सुधाताई जोशी
सुधाताई जोशी
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पूरा नाम | सुधाताई जोशी |
अन्य नाम | सुधा महादेव जोशी |
जन्म | 14 जनवरी, 1918 |
जन्म भूमि | ग्राम प्रियोल, गोवा |
पति/पत्नी | महादेवशास्त्री जोशी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
संबंधित लेख | गोवा, गोवा मुक्ति दिवस, गोवा का इतिहास |
अन्य जानकारी | अपने आंदोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सुधाताई जोशी ने पुर्तग़ाल सरकार को स्मरण दिलाया था कि वह स्वयं 1580 से 1640 तक स्पेन का गुलाम था। |
अद्यतन | 16:06, 13 मार्च 2024 (IST)
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सुधाताई जोशी (अंग्रेज़ी: Sudhatai Joshi, जन्म- 14 जनवरी, 1918, गोवा) पुर्तग़ाली साम्राज्यवादियों से गोवा की मुक्ति के स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता थीं। ये सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेती थीं। सुधाताई ने 2 वर्ष तक कारागार की सजा भी भोगी। सुधाताई जोशी वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।[1]
जन्म एवं परिचय
श्रीमती सुधाताई जोशी का जन्म 14 जनवरी, 1918 ई. को गोवा के प्रियोल नामक गांव में हुआ था। यद्यपि उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, किंतु पिता की सहायता और अपने प्रयत्न से उन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 'संस्कृति कोश' के प्रसिद्ध संपादक महादेव शास्त्री जोशी से विवाह के बाद पूना आने पर सुधाताई जोशी के जीवन में और भी परिवर्तन आये।
महादेव शास्त्री जोशी स्वयं गोवा के मुक्ति संग्राम से जुड़े हुई थे। उन्होंने 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित सत्याग्रह आंदोलन में सत्याग्रहियों का नेतृत्व करने का निश्चय किया। सुधाताई इस आंदोलन का महत्त्व समझती थीं। पर वे नहीं चाहती थीं कि उतने ही महत्त्व के काम 'संस्कृति कोश' का संपादन उनके पति छोड़ दें।
आंदोलनों में भागिदारी
बड़े आग्रह के बाद जब पति ने उनका परामर्श स्वीकार कर लिया। तो सुधाताई स्वयं 'गोवा राष्ट्रीय काँग्रेस' द्वारा संचालित सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए गोवा की ओर चल पड़ीं। पुर्तग़ाली सरकार ने उनके गोवा प्रवेश की सूचना देने वाले के लिए भारी इनाम की घोषणा कर रखी थी। पर लोगों ने सुधाताई का स्वागत किया और उनके गुप्त रूप से गोवा में प्रवेश में सहायता पहुंचाई।
5 अप्रैल, 1955 को सुधाताई को महाप्सा नामक स्थान में एक सभा को संबोधित करनी था। पर पुलिस ने वह स्थान पहले ही घेर लिया और अपने भाषण के दो-चार शब्द पढ़ते ही सुधाताई जोशी को गिरफ़्तार कर लिया गया। अपने आंदोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सुधाताई ने पुर्तग़ाल को स्मरण दिलाया था कि वह स्वयं 1580 से 1640 तक स्पेन का गुलाम था।
पुर्तग़ाल सरकार ने ताई पर मुकदमा चलाया और 2 वर्ष के कारागार की सजा दे दी। बाद में सारे देश में आंदोलन होने और जेल में स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण मई, 1959 में उन्हें रिहा करना पड़ा था। इस वीरांगना के साहस की उस समय सारे देश में बड़ी प्रशंसा हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 928 |
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