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'''मालव, मालवगण''' का पश्चादवर्ती निवास स्थान। [[सिकन्दर]] ने इस पर आक्रमण किया था और हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला था।  
'''मालव''', 'मालवगण' का पश्चादवर्ती निवास स्थान। [[सिकन्दर]] ने इस पर आक्रमण किया था और हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला था। मालवगण प्राचीन काल में विख्यात था। [[यूनानी]] इतिहासकारों ने सम्भवत: इसे ही 'भल्लोई' की संज्ञा दी है। सिकन्दर के आक्रमण के समय 'हाइड्राओटिस' (इरावती अथवा आधुनिक रखी) नदी के दक्षिणी भाग में उसके दाहिने तट पर इस गण का वास था।
==इतिहास==
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जब सिकन्दर ने इस मालवगण के नगरों पर आक्रमण किया, तब मालवों ने सिकन्दर को जख़्मी कर दिया। आक्रमणकारी [[यवन]] सेना ने इस गण को पराजित कर दिया और उसके हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला। किसी अनिश्चित काल में यह गण [[अवन्ती]] में आ बसा और उसके नाम पर यह क्षेत्र 'मालव' अथवा [[मालवा]] कहा जाने लगा।
'''मालवगण प्राचीन काल में विख्यात था।''' [[यूनानी]] इतिहासकारों ने सम्भवत: इसे ही भल्लोई की संज्ञा दी है। [[सिकन्दर]] के आक्रमण के समय हाइड्राओटिस '''(इरावती अथवा आधुनिक रखी)''' नदी के दक्षिणी भाग में उसके दाहिने तट पर इस गण का वास था। जब सिकन्दर ने इस गण के नगरों पर आक्रमण किया, तब उन्होंने सिकन्दर को जख़्मी कर दिया। आक्रमणकारी यवन सेना ने इस गण को पराजित कर दिया और उसके हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला। किसी अनिश्चित काल में यह गण [[अवन्ती]] में आ बसा और '''उसके नाम पर यह क्षेत्र मालव अथवा [[मालवा]] कहा जाने लगा।'''
 
====समुद्रगुप्त की अधीनता====
*[[महाभारत वनपर्व]]<ref>महाभारत वन पर्व अध्याय 254 श्लोक 1-25</ref> के अनुसार मालव गणराज्य को [[कर्ण]] ने विजित किया था। कर्ण ने सामनीति के द्वारा [[अवंती|अवन्‍ती देश]] के राजाओं को वश में करके [[वृष्णि संघ|वृष्णिवंशी]] यादवों से हिल-मिलकर पश्चिम दिशा पर विजय प्राप्‍त की थी। इसके बाद पश्चिम दिशा में जाकर यवन तथा बर्बर राजाओं को, जो पश्चिम देश के ही निवासी थे, पराजित करके उनसे कर लिया। इस प्रकार अधिकांश राज्यों को जीतकर उसने म्‍लेच्‍छ, वनवासी, पर्वतीय भद्र, रोहितक, आग्रेय तथा '''मालव''' आदि समस्‍त गणराज्‍यों को परास्‍त किया। इसके बाद नीति के अनुसार काम करने-वाले सूतनन्‍दन कर्ण ने हँसते-हँसते शशक और यवन राजाओं को भी जीत लिया था।
[[उज्जयिनी]] मालव की राजधानी बनी। प्रारम्भ में उज्जयिनी गंणतंत्रात्मक शासन था, बाद में राजतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुई। ईसवी सन की प्रारम्भिक शताब्दियों में यहाँ पर शक क्षत्रपों का शासन स्थापित हुआ। चौथी शताब्दी ई. में उन्होंने [[समुद्रगुप्त]] की सार्वभौम सत्ता को स्वीकार कर लिया। समुद्रगुप्त के पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने इसे गुप्त साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चीनी यात्री फ़ाह्यान ने मालवा की यात्रा की थी। उसने यहाँ के लोगों को सम्पन्न पाया। यहाँ की जलवायु उसे बहुत स्वास्थ्यप्रद लगी और यहाँ के सुशासन से वह बहुत प्रभावित हुआ।
==समुद्रगुप्त की अधीनता==
====गुप्त साम्राज्य का पतन====
[[उज्जयिनी]] मालव की राजधानी बनी। प्रारम्भ में उज्जयिनी गंणतंत्रात्मक शासन था, बाद में राजतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुई। ईसवी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में यहाँ पर [[शक]] क्षत्रपों का शासन स्थापित हुआ। चौथी शताब्दी ई. में उन्होंने [[समुद्रगुप्त]] की सार्वभौम सत्ता को स्वीकार कर लिया। समुद्रगुप्त के पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने इसे [[गुप्त वंश|गुप्त]] साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] ने मालवा की यात्रा की थी। उसने यहाँ के लोगों को सम्पन्न पाया। यहाँ की जलवायु उसे बहुत स्वास्थ्यप्रद लगी और यहाँ के सुशासन से वह बहुत प्रभावित हुआ था।
'''गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद''' [[मालवा]] पर [[हूण|हूणों]] का अधिकार स्थापित हो गया। लगभग 528 ई. में राजा [[यशोधर्मा]] ने हूणों को परास्त किया और मालवगण की प्रसिद्ध तथा प्राचीन नगरी उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया।
==हूणों का अधिकार==
====विभिन्न सल्तनतों का अधिकार====
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद मालवा पर [[हूण|हूणों]] का अधिकार स्थापित हो गया। लगभग 528 ई. में राजा [[यशोधर्मा]] ने [[हूण|हूणों]] को परास्त किया और मालवगण की प्रसिद्ध तथा प्राचीन नगरी उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया। उज्जयिनी [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की न केवल एक पवित्र नगरी है, वरन् वह विद्या का केन्द्र भी रही है। इसका नाम परम्परागत रूप में महान् राजा [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] और इसके प्रसिद्ध राजकवि [[कालिदास]] के साथ जुड़ा हुआ है। मालवगण का यह क्षेत्र धीरे-धीरे मालवा के सुशोभित राज्य में विकसित हो गया।
'''उज्जयिनी हिन्दुओं की न केवल एक पवित्र नगरी है''' वरन् वह विद्या का केन्द्र भी रही है। इसका नाम परम्परागत रूप में महान राजा [[विक्रमादित्य]] और इसके प्रसिद्ध राजकवि [[कालिदास]] के साथ जुड़ा हुआ है। मालवगण का यह क्षेत्र धीरे-धीरे मालवा के सुशोभित राज्य में विकसित हो गया। बाद की शताब्दियों में यह राज्य पहले [[चालुक्य]] राज्य और फिर गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का एक भाग रहा। 1301 ई. में सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने इसे [[दिल्ली]] की सल्तनत में शामिल कर लिया। 1401 ई. में यह स्वतंत्र मुस्लिम राज्य बन गया। 1531 ई. में इसे [[गुजरात]] के सुल्तान ने अपने अधीन कर लिया, परन्तु 41 वर्षों बाद ही [[अकबर]] ने 1572-72 ई. में इस पर चढ़ाई करके इसे जीत लिया और [[मुग़ल]] साम्राज्य में शामिल कर लिया। 1738 ई. में यह मराठों के अधिकार में आ गया और इस पर [[महादजी शिन्दे]] शासन करने लगा। तीसरे [[मराठा]] युद्ध में महादजी शिन्दे के पराभव के बाद यह ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया। <ref>(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-361</ref>
==विभिन्न सल्तनतों का अधिकार==
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Latest revision as of 11:01, 1 August 2017

मालव, 'मालवगण' का पश्चादवर्ती निवास स्थान। सिकन्दर ने इस पर आक्रमण किया था और हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला था। मालवगण प्राचीन काल में विख्यात था। यूनानी इतिहासकारों ने सम्भवत: इसे ही 'भल्लोई' की संज्ञा दी है। सिकन्दर के आक्रमण के समय 'हाइड्राओटिस' (इरावती अथवा आधुनिक रखी) नदी के दक्षिणी भाग में उसके दाहिने तट पर इस गण का वास था।

इतिहास

जब सिकन्दर ने इस मालवगण के नगरों पर आक्रमण किया, तब मालवों ने सिकन्दर को जख़्मी कर दिया। आक्रमणकारी यवन सेना ने इस गण को पराजित कर दिया और उसके हज़ारों निर-अपराधी नर-नारियों को मार डाला। किसी अनिश्चित काल में यह गण अवन्ती में आ बसा और उसके नाम पर यह क्षेत्र 'मालव' अथवा मालवा कहा जाने लगा।

  • महाभारत वनपर्व[1] के अनुसार मालव गणराज्य को कर्ण ने विजित किया था। कर्ण ने सामनीति के द्वारा अवन्‍ती देश के राजाओं को वश में करके वृष्णिवंशी यादवों से हिल-मिलकर पश्चिम दिशा पर विजय प्राप्‍त की थी। इसके बाद पश्चिम दिशा में जाकर यवन तथा बर्बर राजाओं को, जो पश्चिम देश के ही निवासी थे, पराजित करके उनसे कर लिया। इस प्रकार अधिकांश राज्यों को जीतकर उसने म्‍लेच्‍छ, वनवासी, पर्वतीय भद्र, रोहितक, आग्रेय तथा मालव आदि समस्‍त गणराज्‍यों को परास्‍त किया। इसके बाद नीति के अनुसार काम करने-वाले सूतनन्‍दन कर्ण ने हँसते-हँसते शशक और यवन राजाओं को भी जीत लिया था।

समुद्रगुप्त की अधीनता

उज्जयिनी मालव की राजधानी बनी। प्रारम्भ में उज्जयिनी गंणतंत्रात्मक शासन था, बाद में राजतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुई। ईसवी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में यहाँ पर शक क्षत्रपों का शासन स्थापित हुआ। चौथी शताब्दी ई. में उन्होंने समुद्रगुप्त की सार्वभौम सत्ता को स्वीकार कर लिया। समुद्रगुप्त के पुत्र एवं उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इसे गुप्त साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। पाँचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चीनी यात्री फ़ाह्यान ने मालवा की यात्रा की थी। उसने यहाँ के लोगों को सम्पन्न पाया। यहाँ की जलवायु उसे बहुत स्वास्थ्यप्रद लगी और यहाँ के सुशासन से वह बहुत प्रभावित हुआ था।

हूणों का अधिकार

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद मालवा पर हूणों का अधिकार स्थापित हो गया। लगभग 528 ई. में राजा यशोधर्मा ने हूणों को परास्त किया और मालवगण की प्रसिद्ध तथा प्राचीन नगरी उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया। उज्जयिनी हिन्दुओं की न केवल एक पवित्र नगरी है, वरन् वह विद्या का केन्द्र भी रही है। इसका नाम परम्परागत रूप में महान् राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय और इसके प्रसिद्ध राजकवि कालिदास के साथ जुड़ा हुआ है। मालवगण का यह क्षेत्र धीरे-धीरे मालवा के सुशोभित राज्य में विकसित हो गया।

विभिन्न सल्तनतों का अधिकार

बाद की शताब्दियों में मालव राज्य पहले चालुक्य राज्य और फिर गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का एक भाग रहा। 1301 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे दिल्ली की सल्तनत में शामिल कर लिया। 1401 ई. में यह स्वतंत्र मुस्लिम राज्य बन गया। 1531 ई. में इसे गुजरात के सुल्तान ने अपने अधीन कर लिया, परन्तु 41 वर्षों बाद ही अकबर ने 1572-72 ई. में इस पर चढ़ाई करके इसे जीत लिया और मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया। 1738 ई. में यह मराठों के अधिकार में आ गया और इस पर महादजी शिन्दे शासन करने लगा। तीसरे मराठा युद्ध में महादजी शिन्दे के पराभव के बाद यह ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-361

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 254 श्लोक 1-25