छोटूराम
छोटूराम
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पूरा नाम | राय रिछपाल (मूल नाम) |
जन्म | 24 नवम्बर, 1881 |
जन्म भूमि | रोहतक |
मृत्यु | 9 जनवरी, 1945 |
मृत्यु स्थान | लाहौर |
अभिभावक | पिता- सुखीराम |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनीतिज्ञ |
पार्टी | यूनियनिस्ट पार्टी |
विशेष | चौधरी छोटूराम की लेखनी आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख 'जाट गजट' में छपे थे। |
अन्य जानकारी | अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी थी, क्योंकि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आज़ादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाये। |
सर छोटूराम (अंग्रेज़ी: Sir Chhoturam, जन्म- 24 नवम्बर, 1881, रोहतक; मृत्यु- 9 जनवरी, 1945, लाहौर) भारत के स्वाधीनता सेनानी तथा राजनेता थे। ग़रीबों के बंधु के रूप में वह 'रहबर ए आज़म' कहे जाते थे। सर चौधरी छोटूराम शारीरिक रूप से छोटे कद के व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का कद बहुत बड़ा था। वे दीन दु:खियों और ग़रीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिये 'सर' तो किसानों के लिये मसीहा थे। चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे, फिर स्कूल के रजिस्टर में भी जाने-अंजाने इनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया।
परिचय
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सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर, हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। झज्जर उस समय रोहतक ज़िला, पंजाब का ही अंग था। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी। छोटूराम जी के पिता सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।
सामाजिक कार्य
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सन 1905 में छोटूराम जी ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन 1907 तक अंग्रेज़ी के 'हिन्दुस्तान' समाचार पत्र का संपादन किया। यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए। झज्जर ज़िले में जन्मा यह जुझारू युवा छात्र सन 1911 में आगरा के जाट छात्रावास का अधीक्षक बना। 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री प्राप्ते की। यहां रहकर छोटूराम ने मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में आपने चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया।
स्वाधीनता संग्राम में सक्रियता
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चौधरी छोटूराम ने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में डटकर भाग लिया। 1916 में पहली बार रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे ज़िले में चौधरी छोटूराम का आह्वान अंग्रेज़ हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेज़ों ने बहुत भयानक करार दिया। फलस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्नर ने तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज़ हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, रक्त की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेज़ों के हाथ कांप गए और कमिश्नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।
राजनीतिक गतिविधियाँ
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सन 1925 में राजस्थान में पुष्कर के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन 1934 में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10,000 जाट किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, महर्षि दयानन्द के सत्यार्थ प्रकाश के श्लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम भारत की राजनीति के स्तम्भ बन गए। पंजाब में रौलट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया।
योगदान
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- गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938
यह कानून 9 सितंबर, 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून, 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थीं तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वह सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस क़ानून के तहत केवल एक सादे काग़ज़ पर ज़िलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस क़ानून में अगर मूल राशि का दोगुना धन साहूकार प्राप्त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।
मृत्यु
सन 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य चौधरी छोटूराम का 9 जनवरी, 1945 को देहावसान हो गया और एक क्रांतिकारी युग का यह सूर्य डूब गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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