राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('राजस्थान का नाम सुनते ही प्रदेश के विभिन्न हिस्स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(4 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 22: Line 22:
;(क) गांधीसागर बांध
;(क) गांधीसागर बांध
यह बांध [[1960]] में मध्य प्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ में 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। इससे 2 नहरें निकाली गई हैं।<br />
यह बांध [[1960]] में मध्य प्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ में 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। इससे 2 नहरें निकाली गई हैं।<br />
बाईं नहर - बूंदी तक जाकर मेेज नदी में मिलती है।<br />
बाईं नहर - [[बूंदी]] तक जाकर मेेज नदी में मिलती है।<br />
दांयी नहर - पार्वत नदी को पार करके मध्य प्रदेश में चली जाती है। यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।
दांयी नहर - पार्वत नदी को पार करके मध्य प्रदेश में चली जाती है। यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।


Line 32: Line 32:
यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती हैं-<br />
यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती हैं-<br />
दायीं नहर - पार्वती व परवन नदी को पार करके [[मध्य प्रदेश]] में चली जाती है।<br />
दायीं नहर - पार्वती व परवन नदी को पार करके [[मध्य प्रदेश]] में चली जाती है।<br />
बायी नहर - कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली मं जलापूर्ति करती है।
बायी नहर - [[कोटा]], [[बूंदी]], [[टोंक]], [[सवाई माधोपुर]], [[करौली]] मं जलापूर्ति करती है।
 
===भाखड़ा नांगल परियोजना===
===भाखड़ा नांगल परियोजना===
भाखड़ा नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने सतलज नदी पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण 1946 में प्रारम्भ हुआ एवं 1962 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम गोबिन्द सागर है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है।
[[भाखड़ा नांगल परियोजना]] [[भारत]] की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। [[पंजाब]], [[हरियाणा]], [[राजस्थान]], [[हिमाचल प्रदेश]] की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने [[सतलुज नदी]] पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण [[1946]] में प्रारम्भ हुआ एवं [[1962]] को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम 'गोबिन्द सागर' है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है। इस परियोजना के अन्तर्गत निम्नलिखित शामिल हैं-
 
;() भाखड़ा बांध
इस परियोजना के अन्तर्गत
इसका निर्माण [[पंजाब]] के होशियारपुर ज़िले में सतलुज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय [[गोविन्द सागर झील|गोविन्द सागर]] है। इस बांध को देखकर [[जवाहरलाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] ने इसे "चमत्कारिक विराट वस्तु" की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को "आधुनिक भारत का मन्दिर" कहा।
 
;() नांगल बांध
. भाखड़ा बांध
यह बांध भाखड़ा से 12 कि.मी. पहले एक घाटी में बना है। इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है, जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।
 
;() भाखड़ा मुख्य नहर
इसका निर्माण पंजाब के होशियारपुर जिले में सतलज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय गोविन्द सागर है। इस बांध को देखकर पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसे चमत्कारिक विराट वस्तु की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत का मन्दिर कहा है।
यह पंजाब के रोपड़ से निकलती है। यह [[हरियाणा]] के [[हिसार]] के लोहाणा कस्बे तक विस्तारित है। इसकी कुल लम्बाई 175 कि.मी. है।
 
. नांगल बांध
 
यह बांध भाखड़ा से 12 कि.मी. पहले एक घाटी में बना है इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।
 
. भाखड़ा मुख्य नहर
 
यह पंजाब के रोपड़ से निकलती है यह हरियाणा के हिसार के लोहाणा कस्बे तक विस्तारित है। इसकी कुल लम्बाई 175 कि.मी. है।
 
इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई है। इस परियोजना से राजस्थान के श्री गंगानगर व हनुमानगढ़ चुरू जिलों को जल व विधुत एवं श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुझुनू, सीकर बीकानेर को विधुत की आपूर्ति होती है।
 
3. व्यास परियोजना
 
यह पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में है। इस परियोजना के प्रथम चरण में 1 बांध, व्यास लिंक का निर्माण और एक विधुत ग्रह का निर्माण किया गया है। द्वितीय चरण में व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया। इससे IGNP में नियमित जलापूर्ति रखने में मदद मिलती है।
 
रावी - व्यास जल विवाद
 
जल के बंटवारे के लिए 1953 में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मु - कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच एक समझौता हुआ इसमें सभी राज्यों के लिए अलग- अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं तब सन् 1985 में राजीव गांधी लौंगवाला समझौते के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में इराडी आयोग बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।
 
4. माही - बजाज सागर परियोजना
 
यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 1966 में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। इस परियोजना में गुजरात के पंच महल जिले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। इसी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बजाज सागर बांध बना हुआ है। इसके अलावा यहां 2 नहरें, 2 विधुत ग्रह, 2 लघु विधुत ग्रह व 1 कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। 1983 में इन्दिरा गांधी ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।
 
वृहत परियोजनाएं
 
1. इन्दिरा गांधी नहर परियोजना(IGNP)
 
यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी इसे प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘ बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता‘ था। IGNP का मुख्यालय(बोर्ड) जयपुर में है।
 
इस नहर का निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलज, व्यास नदियों के संगम पर 1952 में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से बाड़मेर के गडरा रोड़ तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया। जिससे श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर को जलापूर्ति हो सके।
 
नहर निर्माण कार्य का श्री गणेश तात्कालिक ग्रहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने 31 मार्च 1958 को किया । 11 अक्टुबर 1961 को इससे सिंचाई प्रारम्भ हो गई, जब तात्कालिन उपराष्ट्रपति डा. राधाकृष्णनन ने नहर की नौरंगदेसर वितरिका में जल प्रवाहित किया था।
 
IGNP के दो भाग हैं। प्रथम भाग राजस्थान फीडर कहलाता है इसकी लम्बाई 204 कि.मी.(169 कि.मी. पंजाब व हरियाणा + 35 कि.मी. राजस्थान) है। जो हरिकै बैराज से हनुमानगढ़ के मसीतावाली हैड तक विस्तारित है। नहर के इस भाग में जल का दोहन नहीं होता है।
 
IGNP का दुसरा भाग मुख्य नहर है। इसकी लम्बाई 445 किमी. है। यह मसीतावाली से जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे तक विस्तारित है। इस प्रकार IGNP की कुल लम्बाई 649 किमी. है। इसकी वितरिकाओं की लम्बाई 9060 किमी. है। IGNP के निर्माण के प्रथम चरण में राजस्थान फीडर सूरतगढ़, अनुपगढ़, पुगल शाखा का निर्माण हुआ है। इसके साथ-साथ 3075 किमी. लम्बी वितरक नहरों का निर्माण हुआ है।
 
राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन् 1975 में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 किमी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया है। नहर का द्वितीय चरण बीकानेर के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ है। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को IGNP का ZERO POINT कहते हैं।
 
मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी है। द्वितीय चरण का कार्य 1972-73 में पुरा हुआ है। 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुई थी। 1 जनवरी 1987 को वी. पी.(विश्व नाथप्रताप) सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया।
 
IGNP नहर की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है।
 
रावी - व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग(1966) के फैसले से राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग IGNP के माध्यम से किय जायेगा।
 


IGNP के द्वारा राज्य के आठ जिलों - हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, चूरू, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर एवं बाड़मेर में सिंचाई हो रही है या होगी। इनमें से सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर जिलों का है।
इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई हैं। इस परियोजना से [[राजस्थान]] के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़, चुरू ज़िलों को जल व विधुत एवं श्रीगंगानगर, [[हनुमानगढ़]], चुरू, [[झुंझुनू]], [[सीकर]], [[बीकानेर]] को विधुत की आपूर्ति होती है।
===व्यास परियोजना===
यह पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में है। इस परियोजना के प्रथम चरण में एक बांध, व्यास लिंक का निर्माण और एक विधुत ग्रह का निर्माण किया गया है। द्वितीय चरण में [[व्यास नदी]] पर पौंग बांध बनाया गया। इससे [[इंदिरा गाँधी नहर|इंदिरा गाँधी नहर परियोजना]] में नियमित जलापूर्ति रखने में मदद मिलती है।
====रावी-व्यास जल विवाद====
[[जल]] के बंटवारे के लिए [[1953]] में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, [[जम्मू-कश्मीर]], [[दिल्ली]], [[हिमाचल प्रदेश]] राज्यों के बीच एक समझौता हुआ। इसमें सभी राज्यों के लिए अलग-अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई, लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं। तब सन [[1985]] में 'राजीव गांधी लौंगवाला समझौते' के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में 'इराडी आयोग' बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।
===माही-बजाज सागर परियोजना===
यह [[राजस्थान]] एवं [[गुजरात]] की संयुक्त परियोजना है। [[1966]] में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। इस परियोजना में गुजरात के पंचमहल ज़िले में [[माही नदी]] पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। इसी परियोजना के अंतर्गत [[बांसवाड़ा]] के बोरखेड़ा गांव में [[माही परियोजना|माही बजाज सागर बांध]] बना हुआ है। इसके अलावा यहां दो नहरें, दो विधुत ग्रह, दो लघु विधुत ग्रह व एक कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। [[1983]] में [[इंदिरा गाँधी]] ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा ज़िलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।
==वृहत परियोजनाएं==
राजस्थान की वृहत परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं-
===इंदिरा गाँधी नहर परियोजना===
{{main|इंदिरा गाँधी नहर}}
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना को "राजस्थान की जीवन रेखा/मरूगंगा" भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। [[2 नवम्बर]] [[1984]] को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। [[बीकानेर]] के इंजीनियर कंवर सैन ने [[1948]] में [[भारत सरकार]] के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया, जिसका विषय 'बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता' था। इंदिरा गाँधी नहर परियोजना का मुख्यालय [[जयपुर]] में है। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी, व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलुज, व्यास नदियों के संगम पर [[1952]] में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से [[बाड़मेर]] के गडरा रोड तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया, जिससे श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर को जलापूर्ति हो सके।


राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन [[1975]] में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 कि.मी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 कि.मी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया। नहर का द्वितीय चरण [[बीकानेर]] के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। [[जैसलमेर]] के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को इंदिरा गाँधी नहर परियोजना का 'जीरो पॉइंट' कहते हैं। मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी हैं। द्वितीय चरण का कार्य [[1972]]-[[1973]] में पुरा हुआ। 256 कि.मी. लम्बी मुख्य नहर [[दिसम्बर]] [[1986]] में बनकर तैयार हुई थी। [[1 जनवरी]] [[1987]] को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया। [[इंदिरा गाँधी नहर]] की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है। रावी-व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग ([[1966]]) के फैसले से राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के माध्यम से किया जायेगा। इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के द्वारा राज्य के आठ ज़िलों- [[हनुमानगढ़]], श्रीगंगानगर, चूरू, [[बीकानेर]], [[जोधपुर]], नागौर, [[जैसलमेर]] एवं [[बाड़मेर]] में सिंचाई हो रही है। इनमें से सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर ज़िलों का है।
;शाखाएँ
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना से सात शाखाएं निकाली गयी हैं, जो निम्न हैं-
{| width="70%" class="bharattable-pink"
|-
! क्र.सं. !! लिफ्ट नहर का पुराना !! लिफ्ट नहर का नया नाम !! लाभान्वित ज़िले
|-
| 1. || गंधेली (नोहर) साहवा लिफ्ट || चौधरीरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर || [[हनुमानगढ़]], [[चुरू ज़िला|चुरू]], [[झुंझुनू]]
|-
| 2. || बीकानेर-लुणकरणसर लिफ्ट || कंवरसेन लिफ्ट नहर || श्रीगंगानगर, [[बीकानेर]]
|-
|3. || गजनेर लिफ्ट नहर || पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर || बीकानेर, [[नागौर]]
|-
|4. || बांगड़सर लिफ्ट नहर || भैरूदम चालनी वीर तेजाजी लिफ्ट नहर || [[बीकानेर]]
|-
|5. || कोलायत लिफ्ट नहर || डॉ. करणी सिंह लिफ्ट नहर || बीकानेर, [[जोधपुर]]
|-
|6. || फलौदी लिफ्ट नहर || गुरु जम्भेश्वर जलो उत्थान योजना || जोधपुर, [[बीकानेर]], [[जैसलमेर]]
|-
|7. || पोकरण लिफ्ट नहर || जयनारायण व्यास लिफ्ट || जैसलमेर, [[जोधपुर]]
|-
|8. || जोधपुर लिफ्ट नहर (170 कि.मी. + 30 कि.मी. तक पाईप लाईन) || राजीव गांधी लिफ्ट नहर || जोधपुर
|}




{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{नदी घाटी परियोजनाएँ}}
{{राजस्थान की नहरें}}{{नदी घाटी परियोजनाएँ}}
[[Category:नदी घाटी परियोजनाएँ]][[Category:नहरें]][[Category:राजस्थान]][[Category:भूगोल कोश]]
[[Category:राजस्थान की नहरें]][[Category:नहरें]][[Category:नदी घाटी परियोजनाएँ]][[Category:राजस्थान]][[Category:भूगोल कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:45, 10 January 2017

राजस्थान का नाम सुनते ही प्रदेश के विभिन्न हिस्से में रह रहे लोगों के मन में रेतनुमा इलाके की छवि आती होगी। यह माना जाता है कि राजस्थान की ज्यादातर भूमि खेती योग्य नहीं है। कभी यह सच था, लेकिन अब यह मिथक टूट रहा है। राज्य में भले पानी की कमी हो, लेकिन यहां पानी बचाने का काम भी व्यापक स्तर पर चल रहा है। अगर राजस्थान की भौगोलिक स्थिति पर गौर करें तो क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ा राज्य है। इसका क्षेत्रफल करीब 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है। इस राज्य के श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर ज़िले पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं और यह सीमा करीब 1070 किलोमीटर है। राज्य का उत्तर-पश्चिमी इलाका रेतीला है, तो मध्य पर्वतीय एवं दक्षिण-पूरब का हिस्सा पठारी है। सिर्फ़ पूर्वी हिस्सा मैदानी है। इसके बाद भी इलाके के हर हिस्से में खेत लहलहाते हुए दिखाई पड़ते हैं।

परिभाषा

"वर्षा के अभाव में भूमि को कृत्रिम तरीके से जल पिलाने की क्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है।"

सिंचाई आधारभूत संरचना का अंग है। योजनाबद्ध विकास के 60 वर्षों के बाद भी राजस्थान आधारभूत संरचना की दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले पिछड़ा हुआ है। राज्य में कृषि योग्य भूमि का 2/3 भाग वर्षा पर निर्भर करता है।

शुष्क खेती

वर्षा आधारित क्षेत्रों में भूमि की नमी को संरक्षित रखकर की जाने वाली खेती को 'शुष्क खेती' कहते हैं। भारत में नहरों की कुल लम्बाई विश्व में सबसे अधिक है। सिंचित क्षेत्र भी सबसे अधिक है। परन्तु हमारी आवश्यकताओं से कम है। राजस्थान के कुल सिचित क्षेत्र का सबसे अधिक भाग श्रीगंगानगर एवं सबसे कम भाग राजसमंद ज़िले में मिलता है। कुल कृषि क्षेत्र के सर्वाधिक भाग पर सिंचाई श्रीगंगानगर ज़िले में तथा सबसे कम चूरू ज़िले में मिलता है। राजस्थान कृषि प्रधान राज्य है। यहां के अधिकांश लोग जीवन-स्तर के लिए कृषि पर निर्भर है। कृषि विकास सिंचाई पर निर्भर करता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरुस्थल है। मानसून की अनिश्चितता के कारण 'कृषि मानसून का जुआ' जैसी बात कई बार चरितार्थ होती है।

सिंचाई के साधन

अप्रैल, 1978 से सिंचाई के साधनों की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जाती थी-

  1. लघु सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 2000 हैक्टेयर तक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
  2. मध्यम सिंचाई का साधन - वह साधन जिसमें 2000 हैक्टेयर से अधिक, किन्तु 10000 हैक्टेयर से कम सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
  3. वृहत सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 10,000 हैक्टेयर से अधिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन

  1. कुएँ एवं नलकूप - ये राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। कुल सिंचित भुमि का लगभग 66 प्रतिशत भाग कुंए एवं नलकूप से सिंचित होता है। कुएँ एवं नलकूप से सर्वाधिक सिंचाई जयपुर में की जाती है। द्वितीय स्थान अलवर का है। जैसलमेर में चंदन नलकूप मीठे पानी के लिए ‘थार का घड़ा‘ कहलाता है।
  2. नहरें - राजस्थान में नहरों से कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 33 प्रतिशत भाग सिंचित होता है। नहरों से सर्वाधिक सिंचाई श्रीगंगानगर में होती है।
  3. तालाब - तालाबों से सिंचाई कुल सिंचित क्षेत्र के 0.6 प्रतिशत भाग में होती है। तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में दूसरा स्थान उदयपुर का है। राजस्थान के दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई की जाती है।
  4. अन्य साधन - अन्य साधनों में नदी नालों को सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस साधन से कुल सिंचित क्षेत्र के 0.3 भाग में सिंचाई की जाती है।

प्रमुख बहुउद्देश्य परियोजनाएं

पं. जवाहरलाल नेहरू ने बहुउद्देश्य परियोजनओं को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर‘ कहा है। राजस्थान की कुछ नदी घाटी परियोजनाओं का विवरण निम्न प्रकार है-

चम्बल नदी घाटी परियोजना

चम्बल परियोजना का कार्य 1952-1954 में प्रारम्भ हुआ। यह राजस्थानमध्य प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें दानों राज्यों की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत है।

(क) गांधीसागर बांध

यह बांध 1960 में मध्य प्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ में 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। इससे 2 नहरें निकाली गई हैं।
बाईं नहर - बूंदी तक जाकर मेेज नदी में मिलती है।
दांयी नहर - पार्वत नदी को पार करके मध्य प्रदेश में चली जाती है। यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।

(ख) राणा प्रताप सागर बांध

यह बांध गांधी सागर बांध से 48 कि.मी. आगे चित्तौड़गढ़ में चुलिया जल प्रपात के समीप रावतभाटा नामक स्थान पर 1970 में बनाया गया है।

(ग) जवाहर सागर बांध

इसे कोटा बांध भी कहते हैं। यह राणा प्रताप सागर बांध से 38 कि.मी. आगे कोटा के बोरावास गांव में बना हुआ है। यहां एक विधुत शक्ति ग्रह भी बनाया गया है।

(घ) कोटा बैराज

यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती हैं-
दायीं नहर - पार्वती व परवन नदी को पार करके मध्य प्रदेश में चली जाती है।
बायी नहर - कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली मं जलापूर्ति करती है।

भाखड़ा नांगल परियोजना

भाखड़ा नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने सतलुज नदी पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण 1946 में प्रारम्भ हुआ एवं 1962 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम 'गोबिन्द सागर' है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है। इस परियोजना के अन्तर्गत निम्नलिखित शामिल हैं-

(क) भाखड़ा बांध

इसका निर्माण पंजाब के होशियारपुर ज़िले में सतलुज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय गोविन्द सागर है। इस बांध को देखकर पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसे "चमत्कारिक विराट वस्तु" की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को "आधुनिक भारत का मन्दिर" कहा।

(ख) नांगल बांध

यह बांध भाखड़ा से 12 कि.मी. पहले एक घाटी में बना है। इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है, जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।

(ग) भाखड़ा मुख्य नहर

यह पंजाब के रोपड़ से निकलती है। यह हरियाणा के हिसार के लोहाणा कस्बे तक विस्तारित है। इसकी कुल लम्बाई 175 कि.मी. है।

इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई हैं। इस परियोजना से राजस्थान के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़, चुरू ज़िलों को जल व विधुत एवं श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू, सीकर, बीकानेर को विधुत की आपूर्ति होती है।

व्यास परियोजना

यह पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में है। इस परियोजना के प्रथम चरण में एक बांध, व्यास लिंक का निर्माण और एक विधुत ग्रह का निर्माण किया गया है। द्वितीय चरण में व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया। इससे इंदिरा गाँधी नहर परियोजना में नियमित जलापूर्ति रखने में मदद मिलती है।

रावी-व्यास जल विवाद

जल के बंटवारे के लिए 1953 में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच एक समझौता हुआ। इसमें सभी राज्यों के लिए अलग-अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई, लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं। तब सन 1985 में 'राजीव गांधी लौंगवाला समझौते' के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में 'इराडी आयोग' बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।

माही-बजाज सागर परियोजना

यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 1966 में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। इस परियोजना में गुजरात के पंचमहल ज़िले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। इसी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बजाज सागर बांध बना हुआ है। इसके अलावा यहां दो नहरें, दो विधुत ग्रह, दो लघु विधुत ग्रह व एक कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। 1983 में इंदिरा गाँधी ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा ज़िलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।

वृहत परियोजनाएं

राजस्थान की वृहत परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं-

इंदिरा गाँधी नहर परियोजना

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

इंदिरा गाँधी नहर परियोजना को "राजस्थान की जीवन रेखा/मरूगंगा" भी कहा जाता है। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया, जिसका विषय 'बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता' था। इंदिरा गाँधी नहर परियोजना का मुख्यालय जयपुर में है। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी, व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलुज, व्यास नदियों के संगम पर 1952 में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से बाड़मेर के गडरा रोड तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया, जिससे श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर को जलापूर्ति हो सके।

राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन 1975 में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 कि.मी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 कि.मी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया। नहर का द्वितीय चरण बीकानेर के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को इंदिरा गाँधी नहर परियोजना का 'जीरो पॉइंट' कहते हैं। मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी हैं। द्वितीय चरण का कार्य 1972-1973 में पुरा हुआ। 256 कि.मी. लम्बी मुख्य नहर दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुई थी। 1 जनवरी 1987 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया। इंदिरा गाँधी नहर की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है। रावी-व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग (1966) के फैसले से राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के माध्यम से किया जायेगा। इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के द्वारा राज्य के आठ ज़िलों- हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चूरू, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर एवं बाड़मेर में सिंचाई हो रही है। इनमें से सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर ज़िलों का है।

शाखाएँ

इंदिरा गाँधी नहर परियोजना से सात शाखाएं निकाली गयी हैं, जो निम्न हैं-

क्र.सं. लिफ्ट नहर का पुराना लिफ्ट नहर का नया नाम लाभान्वित ज़िले
1. गंधेली (नोहर) साहवा लिफ्ट चौधरीरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू
2. बीकानेर-लुणकरणसर लिफ्ट कंवरसेन लिफ्ट नहर श्रीगंगानगर, बीकानेर
3. गजनेर लिफ्ट नहर पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर बीकानेर, नागौर
4. बांगड़सर लिफ्ट नहर भैरूदम चालनी वीर तेजाजी लिफ्ट नहर बीकानेर
5. कोलायत लिफ्ट नहर डॉ. करणी सिंह लिफ्ट नहर बीकानेर, जोधपुर
6. फलौदी लिफ्ट नहर गुरु जम्भेश्वर जलो उत्थान योजना जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर
7. पोकरण लिफ्ट नहर जयनारायण व्यास लिफ्ट जैसलमेर, जोधपुर
8. जोधपुर लिफ्ट नहर (170 कि.मी. + 30 कि.मी. तक पाईप लाईन) राजीव गांधी लिफ्ट नहर जोधपुर


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख