पी. आनन्द चार्लू
पी. आनन्द चार्लू
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पूरा नाम | पनम्बक्कम आनन्द चार्लू |
अन्य नाम | पी. आनन्द चार्लू |
जन्म | अगस्त, 1843 |
जन्म भूमि | चित्तूर ज़िला, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | 1908 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस |
पद | अध्यक्ष |
विशेष योगदान | पी. आनन्द चार्लू ने जनता को राजनीति के प्रति जागरुक किया। |
अन्य जानकारी | 1884 में पी. आनन्द चार्लू ने मद्रास के कुछ कर्मचारियों के साथ जुड़कर मद्रास महाजन सभा की स्थापना की, जो जनता की आवाज़ उठाने वाली अग्रिणी सभा बनी। |
अद्यतन | 18:48, 3 जून 2017 (IST)
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पनम्बक्कम आनन्द चार्लू (अंग्रेज़ी: Panambakkam Ananda Charlu, जन्म- अगस्त, 1843, कादामंची गांव, चित्तूर, मद्रास प्रैज़िडैंसी; मृत्यु- 1908) भारतीय राजनीतिज्ञ, अधिवक्ता, स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। सन 1895 में उन्हें केंद्रीय असेंबली का सदस्य बना दिया गया था और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राय बहादुर’ का खिताब दिया। अपने विचारों के कारण पी. आनन्द चार्लू नरम दल के राजनीतिज्ञ थे। 1960 की सूरत कांग्रेस में भी उन्होंने नरम दल का साथ दिया था।
परिचय
पनम्बक्कम आनन्द चार्लू का जन्म अगस्त 1843 को मद्रास प्रैज़िडैंसी में आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले में कादामंची गांव के एक रुढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह पेशे से मशहूर वकील थे। पी. आनन्द चार्लू ने अपनी मैट्रिक की शिक्षा के बाद अध्यापन का कार्य करते हुए क़ानून की शिक्षा पूरी की थी और इसके बाद मद्रास में वकालत करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने सार्वजनिक कार्यों में भी रुचि लेना आरंभ किया। 1857 के संग्राम के बाद देश के विभिन्न अंचलों में धीरे-धीरे नए संगठन बनने लगे थे। आनंद चार्लू ने 'मद्रास महाजन सभा' नाम के एक राजनीतिक संगठन की स्थापना की थी।[1]
सन 1885 में कांग्रेस की स्थापना के प्रथम मुंबई अधिवेशन में देशभर के कुल 72 प्रमुख व्यक्तियों ने भाग लिया था, उनमें से एक पी. आनन्द चार्लू भी थे। कुशल वक्ता और संगठनकर्ता के रूप में शीघ्र ही उनकी ख्याति देश के शिक्षित वर्ग में होने लगी थी। वह कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में सक्रिय भाग लेते थे। 1891 में कांग्रेस ने अपने नागपुर अधिवेशन का अध्यक्ष उनको ही चुना था।
न्यायिक कॅरियर
पी. आनन्द चार्लू ने मद्रास के मशहूर वकील कयाली वेंकटपति के नेतृत्व में काम किया और 1869 में आधिकारिक रूप से हाईकोर्ट में काम शुरू किया। उन्होंने वकालत की और बार के नेता चुने गए। 1899 में उन्हीं के चैंबर में मद्रास एडवोकेट्स एसोसिएशन बनी। आनन्द चार्लू ने जनता से जुड़े मुद्दों में रुचि ली, जिसमें से ज्यादा मुद्दे राजनीतिक थे और ऐसा करके उन्हें विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रियाएं मिली।
राजनीतिक कॅरियर
उन्होंने बड़ी पत्रिकाएं जैसे 'नेटिव पब्लिक ओपिनीयन' और 'द मद्रासी' के लिए लेख लिखे, 1978 में उन्होंने जी. सुब्रह्म अय्यर और सी. वीराराघवचारीयर को 'द हिन्दू' की शुरुआत करने में मदद की और उनके सहयोगी बन गए। वह एक कुशल संचालक थे। उन्होंने 1884 में ट्रप्लिकेन सोसाइटी की स्थापना की, जिसके वह अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने जनता को राजनीति के प्रति जागरुक किया। 1884 में वह मद्रास के कुछ कर्मचारियों के साथ जुड़े और मद्रास महाजन सभा की स्थापना की, जो जनता की आवाज़ उठाने वाली अग्रिणी सभा बनी। मद्रास में ये संस्थाएं ठीक उसी तरह से थीं, जैसे कलकत्ता और बम्बई में ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन। उन्होंने सभाओं की शाखाओं को विभिन्न ज़िलों में स्थापित किया और उन्हें संबद्ध करवाया।
1885 में बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले सत्र में 72 प्रतिनिधियों के दल में पी. आनन्द चार्लू भी थे। उसके बाद से वह लगभग हर सत्र में शामिल हुए और सत्र की कार्रवाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ये पी. आनन्द चार्लू का प्रतिनिधियों पर प्रभाव ही था, जिसके चलते वह 1891 में नागपुर सत्र के दौरान अध्यक्ष चुने गए। अपने भाषण के दौरान उन्होंने उन लोगों के विचारों की आलोचना की, जो ये सोचते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है। उन्होंने विधान परिषद के स्वरूप को और अधिक प्रतिनिधित्त्व वाला बनाने की बात पर ज़ोर दिया, इसके अलावा उन्होंने स्वंयसेवी संस्थाओं में भारतीयों की नियुक्ति में होने वाले भेदभाव को हटाने पर बल दिया। 1891 में वह कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने गए और 1892 में वह सचिव बने। इसके साथ ही वह सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले कई प्रतिनिधि मण्डलों के सदस्य भी चुने गए। वह हमेशा से संविधान की सख्त धाराओं के ख़िलाफ़ आंदोलन के समर्थक रहे। साल 1907-1908 में कांग्रेस में वह स्वाभाविक रूप से नरमपंथियों के पक्ष में दिखे, लेकिन इससे पहले की वो खुद को नरमपंथियों और चरमपंथियों के विभाजन से दूर करते, उनका निधन हो गया।
सम्मान
पी. आनन्द चार्लू को जनता और सरकार दोनों ने पूरे देश में एक सम्मानीय नेता के रूप में पहचाना और सरकार ने उन्हें राय बहादुर और सी. आई. ई. के गौरव से सम्मानित किया।
निधन
पी. आनन्द चार्लू का 1908 में 65 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 74-75 |
बाहरी कड़ियाँ
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