विट्ठलस्वामी मन्दिर, हम्पी: Difference between revisions
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* | *हम्पी बाज़ार से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित 16 [[शताब्दी]] में निर्मित विट्ठलस्वामी मंदिर 'विश्व विरासत स्थल' की सूची में शामिल प्रमुख स्मारक है। | ||
*मंदिर की नक्काशी '[[विजयनगर साम्राज्य]]' के वास्तुकारों की तकनीकी जादूगरी को दर्शाती है। | |||
*मन्दिर विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है। इसके विषय में [[फ़र्ग्यूसन]] का विचार है कि "यह [[फूल|फूलों]] से अलंकृत वैभव की पराकाष्ठा का द्योतक है, जहाँ तक [[शैली]] पहुँच चुकी थी"। | |||
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*मंदिर के कल्याण मंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। | *मंदिर के कल्याण मंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है। | ||
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Latest revision as of 10:52, 29 September 2016
विट्ठलस्वामी मन्दिर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यह मन्दिर कर्नाटक राज्य के हम्पी में स्थित है। हम्पी के समस्त मन्दिरों में यह सबसे ऊँचा है। माना जाता है कि राजा कृष्णदेव राय ने 'हज़ार राम' एवं 'विट्ठलस्वामी' नामक मंदिरों का निर्माण करवाया था।
- हम्पी बाज़ार से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित 16 शताब्दी में निर्मित विट्ठलस्वामी मंदिर 'विश्व विरासत स्थल' की सूची में शामिल प्रमुख स्मारक है।
- मंदिर की नक्काशी 'विजयनगर साम्राज्य' के वास्तुकारों की तकनीकी जादूगरी को दर्शाती है।
- मन्दिर विजयनगर शैली का एक सुन्दर नमूना है। इसके विषय में फ़र्ग्यूसन का विचार है कि "यह फूलों से अलंकृत वैभव की पराकाष्ठा का द्योतक है, जहाँ तक शैली पहुँच चुकी थी"।
- हम्पी में विट्ठलस्वामी का मन्दिर सबसे ऊँचा है। यह विजयनगर के ऐश्वर्य तथा कलावैभव के चरमोत्कर्ष का द्योतक है।
- मंदिर के कल्याण मंडप की नक़्क़ाशी इतनी सूक्ष्म और सघन है कि यह देखते ही बनता है।
- विट्ठलस्वामी मंदिर का भीतरी भाग 55 फुट लम्बा है और इसके मध्य में ऊंची वेदिका बनी है।
- भगवान का रथ केवल एक ही पत्थर में से काटकर बनाया गया है, जो देखने में सुंदर है।
- मंदिर के निचले भाग में सर्वत्र नक़्क़ाशी की हुई है, जिससे मंदिर की ख़ूबसूरती और बढ़ती है।
- लांगहर्स्ट के कथनानुसार- "यद्यपि मंडप की छत कभी पूरी नहीं बनाई जा सकी थी और इसके स्तंभों में से अनेक को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया, तो भी यह मन्दिर दक्षिण भारत का सर्वोत्कृष्ट मंदिर कहा जा सकता है।
- फ़र्ग्युसन ने भी इस मंदिर में हुई नक़्क़ाशी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
- कहा जाता है कि पंढरपुर के विट्ठल भगवान इस मंदिर की विशालता देखकर यहाँ आकर फिर पंढरपुर चले गए थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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