कर्णप्रयाग: Difference between revisions

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Latest revision as of 14:11, 30 March 2019

कर्णप्रयाग
विवरण 'कर्णप्रयाग' अलकनंदा और पिण्डर नदियों के संगम स्थल के रूप में हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
राज्य उत्तराखण्ड
ज़िला चमोली
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
संबंधित लेख उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड पर्यटन, उत्तराखंड की झीलें, चमोली प्रशासनिक भाषा हिन्दी
वाहन पंजीकरण यूके (UK)

कर्णप्रयाग उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह तीर्थ स्थान अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर स्थित है। पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्णप्रयाग पड़ा है। उमा मंदिर और कर्ण मंदिर यहाँ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं। कर्णप्रयाग की संस्कृति उत्तराखंड की सबसे पौराणिक एवं अद्भुत नंद राज जाट यात्रा से जुड़ी है।

परिचय

अलकनंदा एवं पिंडर नदी के संगम पर बसा कर्णप्रयाग धार्मिक पंच प्रयागों में तीसरा है, जो मूलरूप से एक महत्त्वपूर्ण तार्थ हुआ करता था। बद्रीनाथ मंदिर जाते हुए साधुओं, मुनियों, ऋषियों एवं पैदल तीर्थयात्रियों को इस शहर से गुजरना पड़ता था। यह एक उन्नतिशील बाज़ार भी था और देश के अन्य भागों से आकर लोग यहां बस गये, क्योंकि यहां व्यापार के अवसर उपलब्ध थे। इन गतिविधियों पर वर्ष 1803 की बिरेही बाढ़ के कारण रोक लग गयी, क्योंकि शहर प्रवाह में बह गया। उस समय प्राचीन उमा देवी मंदिर का भी नुकसान हुआ। फिर धीरे-धीरे यहाँ सब कुछ पहले जैसा सामान्य हुआ, शहर का पुनर्निर्माण हुआ तथा यात्रा एवं व्यापारिक गतिविधियाँ भी पुन: आरंभ हो गयीं।

पौराणिकता

कर्णप्रयाग का नाम हिन्दू महाकाव्य महाभारत के केंद्रीय पात्र कर्ण के नाम पर है। कर्ण का जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था, इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान् योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था। पौराणिक रूप से कर्णप्रयाग की संबद्धता पार्वती से भी है। उन्हें समर्पित कर्णप्रयाग के मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा पहले हो चुकी थी। कहावत है कि उमा का जन्म डिमरी ब्राह्मणों के घर संक्रीसेरा के एक खेत में हुआ था, जो बद्रीनाथ के अधिकृत पुजारी थे और इन्हें ही उसका मायका माना जाता है तथा कपरीपट्टी गांव का शिव मंदिर उनकी ससुराल होती है।

नंद राज जाट यात्रा

कर्णप्रयाग नंदा देवी की पौराणिक कथा से भी जुड़ा है; नौटी गांव जहां से नंद राज जाट यात्रा आरंभ होती है, इसके समीप है। गढ़वाल के राजपरिवारों के राजगुरू नौटियालों का मूल घर नौटी का छोटा गांव कठिन नंद राज जाट यात्रा के लिये प्रसिद्ध है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होती है तथा कुंभ मेला की तरह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह यात्रा नंदा देवी को समर्पित है, जो गढ़वाल एवं कुमाऊं की ईष्ट देवी हैं। नंदा देवी को पार्वती का अन्य रूप माना जाता है, जिसका उत्तरांचल के लोगों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान है, जो अनुपम भक्ति तथा स्नेह की प्रेरणा देता है। नंदाष्टमी के दिन देवी को अपने ससुराल, हिमालय में भगवान शिव के घर, ले जाने के लिये राज जाट आयोजित की जाती है तथा क्षेत्र के अनेकों नंदा देवी मंदिरों में विशेष पूजा होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 143| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख