सरदार बुध सिंह

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सरदार बुध सिंह
पूरा नाम सरदार बुध सिंह
जन्म मई, 1884
जन्म भूमि मीरपुर, जम्मू
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म सिक्ख
अन्य जानकारी अपने दीर्घकालीन योगदान के कारण बुध सिंह जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक चेतना के जनक माने जाते हैं।
अद्यतन‎ 04:31, 10 फ़रवरी-2017 (IST)

सरदार बुध सिंह (अंग्रेज़ी: Sardar Budh Singh, जन्म- मई, 1884, मीरपुर, जम्मू) जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। वे डिप्टी कमिश्नर भी थे। सरदार बुध सिंह के द्वारा 'किसान पार्टी' का गठन किया गया था तथा वे 'डोगरा सभा' के अध्यक्ष भी रहे। बुध सिंह 'नेशनल कांफ्रेस' के लगभग 25 वर्षों तक प्रमुख नेताओं में रहे। वे दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे।[1]

जन्म एवं परिचय

सरदार बुध सिंह का जन्म मई, 1884 ई. में जम्मू के मीरपुर नामक स्थान पर हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद वे रियासत की सर्विस में सम्मिलित हो गए। सरदार बुध सिंह की पदोन्नति डिप्टी कमिश्नर के पद तक हुई। सार्वजनिक कार्यों में वे अपने सरकारी सेवाकाल में ही रुचि लेने लगे थे।

सार्वजनिक कार्यों में योगदान

अकालियाँ ने जब अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया तो बुध सिंह भी उनके समर्थक थे। रियासत में जनसामान्य की दुर्दशा की ओर अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन्होंने 1922 में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया था। 1925 में सरदार बुध सिंह ने डिप्टी कमिश्नर के पद से इस्तीफा देदिया और पूरी तरह सार्वजनिक कार्यों में लग गए। सिक्ख और हिंदू दोनों उनका सम्मान करते थे।

किसान पार्टी का गठन

सरदार बुध सिंह को जम्मू के डोगरा समुदाय ने तीन बार उन्हें 'डोगरा सभा' का अध्यक्ष चुनकर सम्मानित किया। 1934 में बुध सिंह नें 'किसान पार्टी' का गठन किया। उस समय तक शेख अब्दुल्ला 'मुस्लिम कांग्रेस' बना चुके थे। बुध सिंह आदि ने रियासत में संयुक्त मोर्चा बनाने का सुझाव दिया। इस पर 'मुस्लिम कांग्रेस' का नाम 1939 में 'नेशनल कांफ्रेस' कर दिया गया और बुध सिंह लगभग 25 वर्षों तक उसके प्रमुख नेताओं में रहे। 1944 में वे 'नेशनल कांफ्रेस' के अध्यक्ष भी चुने गए। 1946 में सरदार बुध सिंह को राजनीतिक आंदोलन के कारण जेल में बंद कर दिया गया था।

राजनीतिक चेतना के जनक

स्वतंत्रता के बाद सरदार बुध सिंह शेख अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। परंतु राज्य में जो पृथकतावादी तत्व उभर रहे थे, उनसे सामंजस्य न होने के कारण सरदार बुध सिंह ने 1950 में मंत्रिमंडल छोड़ दिया। बाद में वे दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे। लेकिन अपने जीवन का सबसे बड़ा आघात सरदार बुध सिंह को शेख अब्दुल्ला के कारण लगा। एक समय शेख उन्हें अपना 'आध्यात्मिक पिता' कह कर सम्मानित करते थे। बाद में उन्होंने अपने विचार और क्रिया कलाप बदल कर स्वयं को देश की मुख्य धारा से अलग कर लिया था। सरदार बुध सिंह बाद में कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर आकृष्ट हो गए थे। अपने दीर्घकालीन योगदान के कारण बुध सिंह जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक चेतना के जनक माने जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 904 |

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