रामदेनी सिंह

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रामदेनी सिंह
पूरा नाम रामदेनी सिंह
जन्म 1904
जन्म भूमि ग्राम मलखाचक, दिघवारा प्रखंड, बिहार
मृत्यु 4 मई, 1932
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
संबंधित लेख भगत सिंह, काकोरी कांड
अन्य जानकारी सरदार भगत सिंह ने ही रामदेनी सिंह की बहादुरी की सराहना करते हुए उन्हें सारण का एरिया कमांडर मनोनीत किया था।

रामदेनी सिंह (अंग्रेज़ी: Ramdeeni Singh, जन्म- 1904; बलिदान- 4 मई, 1932) बिहार के स्वतंत्रता सेनानी थे। सारण के दिघवारा प्रखंड का मलखाचक गांव जहाँ के बहुत कम लोग जानते हैं कि बिहार में 'इंकलाब जिंदाबाद!' 'वंदेमातरम!' 'भारत माता की जय' का जयघोष कर फांसी के फंदे को चूम कर झूल जाने वाले और कोई नहीं सारण का शेर ठाकुर रामदेनी सिंह थे। वह बिहार के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें फाँसी की सज़ा हुई थी।

परिचय

सन 1904 में दिघवारा प्रखंड के मलखाचक गांव में एक कृषक क्षत्रिय परिवार में जन्मे रामदेनी सिंह सन 1921 में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। तब मलखाचक गांधी कुटीर नरम दलगरम दल के नेताओं की शरण स्थली थी। सरदार भगत सिंह 1923 में अपने साथियों सहित ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' की विचारधारा को प्रसारित करने आए थे। स्वर्गीय स्वतंत्रता सेनानी लालसा सिंह ने 2003 में बताया था कि सरदार भगत सिंह और बबुआन रामदेनी सिंह की कुश्ती भी हुई थी और सरदार भगत सिंह ने उनकी बहादुरी की सराहना करते हुए उन्हें सारण का एरिया कमांडर मनोनीत कर दिया था।[1]

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

लाहौर षड्यंत्र, चौराचौरी कांड, काकोरी षड्यंत्र से उद्वेलित ठाकुर रामदेनी सिंह की धमनियों का लहू उबलने लगा और अपने मित्र व वैशाली एरिया कमांडर योगेन्द्र शुक्ल के साथ मिलकर धन संग्रह की योजना बनायी ताकि उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा को बल मिले। बहरहाल, हाजीपुर रेलवे स्टेशन ट्रेन में डाका डाला गया, गार्ड व स्टेशन मास्टर को मार कर खजाना लूट लिया गया और रकम लेकर हाजीपुर पुल पार कर सारण की सीमा में प्रवेश करना ही चाह रहे थे कि सारण व वैशाली पुलिस ने पुल के पूरब पश्चिम में घेर लिया।

गिरफ़्तारी

लिहाजा, दोनों साइकिल सवार साइकिल सहित गंडक नदी में कूद पड़े और साइकिल सहित पटना साहिब घाट पर जा निकले। ब्रिटिश सरकार ने रामदेनी सिंह की गिरफ्तारी के लिए इनाम घोषित किया और एक ग्रामीण गद्दार की गद्दारी से गंगा स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दे रहे रामदेनी सिंह सुरमा को जाल फेंक कर पकड़ लिया गया। जिसके बाद मुजफ्फरपुर जेल में एक विशेष अदालत गठित की गई।

बलिदान

मुजफ्फरपुर जेल में एक विशेष अदालत गठित की गई थी। जैसा कि प्रत्याशित ही था, अदालत ने रामदेनी सिंह को फाँसी की सज़ा देने का फैसला किया और अपील का अवसर दिये बिना ही 4 मई, 1932 को उन्हें फाँसी दे दी गई। 'भारत माता की जय' का उद्घोष कर रामदेनी सिंह ने फाँसी का फंदा चूमा था। बाद में अखाड़ा घाट, मुज्जरपुर में उनका दाह संस्कार भी कर दिया गया। खुदीराम बोस के बाद मुज्जरपुर जेल में फाँसी की सज़ा पाने वाले रामदेनी सिंह दूसरे बलिदानी थे।

यह विडंबना ही है कि रामदेनी सिंह की स्मृति को जीवित रखने की कोई कोशिश स्थानीय स्तर पर नहीं की गई। बिहार के पहले शहीद में शुमार रामदेनी सिंह की न कोई तस्वीर है उनके वंशजों के पास, न कोई समाधि।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बिहार के प्रथम शहीद थे सारण के रामदेनी सिंह (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 26 मई, 2022।

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