पिता: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
No edit summary
 
(5 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{tocright}}
[[चित्र:Father and son.jpg|thumb|पिता और पुत्र]]
[[ऋग्वेद]] तथा परवर्ती साहित्य में "पिता" शब्द (उत्पन्न करने वाला) की अपेक्षा [[शिशु]] के रक्षक के अर्थ में अधिक व्यवहृत हुआ है। ऋग्वेद में यह दयालु एवं भले अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। अतएव [[अग्नि]] की तुलना पिता से<ref>ऋवेद. 10.7,3</ref> की गई है। पिता अपनी गोद में ले जाता है<ref>ऋवेद.1.38,1</ref> तथा अग्नि की गोद में रखता है<ref>ऋवेद. 5.4-3,7</ref>। शिशु पिता के वस्त्रों को खींचकर उसका ध्यान अपनी ओर '''आकर्षित''' करता है, उसका '''आनन्दपूर्वक स्वागत''' करता है।<ref>ऋग्वेद. 7.103.3</ref>
"पिता" शब्द [[ऋग्वेद]] तथा परवर्ती साहित्य में उत्पन्न करने वाले की अपेक्षा [[शिशु]] के रक्षक के अर्थ में अधिक व्यवहृत हुआ है। ऋग्वेद में यह दयालु एवं भले अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। अतएव [[अग्नि]] की तुलना पिता से<ref>ऋवेद. 10.7,3</ref> की गई है। पिता अपनी गोद में ले जाता है<ref>ऋवेद.1.38,1</ref> तथा अग्नि की गोद में रखता है<ref>ऋवेद. 5.4-3,7</ref>। शिशु पिता के वस्त्रों को खींचकर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, उसका आनन्दपूर्वक स्वागत करता है।<ref>ऋग्वेद. 7.103.3</ref>
==अधीनता में पुत्र==
==अधीनता में पुत्र==
यह कहना कठिन है कि किस सीमा तक पुत्र पिता की अधीनता में रहता था एवं यह अधीनता कब तक रहती थी। ऋग्वेद (2.29,5) में आया है कि एक पुत्र को उसके '''पिता''' ने जुआ खेलने के कारण बहुत तिरस्कृत किया तथा [[ऋज्त्राश्व]] को<ref>ऋग्वेद.1.116,16;117,17</ref> उसके पिता ने अंधा कर दिया। पुत्र के ऊपर पिता के अनियंत्रित अधिकार का यह द्योतक है। परन्तु ऐसी घटनाएँ क्रोधावेश में अपवाद रूप से ही होती थी।
यह कहना कठिन है कि किस सीमा तक पुत्र पिता की अधीनता में रहता था एवं यह अधीनता कब तक रहती थी। ऋग्वेद <ref>ऋग्वेद 2.29,5</ref>) में आया है कि एक पुत्र को उसके पिता ने जुआ खेलने के कारण बहुत तिरस्कृत किया तथा ऋज्त्राश्व को<ref>ऋग्वेद.1.116,16;117,17</ref> उसके पिता ने अंधा कर दिया। पुत्र के ऊपर पिता के अनियंत्रित अधिकार का यह द्योतक है। परन्तु ऐसी घटनाएँ क्रोधावेश में अपवाद रूप से ही होती थी।
 
==आध्यात्मिक ज्ञान==
==आध्यात्मिक ज्ञान==
*इस बात का भी पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि पुत्र बड़ा होकर पिता के साथ में रहता था अथवा नहीं।
*इस बात का भी पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि पुत्र बड़ा होकर पिता के साथ में रहता था अथवा नहीं।
Line 10: Line 11:
*[[शतपथब्राह्मण]] में [[शुन:शेप]] की कथा से पिता की निष्ठुरता का उदाहरण भी प्राप्त होता है।  
*[[शतपथब्राह्मण]] में [[शुन:शेप]] की कथा से पिता की निष्ठुरता का उदाहरण भी प्राप्त होता है।  
*[[उपनिषद|उपनिषदों]] में पिता से पुत्र को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर ज़ोर डाला गया है।  
*[[उपनिषद|उपनिषदों]] में पिता से पुत्र को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर ज़ोर डाला गया है।  
[[चित्र:Father and son2.jpg|thumb|पिता का स्नेह]]
==गोद लेने की प्रथा==
==गोद लेने की प्रथा==
[[प्रकृत पुत्र|प्रकृत पुत्रों]] के अभाव में [[दत्तक पुत्र|दत्तक पुत्रों]] को गोद लेने की प्रथा थी। स्वाभाविक पुत्रों के रहते हुए भी अच्छे व्यक्तित्व वाले बालकों को गोद लेने की प्रथा थी। [[विश्वामित्र]] द्वारा शुन:शेप का ग्रहण किया जाना इसका उदाहरण है। साथ ही इस उदाहरण से इस बात पर भी प्रकाश पड़ता है कि एक [[वर्ण]] के लोग अन्य वर्णों के बालकों को भी ग्रहण कर लेते थे। इस उदाहरण में विश्वामित्र का क्षत्रि तथा शुन:शेप का [[ब्राह्मण]] होना इसे प्रकट करता है। गोद लिये हुए पुत्र को साधारणत: ऊँचा सम्मानित स्थान प्राप्त नहीं था। पुत्र के अभाव में पुत्री के पुत्र को भी गोद लिया जाता था तथा उस पुत्री को पुत्रिका कहते थे। अतएव ऐसी लड़कियों के [[विवाह]] में कठिनाई होती थी, जिसका भाई नहीं होता था, क्योंकि ऐसा बालक अपने पिता के कुल का न होकर नाना के कुल का हो जाता था।
[[प्रकृत पुत्र|प्रकृत पुत्रों]] के अभाव में [[दत्तक पुत्र|दत्तक पुत्रों]] को गोद लेने की प्रथा थी। स्वाभाविक पुत्रों के रहते हुए भी अच्छे व्यक्तित्व वाले बालकों को गोद लेने की प्रथा थी। [[विश्वामित्र]] द्वारा शुन:शेप का ग्रहण किया जाना इसका उदाहरण है। साथ ही इस उदाहरण से इस बात पर भी प्रकाश पड़ता है कि एक [[वर्ण]] के लोग अन्य वर्णों के बालकों को भी ग्रहण कर लेते थे। इस उदाहरण में विश्वामित्र का क्षत्रिय  तथा शुन:शेप का [[ब्राह्मण]] होना इसे प्रकट करता है। गोद लिये हुए पुत्र को साधारणत: ऊँचा सम्मानित स्थान प्राप्त नहीं था। पुत्र के अभाव में पुत्री के पुत्र को भी गोद लिया जाता था तथा उस पुत्री को पुत्रिका कहते थे। अतएव ऐसी लड़कियों के [[विवाह]] में कठिनाई होती थी, जिसका भाई नहीं होता था, क्योंकि ऐसा बालक अपने पिता के कुल का न होकर नाना के कुल का हो जाता था।
परिवार में माता व पिता का स्थान प्रथम था। दोनों को युक्त कर '''पितरौं''' अर्थात् पिता और माता [[यौगिक]] शब्द का प्रयोग होता था।  
परिवार में माता व पिता में पिता का स्थान प्रथम था। दोनों को युक्त कर '''पितरौं''' अर्थात् पिता और माता [[यौगिक]] शब्द का प्रयोग होता था।  
 


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 23: Line 24:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
==संबंधित लेख==
{{परिवार}}
[[Category:परिवार]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 08:01, 22 May 2012

thumb|पिता और पुत्र "पिता" शब्द ऋग्वेद तथा परवर्ती साहित्य में उत्पन्न करने वाले की अपेक्षा शिशु के रक्षक के अर्थ में अधिक व्यवहृत हुआ है। ऋग्वेद में यह दयालु एवं भले अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। अतएव अग्नि की तुलना पिता से[1] की गई है। पिता अपनी गोद में ले जाता है[2] तथा अग्नि की गोद में रखता है[3]। शिशु पिता के वस्त्रों को खींचकर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है, उसका आनन्दपूर्वक स्वागत करता है।[4]

अधीनता में पुत्र

यह कहना कठिन है कि किस सीमा तक पुत्र पिता की अधीनता में रहता था एवं यह अधीनता कब तक रहती थी। ऋग्वेद [5]) में आया है कि एक पुत्र को उसके पिता ने जुआ खेलने के कारण बहुत तिरस्कृत किया तथा ऋज्त्राश्व को[6] उसके पिता ने अंधा कर दिया। पुत्र के ऊपर पिता के अनियंत्रित अधिकार का यह द्योतक है। परन्तु ऐसी घटनाएँ क्रोधावेश में अपवाद रूप से ही होती थी।

आध्यात्मिक ज्ञान

  • इस बात का भी पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि पुत्र बड़ा होकर पिता के साथ में रहता था अथवा नहीं।
  • उसकी पुत्री उसके पिता के घर की सदस्यता प्राप्त करती थी अथवा नहीं।
  • वह पिता के साथ में रहता था या अपना अलग घर बनाता था।
  • वृद्धावस्था में पिता प्राय: पुत्रों को सम्पत्ति का विभाजन कर देता था तथा श्वसुर पुत्रवधु के अधीन हो जाता था।
  • शतपथब्राह्मण में शुन:शेप की कथा से पिता की निष्ठुरता का उदाहरण भी प्राप्त होता है।
  • उपनिषदों में पिता से पुत्र को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर ज़ोर डाला गया है।

thumb|पिता का स्नेह

गोद लेने की प्रथा

प्रकृत पुत्रों के अभाव में दत्तक पुत्रों को गोद लेने की प्रथा थी। स्वाभाविक पुत्रों के रहते हुए भी अच्छे व्यक्तित्व वाले बालकों को गोद लेने की प्रथा थी। विश्वामित्र द्वारा शुन:शेप का ग्रहण किया जाना इसका उदाहरण है। साथ ही इस उदाहरण से इस बात पर भी प्रकाश पड़ता है कि एक वर्ण के लोग अन्य वर्णों के बालकों को भी ग्रहण कर लेते थे। इस उदाहरण में विश्वामित्र का क्षत्रिय तथा शुन:शेप का ब्राह्मण होना इसे प्रकट करता है। गोद लिये हुए पुत्र को साधारणत: ऊँचा सम्मानित स्थान प्राप्त नहीं था। पुत्र के अभाव में पुत्री के पुत्र को भी गोद लिया जाता था तथा उस पुत्री को पुत्रिका कहते थे। अतएव ऐसी लड़कियों के विवाह में कठिनाई होती थी, जिसका भाई नहीं होता था, क्योंकि ऐसा बालक अपने पिता के कुल का न होकर नाना के कुल का हो जाता था। परिवार में माता व पिता का स्थान प्रथम था। दोनों को युक्त कर पितरौं अर्थात् पिता और माता यौगिक शब्द का प्रयोग होता था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋवेद. 10.7,3
  2. ऋवेद.1.38,1
  3. ऋवेद. 5.4-3,7
  4. ऋग्वेद. 7.103.3
  5. ऋग्वेद 2.29,5
  6. ऋग्वेद.1.116,16;117,17

संबंधित लेख