तारापीठ: Difference between revisions

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तारापीठ [[रामपुरहट]] में स्थित है। इसमें स्थानीय लोगों की बहुत श्रद्धा है। कहते है कि यहाँ पर [[सती]] की आँख का तारा गिरा था। और दूसरे मत के अनुसार यह माना जाता है कि यहाँ पर महर्षि [[वसिष्ठ]] ने तार के रूप में देवी सती की पूजा की थी। यह एक बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। यहाँ स्थानीय निवासियों के अलावा पर्यटक भी बड़ी संख्या में इस पीठ के दर्शन करने के लिए आते हैं।  
'''तारापीठ''' [[पश्चिम बंगाल]] के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। यह स्थल [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम [[तीर्थ स्थान|तीर्थ स्थानों]] में गिना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि यहाँ पर [[सती|देवी सती]] के नेत्र गिरे थे, जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि [[वसिष्ठ|महर्ष वसिष्ठ]] ने तारा के रूप में यहाँ देवी सती की [[पूजा]] की थी। इस स्थान को "नयन तारा" भी कहा जाता है। माना जाता है कि देवी तारा की आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में तारापीठ का सबसे अधिक महत्व है। यह पीठ [[असम]] स्थित '[[कामाख्या मंदिर]]' की तरह ही तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए परम पूज्य स्थल है। यहाँ भी [[साधु]]-[[संत]] अतिविश्वास और श्रद्धा के साथ साधना करते हैं।
==पौराणिक कथा==
कथा के अनुसार जब सती के [[पिता]] दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने भगवान [[शिव]] को [[यज्ञ]] में आने का निमंत्रण नहीं दिया। शिव के मना करने और समझाने पर भी सती बिना निमंत्रण के ही पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आ गईं। इस समय दक्ष ने सती के समक्ष अनुपस्थित भगवान शिव को बड़ा बुरा-भला कहा और उन्हें कठोर अपशब्द कहे। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर स्वयं को भस्म कर लिया। उनके बलिदान करने के बाद [[शिव]] विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए तथा तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोध से सृष्टि के समाप्त होने का भय [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] को सताने लगा। सभी ने भगवान [[विष्णु]] से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपने [[चक्र अस्त्र|चक्र]] से सती के शव को खंडित कर दिया। सती के शरीर के टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। माना जाता है कि तारापीठ वह स्थान है, जहाँ सती के तीसरे नेत्र का निपात हुआ था।
====महिमा====
प्राचीन काल में [[वशिष्ठ|महर्षि वशिष्ठ]] ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके [[सिद्धि|सिद्धियाँ]] प्राप्त की थीं। उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है। वर्तमान में तारापीठ का निर्माण 'जयव्रत' नामक एक व्यापारी ने करवाया था। एक बार यह व्यापारी व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित एक गाँव पहुँचा और वहीं रात गुजारी। रात में देवी तारा उसके सपने में आईं और उससे कहा कि- "पास ही एक श्मशान घाट है। उस घाट के बीच में एक शिला है, उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो। जयव्रत व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित करवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने देवी तारा का एक भव्य मंदिर बनवाया, और उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई। इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान [[शिव]] हैं, जिसे माँ स्तनपान करा रही हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.samaylive.com/lifestyle-news-in-hindi/religion-news-in-hindi/158622/west-bengal-shaktipeeth-tarapit-nayan-tara.html|title=51 शक्तिपीठों में है तारापीठ यानी नयनतारा पीठ|accessmonthday=03 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


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Revision as of 13:03, 3 July 2013

तारापीठ पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। यह स्थल हिन्दू धर्म के पवित्रतम तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि यहाँ पर देवी सती के नेत्र गिरे थे, जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि महर्ष वसिष्ठ ने तारा के रूप में यहाँ देवी सती की पूजा की थी। इस स्थान को "नयन तारा" भी कहा जाता है। माना जाता है कि देवी तारा की आराधना से हर रोग से मुक्ति मिलती है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में तारापीठ का सबसे अधिक महत्व है। यह पीठ असम स्थित 'कामाख्या मंदिर' की तरह ही तंत्र साधना में विश्वास रखने वालों के लिए परम पूज्य स्थल है। यहाँ भी साधु-संत अतिविश्वास और श्रद्धा के साथ साधना करते हैं।

पौराणिक कथा

कथा के अनुसार जब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया तो उसने भगवान शिव को यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं दिया। शिव के मना करने और समझाने पर भी सती बिना निमंत्रण के ही पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आ गईं। इस समय दक्ष ने सती के समक्ष अनुपस्थित भगवान शिव को बड़ा बुरा-भला कहा और उन्हें कठोर अपशब्द कहे। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्निकुंड में कूद कर स्वयं को भस्म कर लिया। उनके बलिदान करने के बाद शिव विचलित हो उठे और सती के शव को अपने कंधे पर लेकर आकाश मार्ग से चल दिए तथा तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोध से सृष्टि के समाप्त होने का भय देवी-देवताओं को सताने लगा। सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को खंडित कर दिया। सती के शरीर के टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। माना जाता है कि तारापीठ वह स्थान है, जहाँ सती के तीसरे नेत्र का निपात हुआ था।

महिमा

प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है। वर्तमान में तारापीठ का निर्माण 'जयव्रत' नामक एक व्यापारी ने करवाया था। एक बार यह व्यापारी व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित एक गाँव पहुँचा और वहीं रात गुजारी। रात में देवी तारा उसके सपने में आईं और उससे कहा कि- "पास ही एक श्मशान घाट है। उस घाट के बीच में एक शिला है, उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो। जयव्रत व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित करवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने देवी तारा का एक भव्य मंदिर बनवाया, और उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई। इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान शिव हैं, जिसे माँ स्तनपान करा रही हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 51 शक्तिपीठों में है तारापीठ यानी नयनतारा पीठ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 03 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख