उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर
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पूरा नाम | उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर |
अन्य नाम | यू.एन. ढेबर |
जन्म | 21 सितम्बर, 1905 |
जन्म भूमि | जामनगर, गुजरात |
मृत्यु | 1977 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतन्त्रता सेनानी तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | मुख्यमंत्री सौराष्ट्र राज्य (1948 से 1954 तक) |
विशेष योगदान | सौराष्ट्र क्षेत्र में कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने का श्रेय ढेबर भाई को ही जाता है। |
अन्य जानकारी | ढेबर भाई 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गिरफ्तार हुए। स्वतंत्रता के बाद काठियावाड़ की रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी। |
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर (अंग्रेज़ी: Uchharangrai Navalshankar Dhebar, जन्म- 21 सितम्बर, 1905, जामनगर, गुजरात; मृत्यु- 1977) भारतीय स्वतन्त्रता के सेनानी थे, जो 1948 से 1954 तक सौराष्ट्र राज्य के मुख्यमन्त्री रहे। सन 1955 से 1959 तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। 1962 में वे भारत की तीसरी लोकसभा के लिए राजकोट से निर्वाचित हुए थे। सौराष्ट्र क्षेत्र में कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने का श्रेय ढेबर भाई को ही जाता है। वे अच्छे विचारक थे। गांधीवादी दृष्टिकोण के संबंध में उन्होंने हिंदी, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा में अनेक रचनाएं भी की हैं।
परिचय
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर का जन्म 21 सितंबर, 1905 को जामनगर (गुजरात) के निकट एक झोपड़ी में हुआ था। यह नागर परिवार अत्यंत गरीब था, फिर भी ढेवर ने राजकोट और मुंबई में अपनी शिक्षा पूरी की और 1928 में वकालत करने लगे। अपने पेशे में उन्होंने शीघ्र ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। किन्तु गांधीजी के प्रभाव में आकर उन्होंने 1936 में वकालत छोड़ दी और देश सेवा के काम में लग गए।[1]
राजनीतिक गतिविधियाँ
सरदार पटेल का भी उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर पर प्रभाव पड़ा। ढेबर भाई ने राजकोट रियासत के निकट एक गांव को अपना केंद्र बनाया और लोगों को संगठित करके अकाल पीड़ितों की सहायता में जुट गए। तभी उन्होंने राजकोट में मजदूरों का संगठन बनाया और 8 वर्ष से निष्प्राण काठियावाड़ के राजनीतिक सम्मेलन में जान डाली। रियासत के दीवान ने उनके इन कामों में बहुत बाधा डालने का प्रयत्न किया, फिर भी ढेबर भाई राजनीतिक सम्मेलन करने में सफल हो गए, जिसमें सरदार पटेल ने भी भाग लिया था। सन 1947 में राजकोट रियासत ने ढेबर भाई को उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण गिरफ्तार कर लिया था, परंतु जन आंदोलन के दबाव के कारण वे शीघ्र ही रिहा कर दिए गए। लेकिन विरासत में प्रशासनिक सुधारों के लिए उनका आंदोलन जारी रहा।
सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री
सन 1938-1939 में इसके लिए सत्याग्रह आरंभ हो गया जो ‘राजकोट सत्याग्रह’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस सिलसिले में गांधीजी को अनशन करना पड़ा था। तब कहीं सत्याग्रहियों के पक्ष में निर्णय हुआ। ढेबर भाई 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गिरफ्तार हुए। स्वतंत्रता के बाद काठियावाड़ की रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी। 1948 में यहां की रियासतों की सौराष्ट्र नाम से एक राजनीतिक इकाई बनी। ढेबर भाई यहां के मुख्यमंत्री बने। उनके मुख्यमंत्रित्व में सौराष्ट्र में अनेक सुधार हुए। ग्राम पंचायतों का गठन हुआ, शिक्षा की सुविधाएं बढ़ीं, लोगों को पेयजल उपलब्ध कराया गया और सर्वाधिक भूमि सुधार के ऐसे कानून बने, जिनसे खेतिहरों के हितों की रक्षा हुई। खादी और ग्रामोद्योग को भी बहुत प्रोत्साहन मिला।[1]
विभिन्न पदों पर कार्य
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से थे। 1955 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और 1959 तक इस पद पर रहे। 1964 में उन्हें परिगणित जाते क्षेत्र कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया। 1962 में वह लोकसभा के सदस्य चुने गए। 1962 से 1964 तक वे 'भारतीय आदिम जाति संघ' के अध्यक्ष रहे। 1963 में उन्होंने खादी ग्रामोद्योग कमीशन के अध्यक्ष का पद भी संभाला। गुजरात की अनेक शिक्षा संस्थाओं, जैसे- राष्ट्रीय शाला, लोक भारती आदि से भी वे जुड़े रहे। सौराष्ट्र क्षेत्र में कुटीर उद्योगों को आगे बढ़ाने का श्रेय ढेबर भाई को ही जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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