जहाँ से उन्हें 14 वर्ष की उम्र में 'मुक्ति संघ' नामक संगठन की सचिव होने के कारण फरवरी 1930 में निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने और उनके साथियों ने भगत सिंह को दी गई फाँसी की सजा के खिलाफ अपनी आवाजें उठाई थीं।

शिक्षा और चरखा संघ का गठन

पुष्पालता दास ने 1934 में निजी छात्र के रूप में मैट्रिक परीक्षा के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में परास्नातक (1938) को पूरा किया। तब उन्होंने कानून की पढ़ाई करने के लिए अर्ले लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन उन्हें उसे छोड़ना पड़ा क्योंकि ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ से जुड़े होने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया था। वह बचपन से ही महिला शक्ति और साहसी में दृढ़ विश्वास रखने वाली थीं। पुष्पालता दास ने गांधीजी की खादी अवधारणा को बढ़ावा दिया और 'चरखा संघ' का गठन किया।[1]

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

असम में ऐसे समय में पली-बढ़ी पुष्पालता दास भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के काम और विचारधारा से गहराई से प्रेरित थीं। उन्होंने इन विचारों को तब आत्मसात करना शुरू कर दिया, जब वह स्कूल में थी। 1930 में पुष्पालता दास ने अपने दो दोस्तों के साथ 'कामरूप महिला समिति' के परिसर में 'मुक्ति संघ' नामक एक क्रांतिकारी संगठन शुरू किया। यह वह समय था जब देश सविनय अवज्ञा आंदोलन में उलझा हुआ था। ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से देश को आजाद कराने की लड़ाई में शामिल होने के लिए इन लड़कियों ने प्रतिज्ञा ली और उस पर अपने खून से हस्ताक्षर किए। जब भगत सिंह को फाँसी की सज़ा दी गई तो उन्होंने बहिष्कार भी किया। जब संघ की खबर सामने आई तो पुष्पलता को स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद, उन्हें निजी तौर पर पढ़ाया गया और स्नातक होने के बाद 1938 में वह गुवाहाटी के अर्ल लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई करने चली गईं। अपने छात्र वर्षों के दौरान वह साम्यवादी विचारों से अत्यधिक प्रभावित थीं और छात्र सक्रियता में शामिल थीं। वह उन संगठनों से भी जुड़ी थीं जिनका उद्देश्य नागरिक अधिकारों और राष्ट्रीय रक्षा की रक्षा करना था।

जेल यात्रा

सन 1940 के दशक के आसपास सविनय अवज्ञा आंदोलन के हिस्से के रूप में पुष्पालता दास उन कई महिलाओं में से एक थीं जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे थीं। वह असम में कांग्रेस की महिला विंग की संयुक्त सचिवों में से एक थीं और उन्हें महिला स्वयंसेवकों को संगठित करने और संगठित करने का प्रभार दिया गया था। इस समय तक वह अंग्रेजों से आजादी के राष्ट्रीय उद्देश्य के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध थीं। महात्मा गांधी के आह्वान ने कई लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित किया था और पुष्पालता दास ने भी 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' में भाग लिया था जिसके कारण अंततः उन्हें जेल जाना पड़ा।

कुशल नेतृत्व

सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पुष्पालता दास का नेतृत्व कौशल सबसे आगे था, जब उन्हें और उनके पति ओमियो कुमार दास, एक साथी गांधीवादी, को असम में दरांग जिले की महिलाओं को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सत्याग्रही दो समूहों में विभाजित थे, शांति वाहिनी और मृत्यु वाहिनी। योजना 20 सितंबर 1942 को गोहपुर, ढेकियाजुली, बिहाली और सूतिया में शांतिपूर्ण जुलूस निकालकर और पुलिस स्टेशनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी अवज्ञा दिखाने की थी। हालाँकि, उनकी योजना सफल नहीं हुई, क्योंकि पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दीं, जिनमें से कई लोग मारे गए और घायल हो गए।[2]

पुष्पलता दास एक अनुकरणीय महिला थीं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आगे बढ़कर नेतृत्व किया और कई अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। 1942 में उन्हें 'भारत रक्षा नियम' के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और साढ़े तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया। उनका धैर्य ऐसा था कि जब वह कारावास में बीमार पड़ गईं और सरकार ने उनसे पैरोल पर जाने का अनुरोध किया, तो उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने असम सरकार द्वारा दिए गए ताम्रपत्र को भी अस्वीकार कर दिया।

पद्म भूषण

देश के आज़ाद होने के बाद भी पुष्पालता दास विभिन्न क्षमताओं और भूमिकाओं में सेवा करती रहीं। वह राज्य सभा की सदस्य और असम विधान सभा की सदस्य थीं। सन 1999 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

9 नवंबर 2003 को पुष्पलता दास का निधन कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुष्पलता दास की जीवनी (हिंदी) hindi.mapsofindia.com। अभिगमन तिथि: 09 मई, 2024।
  2. पुष्पलता दास (हिंदी) cmsadmin.amritmahotsav.nic.in। अभिगमन तिथि: 09 मई, 2024।

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