शिवराज पाटिल: Difference between revisions
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'''शिवराज विश्वनाथ | '''शिवराज विश्वनाथ पाटिल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shivraj Patil'', जन्म: 12 अक्टूबर, 1935) एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, वर्तमान [[पंजाब]] राज्य के [[राज्यपाल]], [[केंद्रशासित प्रदेश]] [[चंडीगढ़]] के प्रशासक और पूर्व [[लोकसभा अध्यक्ष]] हैं। शिवराज पाटिल सर्वसम्मति से दसवीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे जिसका गौरव बहुत कम लोगों को ही प्राप्त हुआ है। अपने उदार दृष्टिकोण, सौम्य स्वभाव और अनुकरणीय धैर्य व सदैव निष्पक्षता बरतने के गुण के कारण सभा की कार्यवाहियों को चलाने में वह उत्कृष्ट संचालक साबित हुए। ये प्रधानमंत्री [[मनमोहन सिंह]] की सरकार में गृह मंत्री भी रहें है। | ||
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शिवराज | शिवराज पाटिल का जन्म [[12 अक्तूबर]], [[1935]] को [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[लातूर ज़िला|लातूर ज़िले]] के चाकूर गांव में हुआ था। उन्होंने ओसमानिया विश्वविद्यालय, [[हैदराबाद]] से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने [[मुम्बई विश्वविद्यालय|बम्बई विश्वविद्यालय]] में विधि का अध्ययन किया। विधि में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद, पाटिल ने प्राध्यापक के रूप में जीवन शुरू किया और लगभग छः महीने तक अध्यापन कार्य किया। उसके बाद उन्होंने अपने गृह-नगर लातूर में वकालत शुरू करने का निर्णय किया। कुछ ही दिनों बाद उनका ध्यान सार्वजनिक जीवन की ओर आकर्षित हुआ। वर्ष 1967 में, वह लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 1969 तक इस पद पर बने रहे तथा 1971 से 1972 तक दोबारा इस पद पर रहे। लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप में पाटिल ने नगरपालिका प्रशासन में, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा, अस्पतालों तथा भूमिगत जल निकासी व्यवस्था, जल आपूर्ति योजनाओं एवं नगर आयोजना आदि के बारे में अनेक नवीनताओं का प्रवर्तन किया। | ||
==राजनीतिक परिचय== | ==राजनीतिक परिचय== | ||
शिवराज | शिवराज पाटिल का विधायी और संसदीय जीवन, 1972 में उनके महाराष्ट्र विधान सभा के लिए निर्वाचित हो जाने के साथ ही शुरू हुआ। वह 1972 से 1977 तक और पुनः 1977 से 1979 तक राज्य विधान सभा के सदस्य रहे। वह 1974-75 के दौरान सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के सभापति रहे। पाटिल 1975 में उप मंत्री बने और उनके पास विधि और न्याय, सिंचाई तथा नयाचार विभाग रहे और वह इस पद पर 1976 तक रहे। वह 5 जुलाई, 1977 को राज्य विधान सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित किए गए और [[13 मार्च]], [[1978]] तक इस पद पर बने रहे। उनकी ईमानदारी, विवादास्पद मामलों को निष्पक्षता से निपटाने और असीम धैर्य के लिए उनकी बहुत ही प्रशंसा की गई और [[17 मार्च]], 1978 को उन्हें सर्वसम्मति से महाराष्ट्र विधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया तथा वह [[6 दिसम्बर]], [[1979]] तक इस पद पर रहे। | ||
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शिवराज | शिवराज पाटिल पहली बार 1980 में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के उम्मीदवार के रूप में लातूर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से आठवीं, नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं लोक सभा में क्रमशः 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 में पुनर्निर्वाचित हुए। पाटिल 12 मई, 1980 से 7 सितम्बर, 1980 तक संसद सदस्यों के वेतन तथा भत्तों संबंधी संयुक्त समिति के सदस्य रहे और 8 सितम्बर, 1980 से 18 अक्तूबर, 1980 तक इस समिति के सभापति रहे। | ||
====केंद्रीय मंत्रिपरिषद में==== | ====केंद्रीय मंत्रिपरिषद में==== | ||
सन 1980 के बाद वाले दशक में शिवराज | सन 1980 के बाद वाले दशक में शिवराज पाटिल ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 19 अक्तूबर, 1980 को पाटिल केंद्रीय मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री बनाए गए और निम्नलिखित विभागों में रहे- | ||
* रक्षा मंत्रालय- 19 अक्तूबर, 1980 से 14 जनवरी, 1982 तक | * रक्षा मंत्रालय- 19 अक्तूबर, 1980 से 14 जनवरी, 1982 तक | ||
* वाणिज्य (स्वतंत्र प्रभार) - 15 जनवरी, 1982 से 29 जनवरी, 1983 तक | * वाणिज्य (स्वतंत्र प्रभार) - 15 जनवरी, 1982 से 29 जनवरी, 1983 तक | ||
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* नागर विमानन और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) - 25 जून, 1986 से 2 दिसम्बर, 1989 तक। | * नागर विमानन और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) - 25 जून, 1986 से 2 दिसम्बर, 1989 तक। | ||
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दो वर्षों से कम ही समय में देश में नई लोक सभा को चुनने के लिए पुनः चुनाव हुए। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] ने केंद्र में सरकार बनाई। | दो वर्षों से कम ही समय में देश में नई लोक सभा को चुनने के लिए पुनः चुनाव हुए। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] ने केंद्र में सरकार बनाई। पाटिल लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए स्वाभाविक पसंद थे और उन्हें इस पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया। सभा के सभी वर्गों की यह सुविचारित राय थी कि पाटिल इस सम्माननीय पद को अपने समृद्ध और विविध अनुभवों तथा परिपक्वता के गुणों से, जो एक पीठासीन अधिकारी में होने चाहिए, गरिमा प्रदान करेंगे। संसदीय संस्थाओं को सुदृढ़ करने के प्रति पाटिल की प्रतिबद्धता के बारे में सदस्यों, मीडिया या आम जनता, राज्यों के विधायी निकायों या अन्य देशों के संसदीय निकायों सभी को स्पष्टतः पता था। लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पाटिल का सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों समान रूप से आदर करते थे। ऐसे कई अवसर आए जब सभा में स्थिति तनावपूर्ण और हंगामेदार बनी किंतु अपने अनुकरणीय धैर्य और असाधारण सहनशीलता से वह तनाव और बोझिल वातावरण को दूर करने में बराबर सफल रहे। "बैंक घोटाला", "राजनीति का अपराधीकरण" जैसे कुछ विवादास्पद मुद्दों पर वाद-विववाद के दौरान उन्होंने जिस तरह सभा की कार्यवाही का संचालन किया उसकी विभिन्न क्षेत्रों में भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। | ||
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अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उस समय एक इतिहास रचा गया जब लोक सभा में उच्चतम न्यायालय के एक तत्कालीन न्यायाधीश के विरूद्ध पहली बार महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा की गई और बाद में उसे अस्वीकृत किया गया। चूंकि यह अपनी तरह का पहला और अत्यधिक महत्व का मामला था, अतः शिवराज | अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उस समय एक इतिहास रचा गया जब लोक सभा में उच्चतम न्यायालय के एक तत्कालीन न्यायाधीश के विरूद्ध पहली बार महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा की गई और बाद में उसे अस्वीकृत किया गया। चूंकि यह अपनी तरह का पहला और अत्यधिक महत्व का मामला था, अतः शिवराज पाटिल ने यह सुनिश्चित करने में विशेष सावधानी बरती कि प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समुचित प्रक्रिया स्थापित की जाए और इस मुद्दे पर विभिन्न दलों और ग्रुपों के नेताओं के साथ परामर्श किया। शिवराज पाटिल ने लोक सभा सचिवालय की संस्थागत व्यवस्थाओं के चल रहे कम्प्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण प्रयासों पर, विशेषकर संसद सदस्यों की सूचना सेवा के कम्प्यूटरीकरण पर और बल दिया। उनके नेतृत्व में न केवल लोक सभा सचिवालय के अधिकांश कार्यकलापों का कम्प्यूटरीकरण किया गया अपितु सांसदों को निष्पक्ष, तथ्यपरक और विश्वसनीय एवं आधिकारिक आंकड़े लगातार और नियमित आधार पर प्रदान करने के लिए अनुक्रमणिका आधारित सूचना आंकड़ों का भी विकास किया गया। | ||
====सांसद पुरस्कार की स्थापना==== | ====सांसद पुरस्कार की स्थापना==== | ||
शिवराज | शिवराज पाटिल की संसदीय प्रणाली को मजबूत करने की दृढ़ निश्चयी वचनबद्धता उस समय उजागर हुई जब भारतीय संसदीय दल द्वारा उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की स्थापना की गई। यह पुरस्कार संसदीय परम्पराओं को बनाए रखने में अपना योगदान देने के लिए उत्कृष्ट सांसद को प्रत्येक वर्ष प्रदान किया जाता है। | ||
==राज्यपाल और प्रशासक== | ==राज्यपाल और प्रशासक== | ||
लोकसभा सांसद, लोकसभा अध्यक्ष केन्द्रीय गृहमंत्री के अलावा शिवराज | लोकसभा सांसद, लोकसभा अध्यक्ष केन्द्रीय गृहमंत्री के अलावा शिवराज पाटिल वर्तमान में [[पंजाब]] के [[राज्यपाल]] और [[केंद्रशासित प्रदेश]] [[चंडीगढ़]] के प्रशासक हैं। शिवराज पाटिल [[राजस्थान]] के राज्यपाल (26 अप्रॅल, 2010 - 28 अप्रॅल, 2012) भी रह चुके हैं। | ||
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Revision as of 13:30, 26 September 2013
शिवराज पाटिल
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पूरा नाम | शिवराज विश्वनाथ पाटिल |
जन्म | 12 अक्टूबर, 1935 |
जन्म भूमि | चाकूर गांव, लातूर ज़िला महाराष्ट्र |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | केंद्रीय गृहमंत्री, पंजाब के राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, चंडीगढ़ के प्रशासक |
कार्य काल | गृहमंत्री- 22 मई 2004 – 30 नवंबर 2008
राज्यपाल- 22 जनवरी 2010 – अब तक |
शिक्षा | विधि में स्नातकोत्तर |
विद्यालय | मुम्बई विश्वविद्यालय |
अन्य जानकारी | शिवराज पाटिल ने अतिरिक्त प्रभार सम्भालते हुए राजस्थान के राज्यपाल (26 अप्रॅल, 2010 - 28 अप्रॅल, 2012) भी बने। |
अद्यतन | 13:43, 21 सितम्बर 2012 (IST)
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शिवराज विश्वनाथ पाटिल (अंग्रेज़ी: Shivraj Patil, जन्म: 12 अक्टूबर, 1935) एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, वर्तमान पंजाब राज्य के राज्यपाल, केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष हैं। शिवराज पाटिल सर्वसम्मति से दसवीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे जिसका गौरव बहुत कम लोगों को ही प्राप्त हुआ है। अपने उदार दृष्टिकोण, सौम्य स्वभाव और अनुकरणीय धैर्य व सदैव निष्पक्षता बरतने के गुण के कारण सभा की कार्यवाहियों को चलाने में वह उत्कृष्ट संचालक साबित हुए। ये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में गृह मंत्री भी रहें है।
जीवन परिचय
शिवराज पाटिल का जन्म 12 अक्तूबर, 1935 को महाराष्ट्र राज्य के लातूर ज़िले के चाकूर गांव में हुआ था। उन्होंने ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय में विधि का अध्ययन किया। विधि में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद, पाटिल ने प्राध्यापक के रूप में जीवन शुरू किया और लगभग छः महीने तक अध्यापन कार्य किया। उसके बाद उन्होंने अपने गृह-नगर लातूर में वकालत शुरू करने का निर्णय किया। कुछ ही दिनों बाद उनका ध्यान सार्वजनिक जीवन की ओर आकर्षित हुआ। वर्ष 1967 में, वह लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 1969 तक इस पद पर बने रहे तथा 1971 से 1972 तक दोबारा इस पद पर रहे। लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप में पाटिल ने नगरपालिका प्रशासन में, विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा, अस्पतालों तथा भूमिगत जल निकासी व्यवस्था, जल आपूर्ति योजनाओं एवं नगर आयोजना आदि के बारे में अनेक नवीनताओं का प्रवर्तन किया।
राजनीतिक परिचय
शिवराज पाटिल का विधायी और संसदीय जीवन, 1972 में उनके महाराष्ट्र विधान सभा के लिए निर्वाचित हो जाने के साथ ही शुरू हुआ। वह 1972 से 1977 तक और पुनः 1977 से 1979 तक राज्य विधान सभा के सदस्य रहे। वह 1974-75 के दौरान सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के सभापति रहे। पाटिल 1975 में उप मंत्री बने और उनके पास विधि और न्याय, सिंचाई तथा नयाचार विभाग रहे और वह इस पद पर 1976 तक रहे। वह 5 जुलाई, 1977 को राज्य विधान सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित किए गए और 13 मार्च, 1978 तक इस पद पर बने रहे। उनकी ईमानदारी, विवादास्पद मामलों को निष्पक्षता से निपटाने और असीम धैर्य के लिए उनकी बहुत ही प्रशंसा की गई और 17 मार्च, 1978 को उन्हें सर्वसम्मति से महाराष्ट्र विधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया तथा वह 6 दिसम्बर, 1979 तक इस पद पर रहे।
लोकसभा सांसद
शिवराज पाटिल पहली बार 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में लातूर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से आठवीं, नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं लोक सभा में क्रमशः 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 में पुनर्निर्वाचित हुए। पाटिल 12 मई, 1980 से 7 सितम्बर, 1980 तक संसद सदस्यों के वेतन तथा भत्तों संबंधी संयुक्त समिति के सदस्य रहे और 8 सितम्बर, 1980 से 18 अक्तूबर, 1980 तक इस समिति के सभापति रहे।
केंद्रीय मंत्रिपरिषद में
सन 1980 के बाद वाले दशक में शिवराज पाटिल ने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 19 अक्तूबर, 1980 को पाटिल केंद्रीय मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री बनाए गए और निम्नलिखित विभागों में रहे-
- रक्षा मंत्रालय- 19 अक्तूबर, 1980 से 14 जनवरी, 1982 तक
- वाणिज्य (स्वतंत्र प्रभार) - 15 जनवरी, 1982 से 29 जनवरी, 1983 तक
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रानिकी, अंतरिक्ष और महासागर विकास, जैव- प्रौद्योगिकी - 29 जनवरी, 1983 से 21 अक्तूबर, 1986 तक
- रक्षा उत्पादन और आपूर्ति - 22 अक्तूबर, 1986 से 24 जून, 1988 तक
- नागर विमानन और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) - 25 जून, 1986 से 2 दिसम्बर, 1989 तक।
लोकसभा अध्यक्ष
दो वर्षों से कम ही समय में देश में नई लोक सभा को चुनने के लिए पुनः चुनाव हुए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई। पाटिल लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए स्वाभाविक पसंद थे और उन्हें इस पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया। सभा के सभी वर्गों की यह सुविचारित राय थी कि पाटिल इस सम्माननीय पद को अपने समृद्ध और विविध अनुभवों तथा परिपक्वता के गुणों से, जो एक पीठासीन अधिकारी में होने चाहिए, गरिमा प्रदान करेंगे। संसदीय संस्थाओं को सुदृढ़ करने के प्रति पाटिल की प्रतिबद्धता के बारे में सदस्यों, मीडिया या आम जनता, राज्यों के विधायी निकायों या अन्य देशों के संसदीय निकायों सभी को स्पष्टतः पता था। लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पाटिल का सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों समान रूप से आदर करते थे। ऐसे कई अवसर आए जब सभा में स्थिति तनावपूर्ण और हंगामेदार बनी किंतु अपने अनुकरणीय धैर्य और असाधारण सहनशीलता से वह तनाव और बोझिल वातावरण को दूर करने में बराबर सफल रहे। "बैंक घोटाला", "राजनीति का अपराधीकरण" जैसे कुछ विवादास्पद मुद्दों पर वाद-विववाद के दौरान उन्होंने जिस तरह सभा की कार्यवाही का संचालन किया उसकी विभिन्न क्षेत्रों में भूरि-भूरि प्रशंसा की गई।
अध्यक्षता के दौरान
अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उस समय एक इतिहास रचा गया जब लोक सभा में उच्चतम न्यायालय के एक तत्कालीन न्यायाधीश के विरूद्ध पहली बार महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा की गई और बाद में उसे अस्वीकृत किया गया। चूंकि यह अपनी तरह का पहला और अत्यधिक महत्व का मामला था, अतः शिवराज पाटिल ने यह सुनिश्चित करने में विशेष सावधानी बरती कि प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समुचित प्रक्रिया स्थापित की जाए और इस मुद्दे पर विभिन्न दलों और ग्रुपों के नेताओं के साथ परामर्श किया। शिवराज पाटिल ने लोक सभा सचिवालय की संस्थागत व्यवस्थाओं के चल रहे कम्प्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण प्रयासों पर, विशेषकर संसद सदस्यों की सूचना सेवा के कम्प्यूटरीकरण पर और बल दिया। उनके नेतृत्व में न केवल लोक सभा सचिवालय के अधिकांश कार्यकलापों का कम्प्यूटरीकरण किया गया अपितु सांसदों को निष्पक्ष, तथ्यपरक और विश्वसनीय एवं आधिकारिक आंकड़े लगातार और नियमित आधार पर प्रदान करने के लिए अनुक्रमणिका आधारित सूचना आंकड़ों का भी विकास किया गया।
सांसद पुरस्कार की स्थापना
शिवराज पाटिल की संसदीय प्रणाली को मजबूत करने की दृढ़ निश्चयी वचनबद्धता उस समय उजागर हुई जब भारतीय संसदीय दल द्वारा उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की स्थापना की गई। यह पुरस्कार संसदीय परम्पराओं को बनाए रखने में अपना योगदान देने के लिए उत्कृष्ट सांसद को प्रत्येक वर्ष प्रदान किया जाता है।
राज्यपाल और प्रशासक
लोकसभा सांसद, लोकसभा अध्यक्ष केन्द्रीय गृहमंत्री के अलावा शिवराज पाटिल वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक हैं। शिवराज पाटिल राजस्थान के राज्यपाल (26 अप्रॅल, 2010 - 28 अप्रॅल, 2012) भी रह चुके हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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