कबीर पट्टन कारिवाँ -कबीर: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kabirdas-2.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "सृष्टा" to "स्रष्टा") |
||
Line 35: | Line 35: | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} | ||
==अर्थ सहित व्याख्या== | ==अर्थ सहित व्याख्या== | ||
[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! जीव (सौदागर) इस शरीर रूपी नगर को एक सुरक्षित स्थान समझकर सारा सांसारिक व्यवहार अर्थात् व्यापार टिका हुआ है। किन्तु उसे यह ज्ञात नहीं कि इस शरीर रूपी नगर में पाँच चोर (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) विद्यमान हैं और इसमें दस द्वार भी हैं। यह वैसा सुरक्षित और अभेद्य [[दुर्ग]] नहीं है, जैसा कि अज्ञानी जीवों ने समझ रखा है। इस दुर्ग पर [[यमराज]] का आक्रमण भी होगा और वह क्षण भर में इस गढ़ को ध्वस्त कर देगा। इसलिए हे जीवों! | [[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! जीव (सौदागर) इस शरीर रूपी नगर को एक सुरक्षित स्थान समझकर सारा सांसारिक व्यवहार अर्थात् व्यापार टिका हुआ है। किन्तु उसे यह ज्ञात नहीं कि इस शरीर रूपी नगर में पाँच चोर (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) विद्यमान हैं और इसमें दस द्वार भी हैं। यह वैसा सुरक्षित और अभेद्य [[दुर्ग]] नहीं है, जैसा कि अज्ञानी जीवों ने समझ रखा है। इस दुर्ग पर [[यमराज]] का आक्रमण भी होगा और वह क्षण भर में इस गढ़ को ध्वस्त कर देगा। इसलिए हे जीवों! स्रष्टा का स्मरण कर लो। | ||
Latest revision as of 07:28, 7 November 2017
| ||||||||||||||||||||
|
कबीर पट्टन कारिवाँ, पंच चोर दस द्वार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जीव (सौदागर) इस शरीर रूपी नगर को एक सुरक्षित स्थान समझकर सारा सांसारिक व्यवहार अर्थात् व्यापार टिका हुआ है। किन्तु उसे यह ज्ञात नहीं कि इस शरीर रूपी नगर में पाँच चोर (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) विद्यमान हैं और इसमें दस द्वार भी हैं। यह वैसा सुरक्षित और अभेद्य दुर्ग नहीं है, जैसा कि अज्ञानी जीवों ने समझ रखा है। इस दुर्ग पर यमराज का आक्रमण भी होगा और वह क्षण भर में इस गढ़ को ध्वस्त कर देगा। इसलिए हे जीवों! स्रष्टा का स्मरण कर लो।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख