चेतक: Difference between revisions
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महाराणा प्रताप के | '''चेतक''' [[महाराणा प्रताप]] के अश्ववर्णी घोड़े का नाम था। [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दी घाटी]]-(1937 - 1939 ई०) के युद्ध में चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति एवं वीरता का परिचय दिया था। अन्ततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दीघाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की कथा वर्णित हुई है। आज भी [[चित्तौड़]] में चेतक की समाधि बनी हुई है। | ||
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[[मेवाड़]] के उष्ण रक्त ने [[श्रावण]] [[संवत]] 1633 विक्रमी में [[हल्दीघाटी]] का कण-कण [[लाल रंग|लाल]] कर दिया। अपार शत्रु सेना के सम्मुख थोड़े-से [[राजपूत]] और भील सैनिक कब तक टिकते? महाराणा को पीछे हटना पड़ा और उनका प्रिय अश्व [[चेतक]], जिसने उन्हें निरापद पहुँचाने में इतना श्रम किया कि अन्त में वह सदा के लिये अपने स्वामी के चरणों में गिर पड़ा। | |||
[[हल्दीघाटी]] के प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ [[महाराणा प्रताप|प्रताप]] शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और [[राजपूत|राजपूतों]] के शत्रु [[मानसिंह]] को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर 'सलीम' ([[जहाँगीर]]) अपने [[हाथी]] पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो [[अकबर]] अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है।<ref>डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा इस कथन को सही नहीं मानते। प्रताप ने सलीम के हाथी पर नहीं अपितु मानसिंह के हाथी पर आक्रमण किया था। सलीम तो युद्धस्थल पर उपस्थित ही नहीं था।</ref> महावत के मारे जाने पर घायल हाथी सलीम सहित युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ। | [[हल्दीघाटी]] के प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ [[महाराणा प्रताप|प्रताप]] शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और [[राजपूत|राजपूतों]] के शत्रु [[मानसिंह]] को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर 'सलीम' ([[जहाँगीर]]) अपने [[हाथी]] पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो [[अकबर]] अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है।<ref>डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा इस कथन को सही नहीं मानते। प्रताप ने सलीम के हाथी पर नहीं अपितु मानसिंह के हाथी पर आक्रमण किया था। सलीम तो युद्धस्थल पर उपस्थित ही नहीं था।</ref> महावत के मारे जाने पर घायल हाथी सलीम सहित युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ। | ||
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[[महाराणा प्रताप]] का सबसे प्रिय घोड़ा 'चेतक' था। [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दीघाटी के युद्ध]] में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पडे। उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। चेतक, नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उसका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुँचाने के लिए। जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहा था, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था। | |||
==चेतक की वीरता== | |||
प्रसिद्ध साहित्यकार श्यामनारायण पाण्डेय ने चेतक की वीरता के संदर्भ में एक रचना लिखी जो निम्न है- | |||
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रणबीच चौकड़ी भर-भर कर | |||
चेतक बन गया निराला था | |||
राणाप्रताप के घोड़े से | |||
पड़ गया हवा का पाला था | |||
जो तनिक हवा से बाग हिली | |||
लेकर सवार उड जाता था | |||
राणा की पुतली फिरी नहीं | |||
तब तक चेतक मुड जाता था | |||
गिरता न कभी चेतक तन पर | |||
राणाप्रताप का कोड़ा था | |||
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर | |||
वह आसमान का घोड़ा था | |||
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं | |||
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं | |||
थी जगह न कोई जहाँ नहीं | |||
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं | |||
निर्भीक गया वह ढालों में | |||
सरपट दौडा करबालों में | |||
फँस गया शत्रु की चालों में | |||
बढते नद सा वह लहर गया | |||
फिर गया गया फिर ठहर गया | |||
बिकराल बज्रमय बादल सा | |||
अरि की सेना पर घहर गया। | |||
भाला गिर गया गिरा निशंग | |||
हय टापों से खन गया अंग | |||
बैरी समाज रह गया दंग | |||
घोड़े का ऐसा देख रंग</poem> | |||
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[[चित्र:Pratap-Singh-And-Chetak-Attacking-Man-Singh.jpg|thumb|300px|right|मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक]] चेतक महाराणा प्रताप के अश्ववर्णी घोड़े का नाम था। हल्दी घाटी-(1937 - 1939 ई०) के युद्ध में चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति एवं वीरता का परिचय दिया था। अन्ततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दीघाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की कथा वर्णित हुई है। आज भी चित्तौड़ में चेतक की समाधि बनी हुई है।
इतिहास से
मेवाड़ के उष्ण रक्त ने श्रावण संवत 1633 विक्रमी में हल्दीघाटी का कण-कण लाल कर दिया। अपार शत्रु सेना के सम्मुख थोड़े-से राजपूत और भील सैनिक कब तक टिकते? महाराणा को पीछे हटना पड़ा और उनका प्रिय अश्व चेतक, जिसने उन्हें निरापद पहुँचाने में इतना श्रम किया कि अन्त में वह सदा के लिये अपने स्वामी के चरणों में गिर पड़ा। हल्दीघाटी के प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ प्रताप शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और राजपूतों के शत्रु मानसिंह को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर 'सलीम' (जहाँगीर) अपने हाथी पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो अकबर अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है।[1] महावत के मारे जाने पर घायल हाथी सलीम सहित युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ।
राणा प्रताप का सबसे प्रिय
[[चित्र:Haldighati-Udaipur.jpg|thumb|300px|महाराणा प्रताप की प्रतिमा, हल्दीघाटी, उदयपुर]] महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा 'चेतक' था। हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पडे। उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। चेतक, नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उसका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुँचाने के लिए। जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहा था, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था।
चेतक की वीरता
प्रसिद्ध साहित्यकार श्यामनारायण पाण्डेय ने चेतक की वीरता के संदर्भ में एक रचना लिखी जो निम्न है-
रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में
बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा इस कथन को सही नहीं मानते। प्रताप ने सलीम के हाथी पर नहीं अपितु मानसिंह के हाथी पर आक्रमण किया था। सलीम तो युद्धस्थल पर उपस्थित ही नहीं था।
बाहरी कड़ियाँ
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