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*रेढ़ के प्राचीन स्थल जो [[राजस्थान]] के टोंक ज़िले में [[जयपुर]] से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है।
*रेढ़ एक प्राचीन स्थल जो [[राजस्थान]] के टोंक ज़िले में [[जयपुर]] से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है।
*इस प्राचीन स्थल का उत्खनन 1938 ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।  
*इस प्राचीन स्थल का उत्खनन 1938 ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।  
*रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में मिट्टी के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री शुंग एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती है।  
*रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में मिट्टी के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री शुंग एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती है।  
*रेढ़ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें [[महात्मा बुद्ध]] या बौद्ध भिक्षुओं के अवशेष स्तूपों में रखे जाते थे। *रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी शताब्दी ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।  
*रेढ़ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें [[महात्मा बुद्ध]] या बौद्ध भिक्षुओं के अवशेष स्तूपों में रखे जाते थे।  
*रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी शताब्दी ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।  
*मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: मौर्य व शुंग शासकों के अधीन राज्य करते थे।  
*मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: मौर्य व शुंग शासकों के अधीन राज्य करते थे।  


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  • रेढ़ एक प्राचीन स्थल जो राजस्थान के टोंक ज़िले में जयपुर से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है।
  • इस प्राचीन स्थल का उत्खनन 1938 ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।
  • रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में मिट्टी के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री शुंग एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती है।
  • रेढ़ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें महात्मा बुद्ध या बौद्ध भिक्षुओं के अवशेष स्तूपों में रखे जाते थे।
  • रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी शताब्दी ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।
  • मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: मौर्य व शुंग शासकों के अधीन राज्य करते थे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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