बरमान का मेला: Difference between revisions
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*मेले में दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। गांव से बैलगाड़ियों में भर कर लोग आते हैं। वे अपने बैलों को नहला-धुलाकर व सजा-धजा कर लाते हैं और [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तट पर बाटी-भर्ता बनाकर खाते हैं। | *मेले में दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। गांव से बैलगाड़ियों में भर कर लोग आते हैं। वे अपने बैलों को नहला-धुलाकर व सजा-धजा कर लाते हैं और [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तट पर बाटी-भर्ता बनाकर खाते हैं। | ||
*मेले में सर्कस भी आता है। ऐसे मेले ग्राम्य जीवन में उमंग व उत्साह का संचार कर देते हैं। इनका | *मेले में सर्कस भी आता है। ऐसे मेले ग्राम्य जीवन में उमंग व उत्साह का संचार कर देते हैं। इनका ख़ासतौर से बच्चों और महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है, जिन्हें बाहर निकलने का मौका कम मिलता है। | ||
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बरमान का मेला मध्य प्रदेश राज्य में नरसिंहपुर ज़िले के 'बरमान' नामक स्थान पर आयोजित होता है। यह प्रसिद्ध मेला 'मकर संक्रांति' से प्रारम्भ होता है। नर्मदा नदी के किनारे बरमान के मेले तले विभिन्न पृष्ठभूमियों और रीति-रीवाज से जुड़े लोगों का संगम क़रीब एक महीने तक चलता है।
- मध्य प्रदेश में करेली-सागर रोड़ पर बरमान स्थित है। नर्मदा नदी यहाँ से भी होकर गुजरती है।
- नदियों के किनारे पैदा हुई मेला संस्कृति ने कई परंपराओं व मान्यताओं को हमेशा ही पोषित किया है। नरसिंहपुर ज़िले का बरमान मेला भी मूल्यों व परंपरा संग सदियों का सफर पूरा कर चुका है।
- बरमान के मेले की शुरुआत कब हुई, इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन जनश्रुति के आधार पर यह मेला आठ सदियों के पड़ाव पार कर चुका है।
- 'मकर संक्राति' से बरमान मेला शुरू हो जाता है, जिसकी तैयारी रेतघाट में प्रारम्भ हो जाती है।
- मेले में दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। गांव से बैलगाड़ियों में भर कर लोग आते हैं। वे अपने बैलों को नहला-धुलाकर व सजा-धजा कर लाते हैं और नर्मदा तट पर बाटी-भर्ता बनाकर खाते हैं।
- मेले में सर्कस भी आता है। ऐसे मेले ग्राम्य जीवन में उमंग व उत्साह का संचार कर देते हैं। इनका ख़ासतौर से बच्चों और महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है, जिन्हें बाहर निकलने का मौका कम मिलता है।
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